देश में स्वास्थ्य ब्यवस्था सुधारने के लिए सरकार को दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ लेने होंगे कठोर निर्णय...!!!
प्रदेश में निवास करने वाले नागरिकों के स्वास्थ्य की जिम्मेदारी राज्य सरकार की है। राज्य सरकार को स्वास्थ्य विभाग को सुदृढ करने की होती है,जिम्मेदारी। केंद्र सरकार सभी राज्यों को बेहतर स्वास्थ्य सेवा के लिए माँग के अनुरूप आवंटित करती है,धनराशि।
हमारे देश में स्वास्थ्य ब्यवस्था खुद वेंटिलेटर पर कोमा में है। वह मरीजों का इलाज का क्या खाक करेगी ? जब जिला अस्पतालों में मूलभूत आवश्यकताओं में मरीजों के लिए स्ट्रेचर तक नहीं है। मरीज भर्ती करने के लिए बेड नहीं। मरीज देखने के लिए डॉक्टर नहीं। मेडिसिन स्टोर में पैरासिटामोल तक नहीं। फिर हम कोरोना संक्रमण में कोविड-19 जैसी महामारी का इलाज कैसे कर सकेंगे ? ऑक्सीजन और वेंटिलेटर की इच्छा रखना कि हम और हमारे घरों के मरीज सरकारी अस्पतालों में भर्ती होंगे तो हमें और हमारे मरीज को आधुनिक सुविधाओं की ब्यवस्था होगी। यह दिवास्वप्न सरीखे है...!!!
इंसान के जीवन में तीन मूलभूत आवश्यकताएं होती हैं। पहली आवश्यकता रोटी और दूसरी आवश्यकता कपड़े की होती है। फिर तीसरी आवश्यकता इंसान को सिर छिपाने के लिए मकान की होती है। इन तीन आवश्यकताओं की पूर्ति के बाद चौथी आवश्यकता स्वास्थ्य की होती है। फिर पाँचवी आवश्यकता बच्चों की शिक्षा की होती है। 75 वर्ष देश को स्वतंत्र हुए हो गए। परन्तु रोटी, कपड़ा इंसान स्वयं ब्यवस्था कर ले रहा है। 99 फीसदी मकान भी इंसान स्वयं बनाता है। सरकार के कंधों पर देश के नागरिकों के लिए स्वास्थ्य और शिक्षा दो महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां होती हैं जिनकी दशा अति दयनीय है।
ब्यवस्था में बैठे जिम्मेदार पदों पर कोई भी ब्यक्ति आगे आकर स्वास्थ्य और शिक्षा की अति दयनीय दशा की वजह बताने को तैयार नहीं। शिक्षा की बात करें तो 75 फीसदी शिक्षा निजी हाथों यानि प्राइवेट सेक्टर में चली गई है। सिर्फ 25 फीसदी शिक्षा को भी सरकार नियंत्रित नहीं कर पा रही है। सरकार और शिक्षा विभाग पूरी तरह शिक्षा माफियाओं की गुलाम बन चुकी है। अब बात करते हैं,स्वास्थ्य विभाग की। कमोवेश शिक्षा की तरह स्वास्थ्य विभाग की भी दशा है। मिडिल क्लास से लेकर अपर क्लास तक के लोग निजी अस्पतालों में अपना इलाज करवाते हैं। अब तो लोवर में अपर लोवर क्लास के लोग अपना इलाज निजी चिकित्सकों और निजी अस्पतालों में कराने लगे हैं।
सच बात तो यह है कि सरकारी अस्पतालों में सिर्फ और सिर्फ लोवर क्लास के लोग अपना इलाज कराने पहुँचते थे। उनकी ही जिम्मेदारी सरकार और स्वास्थ्य विभाग के कंधों पर टिकी थी। इसी से स्वास्थ्य विभाग अपाहिजों की तरह घिस घिस कर चल रहा है। ऐसे में कोरोना संक्रमण काल में कोविड-19 जैसी महामारी से लड़ने के लिए सरकारी अस्पतालों में सबका इलाज कैसे संभव है ? यही सच है जिसे न तो सरकार स्वीकार रही है और न ही स्वास्थ्य विभाग में जिम्मेदार पदों पर बैठे लोग ही इस असलियत को मानने को तैयार हैं। क्योंकि सरकारी अस्पतालों में तैनात चिकित्सक या तो अपनी निजी अस्पताल खोल कर उसे संचालित कर रहा है अथवा किसी निजी अस्पताल में जाकर प्राइवेट प्रैक्टिस कर रहा है। जबकि प्राइवेट प्रैक्टिस पर सरकार पूर्णतः प्रतिबंध लगा रखा है।
एक तरफ सरकार और स्वास्थ्य विभाग विधवा विलाप करता है कि उसके पास चिकित्सकों का अकाल है। दूसरी तरफ 25फीसदी चिकित्सकों को प्रशासनिक और वित्तीय कार्य देकर उनसे चिकित्सक का कार्य नहीं कराया जाता। यदि सरकार स्वास्थ्य विभाग के मठाधीशों की बातों को दरकिनार करके स्वास्थ्य विभाग में 25 फीसदी प्रशासनिक और वित्तीय कार्य कर रहे चिकित्सकों के हाथों में चिकित्सकीय कार्य दे दिया जाए तो स्वास्थ्य विभाग की दशा सुधर जाए। अपर निदेशक, संयुक्त निदेशक, सीएमओ, सीएमएस, एडिशनल सीएमओ, डिप्टी सीएमओ, मलेरिया विभाग, टीवी अस्पताल, फायलेरिया सहित अनेकों विभाग में चिकित्सकों को वहाँ का प्रभारी बनाकर उसने चिकित्सकीय कार्य नहीं लिए जाते।
यदि इन पदों पर आईएएस और पीसीएस अधिकारी बैठा दिए जाए तो देश में चिकित्सकों का अकाल दूर हो जाएगा। जब एक मुख्य विकास अधिकारी पूरे जिले में विकास योजनाओं का कार्य देख सकता है तो जिले में स्वास्थ्य विभाग के प्रशासनिक और वित्तीय कार्य को क्यों नहीं देख सकता ? इस सुझाव पर केंद्र की सरकार और राज्यों की सरकारों को तत्काल प्रभाव से विचार करना चाहिये और इस महामारी संकट में जनहित के मद्देनजर इस पर एक्शन लेकर कार्यवाही करते हुए इसे अमल में लाना चाहिये। प्रशासनिक पद पर जिस दिन चिकित्सक हट जायेगा। उसी दिन से चिकित्सकों की प्राइवेट प्रैक्टिस बन्द हो जाएगी। फिर सीएमओ और सीएमएस से सेटिंग करके प्राइवेट प्रैक्टिस नहीं हो सकेगी। इस तरह देश में स्वास्थ्य व्यवस्था जो बिकलांग हो चुकी है वह सही हो सकेगी।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें