स्वास्थ्य विभाग के नियंत्रण से बाहर जाने के पीछे कोरोना संक्रमण का जानिये राज़...
सूबे की योगी सरकार और स्वास्थ्य विभाग ने कोविड-19 हॉस्पिटल एल-1, एल-2 और एल-3 हॉस्पिटल की तैयारी दिखाने के लिए तो कर ली गई, परन्तु स्वास्थ्य कर्मियों का छाया हुआ है,संकट...!!!
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जनपद प्रतापगढ़ में जिला महिला अस्पताल पुरानी बिल्डिंग को बनाया कोविड एल-2 हॉस्पिटल... |
बीमार स्वास्थ्य ब्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए न तो सरकार के पास कोई नीति है और न ही भविष्य में उसे सुधारने की कोई ब्यवस्था। सरकारी अस्पतालों में जो ब्यवस्था सरकार उपलब्ध कराती है, उसकी सुविधा स्वास्थ्य विभाग जनता तक नहीं पहुँचा पाती जो सबसे दुखद स्थिति है। जिला अस्पतालों में पैथालाजी सेंटर, ब्लड बैंक, एक्स-रे, सिटी स्कैन, डायलिसिस सहित आक्सीजन प्लांट और वेंटिलेटर जहाँ उपलब्ध हैं, वहाँ उनके संचालन के लिए स्वास्थ्य विभाग कोई ब्यवस्था नहीं कर पा रहा है। सिर्फ हर चीज के अभाव का विधवा विलाप करना स्वास्थ्य महकमा की आदत बन चुकी है। उसकी ब्यवस्था करने के लिए उनकी नानी मर जाती हैं। क्योंकि सरकारी अस्पतालों में स्वस्थ्य कर्मी और चिकित्सक सिर्फ समय काटते हैं और धन कमाने की जुगत में रहते हैं कि कहाँ से धन आये ? स्वास्थ्य महकमें से जुड़े 90 फीसदी लोगों में मानवीय सवेदानाएं मर चुकी हैं। जो जिस सीट पर बैठा है वह कसाई वाला बांका लेकर बैठा है। मरीज और उसका तीमारदार जैसे उसके पास पहुँचता है तो वह एक ही वार से उसे हत देने में कोई पाप नहीं समझता।
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CMO और CMS आक्सीजन प्लांट में आई खराबी को सुधरवाने के लिए प्रयास करते हुए... |
कोरोना संक्रमण काल में मरीजों के मृत होने के पीछे के कारणों को बहुत ही बारीकी ढंग से समझने बूझने के बाद जो मामले प्रकाश में आये हैं,वह चौकाने वाले हैं। नाम न छापने की शर्त पर बताया गया कि चाहे सरकारी अस्पातल हो या प्राइवेट अस्पताल ! आक्सीजन सिलेंडर मरीजों को कैसे लगाये जाएं और कितनी मात्रा में मरीज को आक्सीजन दिया जाना चाहिए यानि उसकी स्पीड कितनी करनी है ? इस बात तक की जानकारी प्रतापगढ़ जैसे जिले में स्वास्थ्य कर्मियों को नहीं है। जब आक्सीजन प्लांट बिगड़ गया तो सिलेंडर से सीधे मरीजों को आक्सीजन दिए जाने की ब्यवस्था की गई। आक्सीजन किट और पाइप लाइन खराब होने की दशा में आधी आक्सीजन उड़ गई और आक्सीजन के आभाव में प्रतापगढ़ में भर्ती मरीज लगातार दम तोड़ रहे थे। प्रतापगढ़ जैसे शहरों में वेंटिलेटर लगाने और उसे संचालित करने की बात सोचना पाप होगा। ये स्वास्थ्य महकमें की स्वास्थ्य सेवा का असली चेहरा है जो बहुत ही भयानक है...
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कोविड-19 हॉस्पिटल तो खोल दिए गए परन्तु स्वास्थ्य कर्मियों का घोर संकट... |
कोरोना संक्रमण काल में सांस लेने में समस्या वाले मरीज अधिक आने लगे तो आक्सीजन का ही अभाव हो गया। जिला अस्पतालों से लेकर आक्सीजन सप्लाई करने वाले महामारी काल में आक्सीजन तक ब्लैक करने में लगे हैं। कोविड-19 अस्पताओं और जिला अस्पतालों में आक्सीजन लगाने के लिए कोई जानकार नहीं है। सबकुछ दफा सरपट चल रहा है। वेंटिलेटर के बारे में सोचना ही ब्यर्थ है। सरकारी अस्पतालों में चिकत्सकों का आभाव तो समझ में आता है, परन्तु वार्डबॉय और नर्स सहित लैब टेक्नीशियन आदि स्टाफ का भी घोर अकाल है। अधिकतर सरकारी अस्पतालों में सफाईकर्मी से ही वार्डबॉय और नर्स का कार्य लिया जा रहा है। जो चिंतनीय और आश्चर्य भरा है। परन्तु सरकार और स्वास्थ्य महकमें को इसकी लेशमात्र चिंता नहीं है। जो झाडू और पोछा लगाने का कार्य करते हैं वही ग्लूकोज और इंजेक्शन सहित मलहम पट्टी का कार्य भी करते हैं। उनके साथ दलालों कि एक लम्बी फौज होती है जो चिकत्सकों के लिए दलाली का कार्य करती है। ओपीडी बंद है, नहीं तो चिकित्सकों के कक्ष में मरीज से अधिक तो MR ही भरे रहते हैं,जो कमीशन वाली दवा चिकित्सकों से लिखवाने का कार्य करते हैं। यह स्वास्थ्य महकमें की असलियत है।
