सिर फुटौव्वल करने वाले समर्थकों वक्त के साथ इन दलबदलुओं और स्वार्थी नेताओं से सावधान हो जाओ क्योंकि इनका न तो कोई वसूल होता है और न ही धर्म...!!!
नेताओं में न तो कोई नैतिकता होती है और न ही समर्थकों की भावनाओं के प्रति कोई आदर, रहता है तो सिर्फ सत्ता की चाहत और स्वार्थ का घिनौना स्वरूप...!!!
प्रतापगढ़। ये राजनीति का वो गठबंधन है जो वक्त के हिसाब से जुड़ता और टूटता है। स्थानीय स्तर पर तो एक नहीं हो सकता,परन्तु राजनीतिक दलों के आकाओं द्वारा जब समझौता ऊपर से होता है तो नीचे वाले नेता स्वतः गलबहियां डालने में परहेज नहीं करते। प्रतापगढ़ में क्षत्रिय बनाम ब्राह्मण की राजनीतिक प्रतिद्वंदिता रही है। कभी राजा अजीत प्रताप सिंह और पंडित मुनीश्वदत्त उपाध्याय का दौर रहा हो,चाहे प्रमोद कुमार और रघुराज प्रताप सिंह राजा भईया का दौर रहा। लड़ाई सिर्फ और सिर्फ कुर्सी और सत्ता संघर्ष का ही रहा।
कथित कांग्रेसी दिग्गज प्रमोद कुमार के चक्कर में राजा भईया से बगावत करके कितने ब्राह्मण अपना जीवन नष्ट कर लिए और ये राजनीतिक लोग अपने निजी राजनीतिक स्वार्थ में कुर्सी की खातिर समय-समय पर एक हो गए। इनके बहकावे में आने वाले लोग आजतक मूर्ख ही साबित हुए हैं। जिला पंचायत अध्यक्ष पद के चुनाव को लेकर एक बड़ा राजनीतिक संदेश निकल कर सामने आया है। जिले के दो बड़े राजनीतिक दिग्गज रघुराज प्रताप सिंह "राजा भईया" और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रमोद कुमार ने हाथ मिला लिया है। प्रतापगढ़ जिले के इन दो राजनीतिक दिग्गजों के मिलन की शुरुवात लोकसभा/ विधान सभा उप चुनाव-2014 से शुरू हुई।
दोनों दिग्गजों के मिलन के पीछे प्रमोद कुमार का स्वार्थ था कि रामपुरखास विधानसभा के उप चुनाव में उनकी राजनीतिक उत्तराधिकारी उनकी बड़ी लड़की अराधना मिश्रा मोना के राजनीतिक जीवन की शुरुवात में राजा भईया की तरफ से राजनैतिक विरोध को समाप्त कर उसकी जीत की राह आसान करना रहा। चूँकि सामान्य लोकसभा-2014 के साथ उप चुनाव विधान सभा-2014 का चुनाव भी हो रहा था और कांग्रेस की उम्मीदवार राजकुमारी रत्ना सिंह निवर्तमान सांसद रही और उन्हें मुख्य विपक्षी दल भाजपा और अपना दल संयुक्त उम्मीदवार कुँवर हरिवंश सिंह चुनावी मैदान में थे।
प्रतापगढ़ के दोनों राजनीतिक दिग्गज प्रमोद कुमार और राजा भईया में एक टेबल पर गोपनीय समझौता हो गया और इस तरह अराधना मिश्रा मोना कांग्रेस से रामपुरखास विधान सभा का उप चुनाव जीत कर विधायक बन गई और वहीं कांग्रेस की उम्मीदवार राजकुमारी रत्ना सिंह लोकसभा चुनाव में अपनी जमानत भी न बचा सकी। निवर्तमान सांसद राजकुमारी रत्ना सिंह के लिए सबसे दुःखद पहलू यह रहा कि जिस रामपुरखास से लीड लेकर वह वर्ष-2009 में प्रतापगढ़ की सांसद निर्वाचित हुई, उसी रामपुरखास विधानसभा में वर्ष-2014 में राजकुमारी रत्ना सिंह को उतना मत नहीं मिला जितना मत अराधना मिश्रा मोना को विधान सभा के उप चुनाव-2014 में मिला।
यहीं से प्रमोद कुमार और राजकुमारी रत्ना सिंह के बीच सामंजस्य बिगड़ना शुरू हुआ जो जाकर वर्ष-2017 के विधानसभा चुनाव में गहरा गया। रही सही कसर लोकसभा चुनाव-2019 में पूरी हो गई। कांग्रेस की उम्मीदवार राजकुमारी रत्ना सिंह को वर्ष-2019 के लोकसभा चुनाव में उस रामपुरखास विधान सभा में मात मिली जिसके बल पर वह तीन बार प्रतापगढ़ की सांसद निर्वाचित हुई थी। राजकुमारी रत्ना सिंह और अराधना मिश्रा मोना में दूरियां बढ़ती गई और एक दिन वह समय आया जब कांग्रेस का हाथ झटक कर राजकुमारी रत्ना सिंह भाजपा में शामिल होकर भगवाधारी हो गई।
विधानसभा चुनाव-2017 स्थान के पी कालेज के बगल मुख्यमंत्री अखिलेश यादव जनसभा के लिए मुन्ना यादव के लिए आए थे। चूँकि सपा और कांग्रेस का गठबंधन था और सदर विधानसभा से सपा और कांग्रेस के संयुक्त उम्मीदवार नागेन्द्र सिंह 'मुन्ना यादव" थे, सो कांग्रेस के कथित दिग्गज प्रमोद और पूर्व सांसद राजकुमारी रत्ना सिंह भी मंच पर मौजूद थी। सपा सरकार में राजा भईया मंत्री थे और स्टार प्रचारक भी थे, सो उनका भी मंच पर होना लाजिमी था। इस घटना के बाद से प्रमोद कुमार और राजा भईया के बीच जो थोड़ी बहुत खटास जो थी, वह भी खत्म हो गई। राजा भईया और प्रमोद कुमार के बीच उस दूरियां कम होने का सन्देश उस दिन सार्वजनकि हो गया।
हुआ यूं कि अखिलेश यादव की जनसभा समाप्त होने के उपरांत राजा भईया स्वयं गाड़ी चलाते हुए अपने बगल प्रमोद तिवारी को बैठाकर कम्पनी बाग अपनी कोठी "प्रताप सदन" तक गए और वहां चाय पीकर एक दूसरे का हालचाल जाना। उस वक्त दोनों पक्ष के कार्यकर्ता आपस में बहुत ही असहज थे। कार्यकर्ताओं का चेहरा देखता ही बन रहा था तो उसी में एक कार्यकर्ता बोल पड़ा कि नेता चुनाव जीतकर ऊपर एक हो जाते हैं। मरते तो नीचे स्तर पर कार्यकर्ता हैं।
Sundar lekh
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
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