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बुधवार, 9 जून 2021

असम की तर्ज पर विधानसभा चुनाव बाद ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को बदला जा सकता है

योगी, मोदी, शाह और संघ के बीच में पिस गए अरविन्द कुमार शर्मा... 

उत्तर प्रदेश में मोदी के आम और खास अरविन्द कुमार शर्मा को लेकर बढ़ी योगी मोदी में रार...

गुजरात के सीएम रहते नरेंद्र मोदी के विस्वास पात्र नौकरशाह पीएम मोदी की कृपा पर पीएमओ सहित गृह, विदेश, रक्षा एवं शिक्षा मंत्रालय में तैनात किये गए। अरविंद कुमार शर्मा जैसे विश्वासपात्र नौकरशाह को स्वैच्छिक सेवा अवकाश दिलाकर उत्तर प्रदेश में  विधानसभा परिषद सदस्य बनाकर सत्ता का विकेंद्रीकरण किये जाने की चाल चली गई। उत्तर प्रदेश में पहले ही दो मुख्यंत्रियों को बैठाकर सत्यानाश करने का कार्य किया गया। ऊपर से मोटा भाई का एजेंट बनकर भाजपा संगठन महासचिव सुनील बंसल उत्तर प्रदेश की योगी सरकार पर पहले से पर्दे के पीछे से संचालन करने का कार्य कर रहे थे। 


अब योगी की जड़ में मट्ठा डालने के लिए रही सही कसर पूरा करने के लिए पीएम मोदी स्वयं अपने एजेंट के रूप में अरविंद कुमार शर्मा को योगी सरकार में घुसपैठ कराकर 2022 के लिए आसाम की तरह अभी से कार्य करना शुरू कर दिए हैं। जिसे समझ में न आये वह आसाम विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद मुख्यमंत्री के चेहरे में हुए बदलाव से आरोपों की पुष्टि कर सकता है। पीएम मोदी आज भी अपने खास नौकरशाह रहे लोगों को अहम जिम्मेदारी देने से नहीं चूक रहे हैं। विदेश मंत्रालय के सचिव जयशंकर प्रसाद को ही देख लीजिये कि विदेश सचिव से हटने के बाद सीधे विदेश मंत्री बना देना इसका जीता जागता उदाहरण है। 


ये बात सर्व विदित है कि यूपी का विधानसभा चुनाव-2017 मोदी के फेस पर ही लड़ा गया था। मुख्यमंत्री के चेहरे केशव मौर्या, सतीश महाना, सिद्धार्थ नाथ सिंह के अतिरिक्त केंद्र में मोदी मंत्रिमंडल के स्वतंत्र प्रभार के मंत्री रहे मनोज सिन्हा और आईटी प्रमुख श्रीकांत शर्मा का नाम मुख्यमंत्री की फेहरिस्त में था। पीएम मोदी और भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने केंद्र की राजनीति से मनोज सिन्हा को वाराणसी भेजा और मुख्यमंत्री की शपथ लेने तक का फैसला कर लिया था, परन्तु संघ के आशीर्वाद से एक्सीडेंटल चीफ मिनिस्टर बन गए योगी आदित्यनाथ और सुपर सीएम के पद पर ताजपोशी हुई संघ के दूत और शाह एंड टीम के प्रमुख सदस्य सुनील बंसल की। ऊपर से जातिगत समीकरणों को सिद्ध करने के लिए दो डिप्टी सीएम भी बनाये गए। 


जब बात इतने से भी न बनी तो अब ऊपर से ब्यूरोक्रेसी की खुफिया जानकारियों को पीएमओ तक भेजने के लिए एक और डिप्टी सीएम अरविंद कुमार शर्मा को भी योगी मंत्रिमंडल में लाने की चर्चा शुरू हो गई। यही भाजपा अखिलेश सरकार में आरोप लगाती थी कि सपा में अकेले मुख्यमंत्री अखिलेश यादव नहीं हैं, बल्कि मुलायम सिंह, शिवपाल सिंह और आजमखान को लेकर चार मुख्यमंत्री रहे। भाजपाई नेता तो यहाँ तक कहते थे कि अखिलेश राज में कई जिले को गिरवी रख दिया गया था। उदहारण के लिए प्रतापगढ़ को राजा भईया के हाथ तो गोंडा में पंडित सिंह के हाथ जिले की ब्यवस्था पूर्ण रूप से दे दी गई थी। परन्तु भाजपा जब वर्ष-2017 में उत्तर प्रदेश की सत्ता सँभालने के लिए मुख्यमंत्री के रूप में योगी आदित्यनाथ को कमान सौंपी तो जातीय समीकरण को साधने के साथ-साथ पार्टी में मुख्यमंत्री बनने का सपना देख रहे नेताओं को अर्जेस्ट किया गया 


सूबे में दो-दो उप मुख्यमंत्री के पद का सृजन करना और उस पर जातीय समीकरण को साधते हुए केशव प्रसाद मौर्य और दिनेश शर्मा को उप मुख्यमंत्री बनाने के पीछे का उद्देश्य भी वही रहा। पंचम तल की रिमोट कंट्रोल भाजपा कार्यालय में स्थिति भाजपा प्रदेश संगठन महामंत्री सुनील बंसल के हाईटेक कमरे में रख दी गई फिर भी बात नहीं बनी और पूरे साढ़े चार सालों में एक दूसरे की नस काटने में भाजपाई दिग्गज लगे रहे। पश्चिम बंगाल में भाजपा शिकस्त पाई और उस शिकस्त के बाद उत्तर प्रदेश में उसकी नजर टिक गई। उत्तराखंड में मुख्यमंत्री बदल कर वहाँ तो नेतृत्व परिवर्तन कर दिया, परन्तु उत्तर प्रदेश में चाहकर भी असमंजस की स्थिति बनी हुई है।बन बनाकर किसी नतीजे पर भाजपा का शीर्ष नेतृत्व और संघ नहीं पहुँच पा रहा है। यानि अरविन्द कुमार शर्मा को उत्तर प्रदेश की राजनीति में प्रवेश कराकर योगी सरकार की बची खुची ताकत को नष्ट करने की चाल चली जा रही है ऐसा करने से उत्तर प्रदेश की योगी सरकार में कोई भी महत्वपूर्ण विभाग अब वास्तविक रूप से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी के पास नहीं रह जायेगा। योगी की हालत उस कहावत को चरितार्थ कर रही है कि "खेत खाये गदहा, मार खाए जोलहा" 

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