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जिला हॉस्पिटल की इमरजेंसी में भर्ती मरीजों की दशा जहाँ कोरोना संक्रमित मरीज भी हैं,भर्ती... |
कोरोना संक्रमण काल में सरकारी अस्पतालों की दशा बद से बद्तर हो गई है। कोविड-19 संक्रमण से ग्रसित मरीज जब जिला अस्पताल पहुँचते हैं तब उनको इमरजेंसी में भर्ती किया जाता है और उनका कोरोना टेस्ट कराया जाता है। यदि उनकी रिपोर्ट कोरोना पॉजिटिव आती है तो उन्हें कोविड-19 हॉस्पिटल में शिफ्ट किया जाता है, अन्यथा हालत गंभीर देख उन्हें मंडल स्तर पर रेफर कर दिया जाता है। कमोवेश वही ब्यवस्था वहाँ भी रहती है,परन्तु स्थानीय दबाव कम करने के लिए जिला अस्पताल से मंडल स्तर पर मरीजों को रेफर करने के पीछे सिर्फ और सिर्फ उनका एक मकशद होता है कि मरीज यदि मंडल स्तर पर पहुँच जाता है तो उसका दबाव वहाँ कम हो जाता है और वहाँ के चिकित्सकों पर उनका कोई दबाव नहीं बन पता और मनमानी करने की एक तरह सी छूट मिल जाती है। मरीज यदि मृत भी हो जाता है तो मरीज के परिजनों द्वारा वहाँ हंगामा और तोड़ फोड़ की घटना नहीं हो पाती। मरीज के मृत हो जाने पर परिजन बेहाल और अपना सबकुछ लुटा हुआ महसूस करते हुए मृतक को कभी-कभी घर लाते हैं और कभी-कभी वहीं उसका अंतिम संस्कार कर देते हैं। कोरोना संक्रमण काल में 70 फीसदी मृतकों का अंतिम संस्कार वहीं करा दिया जा रहा है।
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प्रतापगढ़ के जिला अस्पताल में इमरजेंसी में ऐसे हो जाते हैं,हालात... |
अब आते हैं उस इमरजेंसी में जहाँ उस मरीज का प्राथमिक तौर पर शुरुआत में इलाज शुरू हुआ था। मरीज का लक्षण देखकर उसका कोरोना टेस्ट कराया गया और जब वह पॉजिटिव आया तब उस मरीज को उस इमरजेंसी से अलग किया गया। जब तक वह मरीज इमरजेंसी में भर्ती रहा तब तक वह कितने मरीजों और स्वास्थ्य कर्मियों को कोरोना वायरस का संक्रमण बाँट चुका होगा ? यह स्वास्थ्य ब्यवस्था की कोरोना संक्रमण काल में सबसे बड़ी लापरवाही रही। जिला अस्पताल और CHC एवं PHC में ओपीडी भी बंद रही फिर सारे डॉक्टर कहाँ चले गए ? यदि जिला अस्पताल में दो इमरजेंसी की ब्यवस्था होती तो संक्रमण इतने भयावह स्थिति में न पहुँचता। तब तो त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव कराना बहुत ही आवश्यक था और सरकारी मशीनरी सब चुनाव में लगा दी गई थी। सबसे मजेदार बात यह रही कि पंचायत चुनाव में स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों को चुनाव ड्यूटी में लगाना सरकारी मशीनरी की सबसे बड़ी लापरवाही कही जा सकती है। सरकार और सरकार का सिस्टम पूरी तरह ध्वस्त हो चुका है। स्वास्थ्य सिस्टम तो अपाहिज कि श्रेणी में पहुँच चुका है। अब इसे सही करना मुश्किल लग रहा है।
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जिला अस्पताल में जब बवाल होता है तो चिकित्सक हड़ताल के लिए इस कदर होते हैं,लामबंद...
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पंचायत चुनाव सम्पन्न करा लेने के बाद अब योगी सरकार और स्वास्थ्य महकमा कुम्भकर्णी नींद से जगा है तो हाथ पैर मार रहा है। फिर भी स्थिति नियंत्रण में नहीं है। अब तो वही कहवत याद आ रही है, अब पछ्ताएं हॉट क्या,जब चिड़िया चुग गई खेत ! सच बात तो यह है कि प्रतापगढ़ जैसे जनपदों में तैनात चिकित्सक प्रयागराज से आते हैं और उनके आने के वक्त पर ध्यान दिया जाए तो वह 8 बजे के स्थान पर 11 बजे आते हैं और 2 बजे तक ड्यूटी करने के बजे 1 बजे अपरान्ह पुनः प्रयागराज चले जाते हैं। इन पर किसी का नियंत्रण नहीं है। जिला अस्पतालों में तैनात चिकित्सकों की बात करें तो वह कहीं न कहीं प्राइवेट प्रैक्टिस करते हैं क्योंकि उनका जब सीएमएस ही अपना निजी अस्पताल चलाता हो तो वह दूसरे चिकित्सकों को किस मुँह से रोक सकेगे ? ऐसे ही सीएमओ के अधीन CHC और PHC में तैनात होने वाले चिकित्सक होते हैं जो सीएमओ की कृपा पर वह सप्ताह में कभी कभार आकर अपना हस्ताक्षर बना जाते हैं और अपना प्राइवेट प्रैक्टिस करने में मस्त हैं। बदले में सीएमओ भी अपनी कृपा करने के एवज में उन चिकित्सकों से महीना बाँध रखा है। ऐसे में स्वास्थ्य ब्यवस्था सुधर नहीं सकती।
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