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शुक्रवार, 11 जून 2021

मैराथन दौड़ से कम नहीं रहा दिल्ली दरबार की योगी परिक्रमा

भाजपा शीर्ष नेतृत्व के आगे हठ योग छोड़ दिल्ली दरबार पहुँचे थे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ...!!!

केंद्रीय नेतृत्व की परिक्रमा कर वापस लौटे उत्तर प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ...!!!


भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की काठ वाली हाड़ी में क्या पक रहा है, यह मैराथन दौड़ के बाद भी सार्वजनिक नहीं हो सका ! फिर भी बहुत कुछ तय हो चुका है जो कुछ ही दिनों में सार्वजनिक हो जायेगा । यह सब लोग जान लें कि मात्र एमएलसी बनाने के लिए आईएएस कैडर वाले अरविन्द कुमार शर्मा से त्यागपत्र नहीं लिया गया है। बेशक योगी जी अपना कार्यकाल पूरा कर लें, मगर उत्तर प्रदेश के पावर सेंटर पर शाही जोड़ी की मजबूत नजर है। इसी मजबूती का नतीजा रहा कि कल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को दिल्ली तलब किया गया तो राजनीतिक सरगर्मियां फिर से तेज हो गई है...

उत्तर प्रदेश के हालात पर पीएम नरेन्द्र मोदी और सीएम योगी आदित्यनाथ वार्ता करते हुए...

सही कहा गया है कि जहाँ चार बर्तन होते हैं तो वो आपस में आवाज करते हैं। ठीक उसी तरह परिवार हो या संगठन वहाँ भी आपसी मनमुटाव देखने को मिल जाता है। केंद्र और प्रदेश में भाजपा की सरकार है। दोनों में आपसी तालमेल का होना नितांत आवश्यक है। वो भी तब जब सामने विधानसभा का चुनाव हो ! उत्तर प्रदेश की वर्तमान राजनीति में यह बहस का बिंदु बन गया है कि दिल्ली के पैराशूट को लखनऊ में अभी तक लैंड न होने देने का कार्य करके यह संकेत दे दिया गया है कि यदि लखनऊ वर्ष-2024 में अड़ गया तो गांधी नगर के पैराशूट का दिल्ली में लैंड होने से पहले तेल ही न चुक जाएगा। मगर सियासत का यह दौर कई बिंदुओं पर बहस को जन्म देता है। वस्तुतः वर्ष-2017 का विधानसभा चुनाव केशव प्रसाद मौर्य की अध्यक्षता और नरेंद्र मोदी अर्थात प्रधानमंत्री के चेहरे पर लड़ा गया। 

गृहमंत्री अमित शाह बिना मास्क लगाये CMयोगी आदित्यनाथ से शाही अंदाज में बात करते हुए...

सूबे में विधानसभा की 403 सीट में 325 सीट पाने वाली बीजेपी ने गोरखपुर के प्रभावशाली चेहरे को मुख्यमंत्री बना दिया। पहले अफवाह उड़ी कि मोदी के करीबी गांजीपुर जिले के मनोज सिन्हा की ताजपोशी होगी, मगर संघ के दबाव में योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बन गए। मगर दो मुख्यमंत्री बनाकर पावर सेंटर को बांटने की कोशिश की गयी, संगठन महामंत्री के रूप में सुनील बंसल को राजधानी लखनऊ में भाजपा कार्यालय पर पंचम तल की निगरानी करने के लिए बैठाया गया। तमाम रीसर्च हुए मगर केंद्र अपनी पकड़ उत्तर प्रदेश की सियासत में बना नहीं पाया। उत्तराखण्ड में तो मुख्यमंत्री ही बदल दिया गया मगर, उत्तर प्रदेश में यह भी सम्भव नहीं हो पाया। मऊ के ही गुजरात कैडर के आईएएस से त्यागपत्र लेकर उन्हें एमएलसी बनाकर उत्तर प्रदेश की सियासत में शामिल करने का प्रयास किया गया। आसाम का फॉर्मूला उत्तर प्रदेश में लागू होगा कि नहीं यह देखना दिलचस्प होगा। 

 BJP के राष्ट्रीय अध्यक्ष JP नड्डा भी CMयोगी के साथ बिना मास्क लगाये... 

भाजपा का देश में नहीं था, परन्तु 2 सीट से अपने दम पर बहुमत प्राप्त करने वाली भाजपा के जनाधार वाले नेता का नाम जब लिया जाता है तब उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह का नाम बड़े ही सम्मान और अदब के साथ लिया जाता है और देश में लालकृष्ण आडवाणी का नाम प्रमुख रूप से आता है। संगठन पर पंडित अटल बिहारी वाजपेयी से भी अधिक पकड़ लालकृष्ण आडवाणी की थी कहते हैं कि घमंड भगवान का आहार होता है। एक बार पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को घमंड आ गया और उसी घमंड में कल्याण सिंह ने कहा था कि अटल बिहारी वाजपेयी उनकी वजह से प्रधानमंत्री हैं। इस बड़बोले बयान से दोनों नेताओं में मतभेद हो गया। अटल बिहारी वाजपेयी इतना डर गए कि प्रधानमंत्री के रूप में लखनऊ आकर उन्हें डेरा डालना पड़ा कि कहीं कल्याण सिंह के कारण वह संसद का चुनाव न हार जाएं। बाद में कल्याण सिंह भाजपा से विदा हो गए। कल्याण सिंह से बड़ा चेहरा अभी तक हिंदुत्व का कोई भी नहीं है जो कि राम के नाम पर कुर्सी तक कुर्बान कर गया।  

देश के राष्ट्रपति महामहिम रामनाथ कोविंद के साथ मुलाकात करते CM योगी... 

यह अलग बात है कि लोकसभा चुनाव वर्ष-2004 में उत्तर प्रदेश की 80 सीट में से 35 सीट जीतकर सपा ने बीजेपी को उत्तर प्रदेश में नेस्तनाबूद कर दिया। बलराज मधोक ने अंग्रेजी बोलने वाले आडवाणी को पार्टी में लिया तो आडवाणी ने मधोक का कैरियर खत्म कर दिया। आडवाणी ने मोदी को अटल जी के कोपभाजन से बचाया तो बाद में मोदी ने आडवाणी को संन्यास दिला दिया। मगर योगी जी कभी भी मोदी जी के विश्वासपात्र नहीं रहे हैं, यदि होते तो मोदी शाह की जोड़ी कभी भी उत्तर प्रदेश की राजनीति में घुसपैठ की कोशिश न करती। जो गलती अटल और आडवाणी की जोड़ी ने किया, वह गलती मोदी शाह की जोड़ी नहीं करेगी। उत्तर प्रदेश और बिहार की सियासत जातिगत राजनीति में घुली हुई है इसलिए इसकी काट उत्तराखण्ड व असम जैसी न होकर किसी नए फॉर्मूले पर हो सकती है। जहाँ यह कहावत लागू है कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। 

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