जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के जब अधिकृत उम्मीदवार महज 4 ही घोषित रहे तो चुनाव परिणाम बाद जीतने वाले उम्मीदवारों की संख्या 7 कैसे हो गई...???
नेताओं का गिरा चुका है,चरित्र ! उन्हें अपने मान-सम्मान का नहीं रहा गया भान ! हाथी के दांत सरीखे नेताओं का बन गया स्वाभिमान...!!!
सड़वा चण्डिका धाम प्रमुख पद निर्वाचित निर्दलीय उम्मीदवार तारा देवी की तरह क्या शेषा सिंह और उनके बेटे गोल्डी सिंह भी हो जायेंगे भगवाधारी...???
सदर ब्लॉक प्रमुख पद पर भाजपा ने अपना अधिकृत उम्मीदवार शोभा सिंह को उतारा था, शोभा सिंह चुनाव हार गई और निर्दलीय उम्मीदवार शेषा सिंह चुनाव में बाजी मार ली, चूँकि उनकी मदद अनाधिकृत रूप से जनसत्ता दल से जुड़े लोग कर रहे थे। पिछले चुनाव में प्रदीप सिंह उर्फ डब्बू सिंह मीरा भवन ने ब्लॉक प्रमुख पद पर पूर्व सांसद स्व. सरयू प्रसाद सरोज के परिवार से एक ब्यक्ति को उम्मीदवार बनाकर चुनाव लड़ाया और अपने दम पर प्रमुख बनवाया था। डब्बू सिंह को जब पुलिस तलाशने लगी और जब वह जेल चले गए तो सारा कार्य गोल्डी सिंह ही देखते थे। गोल्डी सिंह की तिकड़ी बहुत फेमस है। उस तिकड़ी में चाणक्य के नाम से मशहूर सुजीत ओझा और गोल्डी सिंह के दाहिने हाथ अजय सिंह हैं। ये तीनों लोग हमेशा एक साथ रहते हैं। गोल्डी सिंह को ब्लॉक प्रमुख पद रास आ गया था,सो उन्होंने अपनी माताजी को पहले बीडीसी चुनाव में उतारा और वह चुनाव जीत गई तो गोल्डी सिंह सदर प्रमुख पद पर अपनी माँ को चुनाव मैदान में उतार दिया।
प्रतापगढ़ जनपद में सभी 17 ब्लॉक मुख्यालयों पर प्रमुख पद का चुनाव सम्पन्न हो गया। चुनाव परिणाम आते ही नेताओं के चाल, चेहरे और चरित्र हाथी के दांत सरीखे दिखने लगे। खाने के और...दिखाने के और... ब्लॉक प्रमुख का चुनाव दल का चुनाव न होकर दबंगई का चुनाव मान लेना चाहिए। जिसके पास दबंगई है, वहीं ब्यक्ति ब्लॉक प्रमुख का चुनाव जीत सकता है। बाहुबल के बाद ही धनबल काम आता है। धनबल तभी काम आता है जब बाहुबल हो ! अन्यथा धनबल के सहारे बहुत कम सीट निकल पाती है। उदाहरण के लिए जनपद प्रतापगढ़ में लक्ष्मणपुर ब्लॉक प्रमुख पद को निर्विरोध कराने के लिए बाहुबल काम नहीं किया, बल्कि वहाँ धनबल ही काम आया। ऐसा अपवाद में ही संभव होता है। बाकी सीटों पर बाहुबल ही काम आया। बाहुबल वहाँ फेल हो जाता हैं, जहाँ सत्ता का बल सामने आ जाता है। आसपुर देवसरा और शिवगढ़ ब्लॉक प्रमुख पद का चुनाव परिणाम प्रत्यक्ष प्रमाण हैं।
चुनाव परिणाम बाद अपने-अपने तरीके से मीडिया का महिमा मंडन जारी है। यक्ष प्रश्न वही है कि यदि जनसत्ता दल लोकतांत्रिक द्वारा अधिकृत उम्मीदवार महज 4 ही घोषित रहे तो चुनाव परिणाम बाद उनकी संख्या 7 किस फार्मूले पर हो गई ? ये बात जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के राष्ट्रीय प्रवक्ता कहते अथवा उनके पदाधिकारी कहते तो एक बार अच्छा भी लगता। परन्तु तेल लगाने और चाटुकारिता के अनुभवी लोगों ने जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के ब्लॉक प्रमुख की संख्या 4 से बढ़ाकर कोई 5 लिख रहा है तो कोई 7 बता रहा है। ये बात जनसत्ता दल लोकतान्त्रिक के राष्ट्रीय प्रवक्ता कहते अथवा उनके पदाधिकारी कहते तो एकबार अच्छा भी लगता। परन्तु तेल लगाने और चाटुकारिता के अनुभवी लोगों ने जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के ब्लॉक प्रमुख की संख्या 4 से बढ़ाकर कोई 5 लिख रहा है तो कोई 7 बता रहा है।
जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के अधिकृत रूप से सिर्फ अपनी दो विधानसभा क्षेत्र कुंडा और बाबागंज में सिर्फ चार ब्लॉक प्रमुख पद पर ही उम्मीदवार उतारे थे। मानधाता प्रमुख पद पर निर्वाचित उम्मीदवार मो इसरार निर्दलीय रहा। प्रमुख पद का चुनाव जीतने के बाद जनसत्ता दल लोकत्रांतिक के नेता अनिल कुमार सिंह "लाल साहेब" के पास मिलने मात्र गया था और सड़वा चण्डिका धाम से निर्दलीय उम्मीदवार तारा सिंह ने अपना दल एस उम्मीदवार सीता देवी को प्रमुख पद के चुनाव में शिकस्त दिया तो उसे भी जनसत्ता दल लोकतांत्रित के नेता और समर्थक अपना समर्थित उम्मीदवार बताने लगा। सदर प्रमुख पद की उम्मेदवार शेषा सिंह तो चुनाव से पहले ही अपनी होर्डिंग्स जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के नेताओं के साथ बनवाकर जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के कार्यालय के बगल लगा रखा था, परन्तु मतदान के होने तक जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के नेता सिर्फ चार उम्मीदवार को ही अधिकृत बता रहे थे।
चुनाव परिणाम की बारी आई तो निर्दलीय उम्मीदवार शेषा सिंह सदर प्रमुख पर निर्वाचित हुई। शेषा सिंह के निर्वाचित होते ही जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के नेता और समर्थक चुनाव परिणाम बाद अपना उम्मीदवार बताकर उनके लड़के रवि सिंह उर्फ गोल्डी को गले से लगा लिया। रवि सिंह उर्फ गोल्डी के ऊपर समाजसेवी राकेश सिंह ईसीपुर जो एमएलसी गोपाल जी के रिश्तेदार भी हैं और करीबियों में से हैं। गोल्डी सिंह के साथ राकेश सिंह के आ जाने के बाद उनके सहयोगी रिंकू सिंह और मुन्ना सिंह "जिला पंचायत सदस्य" भी लग गए तो एमएलसी गोपाल जी की मजबूरी बन गई कि सदर प्रमुख की सीट किसी भी दशा में निकले। जब एमएलसी गोपाल जी की शक्ति गोल्डी सिंह की टीम को मिल गई तो जरुरत भर के बीडीसी को उठा एक सप्ताह पहले उनके घर से उठा लिया गया और उन्हें एक जगह रोका गया। मतदान के बाद उन्हें छोड़ दिया गया। उठाये गए ऐसे भी बीडीसी रहे जो शोभा सिंह के लड़के राकेश सिंह से भी धन लिए थे। कुछ बीडीसी राकेश सिंह का धन लौटा दिए हैं और कुछ अभी घुमा रहे हैं।
अभी जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के नेता इस बात से खुश हो ही रहे थे कि निर्दलीय उम्मीदवारों में सदर, सड़वा चण्डिका धाम और मानधाता के निर्दलीय उम्मीदवार सब उनके दल से जुड़ जायेंगे। परन्तु पहले सदर प्रमुख शेषा सिंह के पुत्र गोल्डी सिंह मंत्री मोती सिंह और प्रतापगढ़ के सांसद संगम लाल गुप्ता का स्वागत लखनऊ स्थित मंत्री आवास पर अपने समर्थकों के साथ करके जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के नेताओं और प्रमुख पद के चुनाव में गोल्डी सिंह के सहयोग में दिन रात एक किये थे, उन्हें जोर का झटका धीरे से देकर उन्हें अधीर कर दिया। गोल्डी सिंह के साथ जो लोग चुनाव में लगे थे उन्हें यह भरोसा था कि चुनाव बाद दो पैसा उन्हें भी कमाने को मिलेगा। मंत्री मोती सिंह और सांसद संगम लाल गुप्ता के साथ गोल्डी सिंह को देखकर गोल्डी सिंह के सहयोगी सदमें में पहुँच गए।
इधर ठेकदार देशराज सिंह और भाजपा नेता बलवंत सिंह एवं उनके लड़के संजय सिंह "टिंकू" ने अपना दल एस के दोनों विधायकों डॉ आर के वर्मा और राज कुमार "करेजा पाल" एड़ी चोटी एक कर दिए थे, परन्तु मानधाता और सड़वा चण्डिका धाम सहित सदर प्रमुख की कुर्सी दोनों विधायकों ने गंवा दिए। मजेदार बात यह रही कि सदर के प्रमुख पद के लिए शोभा सिंह को जिताने के लिए विधायक राजकुमार "करेजा पाल" के अलावा मंत्री मोती सिंह और प्रतापगढ़ सांसद संगम लाल गुप्ता भी लगे थे। परन्तु सफलता न दिला पाना सभी को संदेह में खड़ा करता है। अब तो लोग खुलकर कहने लगे कि यदि शोभा सिंह और उनके लड़के राकेश सिंह के साथ मंत्री मोती सिंह, सांसद संगम लाल गुप्ता, विधायक सदर राज कुमार "करेजा पाल" द्वारा गद्दारी ही करनी थी तो उन्हें भाजपा से उम्मीदवार बनाकर चुनाव मैदान में नहीं उतारना चाहिए था।
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