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बुधवार, 16 जून 2021

नेताओं के दोहरे चरित्र देखकर घृणा होती है,एक तरफ मृत पत्रकार सुलभ श्रीवास्तव के लिए न्याय दिलाने के लिए घड़ियाली आँसू तो दूसरी तरफ शराब माफियाओं को संरक्षण देते हैं

प्रतापगढ़ के धनकुबेर सांसद संगम लाल गुप्ता मृतक पत्रकार सुलभ श्रीवास्तव के घर गए थे, ब्यक्तिगत रूप से अपनी जेब से कुछ नहीं दिए, सिर्फ मुख्यमंत्री को चिट्ठी लिखकर फर्ज अदायगी कर अपने दायित्वों की कर लिए इतिश्री...!!!

मृतक पत्रकार सुलभ श्रीवास्तव...

जिला पंचायत सदस्य को बोर्ड अपना बनाने के लिए अध्यक्ष पद और क्षेत्र पंचायत प्रमुख पद के चुनाव में मतदान करने के लिए राजनीतिक दलों के नेताओं के पास उनके मत खरीदने के लिए पैसा है। अभी तक जिला पंचायत सदस्य का 10 लाख रुपये और कई ब्लॉक में प्रमुख पद के लिए तीन से पाँच लाख रुपये तक का रेट लग चुका है। जबकि जिले के एक पत्रकार की संदिग्ध मौत पर एक दो जनप्रतिनिधियों को छोड़ दे तो 99 फीसदी नेताओं की जेब से फूटी कौड़ी नहीं निकली। 


लोकसभा और विधानसभा चुनाव आता है तो चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार विशेषकर राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों द्वारा अपने पक्ष में खबर प्रकाशित कराने के लिए पत्रकारों को ब्यक्तिगत पैकेज दिया जाता है। जिला मुख्यालय के पत्रकारों को कुंडा और रामपुर खास तक के बड़े नेताओं द्वारा पैकेज दिया जाता है। कई बार लिफाफा जिला पंचायत गेट पर भी वितरित होते देखा हूँ। उस वक्त नेताओं को अपनी गरज रहती है सो धन वाला लिफाफा चहेते पत्रकारों को बुला बुला कर दिया जाता है। 


पत्रकार सुलभ श्रीवास्तव की मौत के बाद रानीगंज विधायक धीरज ओझा अस्पताल में घटना के घटित होने पर ही पहुँच गए थे। भाजपा नेता पप्पन सिंह कुंडा से पहुँच गए। परन्तु सदर विधायक राजकुमार उर्फ करेजा पाल नहीं पहुँच सके। दूसरे दिन भी पोस्टमार्टम हाउस से लेकर मृतक पत्रकार के परिजनों के आँसू पोछने के लिए भी करेजा पाल को समय मिल सका। पत्रकारों को इस बात को याद रखना चाहिये। साथ ही जो लोग जो लोग मृतक पत्रकार सुलभ श्रीवास्तव की हत्या मानकर जाँच CBI से कराने की माँग कर रहे हैं वो इंस्पेक्टर अनिल कुमार की हत्या की CBI जाँच का परिणाम एक बार जरूर देख लें। जियाउल हक सीओ कुंडा की हत्या की जाँच CBI से हुई थी। नतीजा वही हुआ जो UP पुलिस ने अपनी रिपोर्ट में दिखाये थे।


अभी पार्टी के किसी कार्यकर्ता के साथ ऐसे घटना घटित होती है तो पार्टी कोष से उसको आर्थिक सहायता दी जाती है। कम से कम पाँच लाख और अधिक की कोई सीमा निर्धारित नहीं है। परन्तु एक युवा पत्रकार की संदिग्ध दशा में मौत हो जाये और उसके बच्चे छोटे-छोटे हों। साथ ही पत्नी सिर्फ गृहणी हो और उस मृतक पत्रकार के माँ-बाप भी न हो। उस दशा में राजनीतिक दलों विशेषकर विपक्षी दलों को अपने दल के प्रतिनिधि मंडल के साथ कुछ आर्थिक सहायता भी प्रदान करनी चाहिये। फिर सत्ताधारी दल और सरकार पर दबाव बनाकर उस पीड़ित परिवार को लाभ दिलाने के लिए आगे आना चाहिये। सिर्फ सरकार पर आरोप और प्रत्यारोप लगाने मात्र से बात नहीं बनने वाली है।

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