अलीगढ़ में जहरीली शराब पीने से हुई 107मौतों के लिए डीएम और एसपी को अपर मुख्य सचिव आबकारी ने ठहराया जिम्मेदार...!!!
अपर मुख्य सचिव आबकारी और शराब माफिया के खुलासे से यह तय हो गया कि जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन सहित जिला आबकारी विभाग के अफसरों ने शराब माफियाओं को बचाने का करते हैं,कार्य...!!!
शराब माफिया गुड्डू सिंह ने जब अदालत में अपने आपको समपर्ण किया तो मीडिया के सामने प्रयागराज जोन के बड़े अफसर पर शराब माफियाओं से सम्बन्ध होने का खुलासा किया और पुलिस अफसर की डिमांड न पूरी कर पाने की वजह उसे फंसाया गया...!!!
![]() |
अपर मुख्य सचिव आबकारी संजय आर.भूसरेड्डी... |
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में जहरीली शराब की तस्करी कोई नई बात नहीं है। कभी उन्नाव तो कभी प्रतापगढ़ तो कभी अलीगढ़ में जहरीली शराब सेवन करने से लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। शासन और प्रशासन इस पर रोक लगा पाने में फेल रहा। वजह स्पष्ट है कि शराब की तस्करी बिना सत्ताधारी दल के नेता के संरक्षण मिले उसका ब्यापार नहीं जा सकता। सिर्फ सत्ताधारी दल के नेता के मिलने मात्र से काम नहीं चलता। बिना शासन और प्रशासन के मिले शराब की तस्करी और माफियागीरी नहीं की जा सकती। सबका बराबर हिस्सा तय रहता है।बेईमानी के हर कार्य में लेनदेन का हिसाब बड़ी ही इमानदारी से किया जाता है।
जिस तरह उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में 107 मौतों के बाद जहरीली शराब के कारोबार और प्रशासन के कनेक्शन को लेकर इस बार बड़ा खुलासा हुआ है। यह खुलासा अपर मुख्य सचिव आबकारी संजय आर भूसरेड्डी ने किया है। उन्होंने इन 107 मौतों के लिए सीधे तौर पर अलीगढ़ के डीएम और एसपी को जिम्मेदार ठहराया। भूसरेड्डी ने बताया कि जिस फैक्ट्री की शराब पीने से ये मौतें हुई हैं, उसी की मिथाइल अल्कोहल पीने से 2009 में भी 7 लोगों की मौत हो गई थी। फैक्ट्री चलाने वाले अनिल चौधरी और उसके भाई सुधीर चौधरी के खिलाफ पुलिस ने चार्जशीट दाखिल की थी, जिसे 2011 में तत्कालीन एसएसपी सत्येंद्रवीर सिंह बदलवा दिया था। दोनों का नाम भी बाहर कर दिया। इसके बाद फिर से जहरीली शराब बनाने की फैक्ट्री चलने लगी।
अपर मुख्य सचिव आबकारी संजय आर भूसरेड्डी ने कहा कि वर्ष-2011 में अनिल चौधरी और सुधीर चौधरी को जेल से जमानत मिल गई। दोनों ने फिर से शराब का कारोबार बढ़ाया और इसे डीएम-एसपी जैसे जिले के प्रशासनिक अफसरों का संरक्षण मिला। 2011 से लेकर आज 2021 तक उस जिले में तैनात होने वाले सारे डीएम-एसपी ने अनिल के इस शराब कारोबार को संरक्षण दिया। अगर एक भी अफसर ने इन पर कार्रवाई की होती तो आज 107 लोगों की जान नहीं जाती। भूसरेड्डी का कहना है कि इंक बनाने और दूसरे केमिकल उत्पाद के नाम पर लिए गए लाइसेंस वाली फैक्ट्रियों में मिथाइल से शराब बनाई जा रही थी। जिले में डीएम ही लाइसेंसिंग अथार्टी होता है और पुलिस ऐसी गतिविधियों पर इंफोर्समेंट की कार्रवाई करती है।
शराब की किसी लाइसेंसी फैक्ट्री में डीएम या एसएसपी की अनुमति के बिना आबकारी टीम नहीं घुस सकती है। लेकिन जिले स्तर पर आबकारी टीम को इसकी जानकारी थी, जिसकी सूचना उन्हें शासन स्तर पर देनी चाहिए थी। बड़ा सवाल है कि डीएम और एसएसपी ने अब तक कोई कार्रवाई क्यों नही की। इन मौतों के जिम्मेदार यही पुलिस, प्रशासनिक और जिले स्तर के आबकारी अधिकारी हैं। मिथाइल अल्कोहल अधिक घातक होता है। इसकी मात्रा जरा सा बढ़ते ही घटना सामने आ गई। इसकी जगह इथाइल का प्रयोग हो रहा होता तो लंबे समय तक इस जहर के कारोबार से पर्दा नही हटता। अपर मुख्य सचिव का कहना है कि अगर आरोपी किसी का नाम बता रहे तो पुलिस को तत्काल उन्हें भी मुकदमें में 120बी यानी साजिश का आरोपी बनाना चाहिए।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें