जिला अस्पताल के सामने प्रताप बहादुर पार्क जो राजा प्रतापगढ़ ने पार्क बनाने के लिए नगरपालिका परिषद बेला प्रतापगढ़ को उक्त जमीन पट्टे पर दी थी। क्या नगरपालिका प्रताप बहादुर पार्क के अस्तित्व को बचाये रखी है अथवा बेंच खाई...???
प्रताप बहादुर पार्क में हरियाली महाराज हरियाली तो स्थापित न कर सके,परन्तु दुकान बनाकर पार्क की जमीन को बेंच खाया। इस खेल में इतनी अनियमता की गई कि मौजूदा अपने चहेते सभासदों को भी एक-एक दुकान आवंटित कर दी। बाकी को बेंच कर अपनी तिजोरी भरी। इतने से हरियाली महाराज का पेट न भरा तो पार्क की दक्षिणी हिस्से वाली खाली जमीन का भी आवंटन कर डाला। साथ ही कई बार दुकानों के ऊपर दुकानें बनाने की गुणा गणित लगाई गई। परन्तु नगर पालिका बोर्ड बैठक के प्रस्ताव तक ही सिमट कर रह गई।
भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय परिषद के सदस्य स्व लालजी रावत ने उच्च न्यायालय खंडपीठ लखनऊ में एक रिट की,परन्तु उस पर भी कोई कार्यवाही नहीं हो सकी और पार्क के वजूद को खत्म कर पार्क के चारो तरफ दुकानें बनाकर ईस्ट इंडिया कंपन्नी के मुखिया ने बेंच खाया। अभी जो जमीन खाली बची है उसमें गाड़ियां पार्किंग होती हैं। यानि अवैध पार्किंग भी संचालित है। ऐसी दशा में भ्रष्ट नगरपालिका प्रशासन पर प्रतापगढ़ की जनता कैसे करें,विश्वास कि वह जीआईसी की 30फिट ली जाने वाली जमीन में दुकान का निर्माण नहीं करायेगी...???
ईस्ट इंडिया कम्पनी के दिखाए रास्ते पर चलते हुए हरियाली महराज कुछ ही वर्षों में नगरपालिका के बजट में डकैती डालकर बन गए अरबपति। भाजपा कार्यालय के पीछे पंडित दीन दयाल काम्प्लेक्स बनाकर कांजी हाउस बेंचा, भाजपा कार्यालय के बगल वाचनालय बेंचा, जिला अस्पताल के सामने प्रताप बहादुर पार्क बेंचा। जब देश के सुप्रीम कोर्ट के आदेश को हरियाली महराज धता बताकर पार्क के अस्तित्व को समाप्त कर उसे जिले का सबसे बड़ा कामर्शियल प्लेस बनाकर उसे बेंचकर पार्क के वजूद को ही खत्म कर दिया तो जीआईसी के बाउंड्रीवाल को तोड़कर 30फिट जमीन हथियाने के बाद मौका पाते ही हरियाली महराज कर सकते है,खेल। इसलिए आम जनमानस का हरियाली महराज पर नहीं रहा,भरोसा।
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