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सोमवार, 17 मई 2021

लूट मार सेंटर बन गए मल्टी सुपर स्पेशलिटी सेंटर

मरीजों और उनके अभिभावकों की जेब पर डकैती डालने के लिए मल्टी सुपर स्पेशलिटी सेंटर के बैनर तले किया जा रहा है,खेल...!!!

BHMS, BAMS एवं यूनानी पद्धति से चिकित्सकीय डिग्री लेकर एलोपैथिक की प्रैक्टिस के साथ सुपर स्पेशलिटी सेंटरों में ICU इंचार्ज बनाकर मरीजों के साथ किया जा रहा है,खिलवाड़...

किसी हॉस्पिटल में मल्टी सुपर स्पेशलिटी सेंटर का बोर्ड लगा है तो समझिये कि एक छत के नीचे स्वास्थ्य की सारी सेवाएं मिल जायेगी,परन्तु ऐसा सब जगहों पर रहता नहीं...

बिल्डिंग बन गई और उस पर सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल का बोर्ड लगाकर चलने लगा कसाईखाना...

ईश्वर न करें कि आप बीमार हों। यदि हों तो हॉस्टिपल में भर्ती होना न पड़े। क्योंकि वहाँ इंसान की शक्ल में शैतान विराजमान हैं। वहाँ का बिल कामर्शियल बिजली के बिल से भी तेज है। प्रवेश करते ही मीटर चालू हो जाता है और डिस्चार्ज तक बहुत ही स्पीड में चलता है। डॉक्टर फीस से लेकर कोरोना, एच आई वी जैसे टेस्ट में हजारों रुपये चार्ज किये जाते हैं। अन्य पैथोलॉजी टेस्ट अलग। कोई अतिरिक्त पैथोलॉजी टेस्ट हो तो उसकी जाँच हजारों में। कौन जाँच कितने की होगी इसका कोई रेट निर्धारण ही नहीं। सबकुछ अनाप सनाप। ऐसा नहीं है कि मरीजों के साथ घोर लापरवाही सिर्फ सरकारी अस्पतालों में ही किया जा रहा है निजी अस्पतालों में तो मरीजों के पैसे से ही उन पर अंग्रेजों से सख्त कानून बनाकर उन्हें प्रताड़ित किया जाता है प्राइवेट अस्पतालों में मेडिसिन से लेकर मास्क तक खरीदने व बेचने के लिए अलग काउंटर खोले गए हैं। मेडिसिन छोड़कर एक कैश काउंटर पर लेनदेन किया जाता है। चिकित्सक एडवाइज फीस का काउंटर अलग। बेड दो घण्टे के लिए इस्तेमाल हो या 24घण्टे उसका चार्ज 2000 हजार रुपये। नॉर्मल केस में यदि मिनी ओ टी तक मरीज गया तो उसका चार्ज 5 हजार रुपये से अधिक चार्ज किया जाता है।

  सुपर स्पेशलिटी सेंटरों में BHMS और BAMSकी डिग्री धारकों की है,भरमार...
सुपर स्पेशलिटी सेंटरों की असलियत जानकार आप भी दांतों तले अंगुलियाँ दबा लेंगे। एक आप बीती घटना का आज उल्लेख कर रहा हूँ। प्रयागराज सिविल लाइन स्थित हरीदया मल्टी सुपर स्पेशलिटी सेंटर के स्वामी डॉ आशीष टंडन के यहाँ 1जून, 2018 को एक मरीज भर्ती किया था। मरीज अपने घर से प्रथम ताल की सीढ़िया उतर कर अपनी इनोवा से प्रयागराज जाकर भर्ती हुई थी। हरीदया सुपर स्पेशलिटी सेंटर में भर्ती होने के कुछ देर बाद मरीज को ICU में सिफ्ट कर दिया गया और मरीज के परिजनों को मरीज से दूर कर दिया गया। फिर शुरू हुई हरी दया मल्टी सुपर स्पेशलिटी सेंटर की अपनी मनमानी। रात्रि भर मरीज अपने परिजनों को देख न पाने की दशा में चिल्लाती रही और मरीज के मुंह पर आक्सीजन का मास्क लगाकर चुप कराने की ब्यवस्था सुपर स्पेशलिटी सेंटर के स्वास्थ्यकर्मी करते रहे। मरीज के तीमारदार रात्रि भर एक-एक मिनट किसी तरह काटे। कई बार अपने मरीज से मिलने के लिए परिजनों ने कोशिश की परन्तु हरीदया सुपर स्पेशलिटी सेंटर के कथित गुंडे जो शराब के नशे थे,वो मरीज से मिलने नहीं दिये

मरीजों के तीमारदारों के लिए प्रयागराज के हरीदया सुपर स्पेशिलिटी सेंटर में रखे जाते हैं,बाउंसर... 

सुबह हुई तो डॉक्टर के राउंड पर मरीज के परिजनों की जिद पर मरीज को दिखाया गया। मरीज के हाथ को बेड से बाँध रखा गया था। पूँछने पर बताया गया कि मरीज बहुत हाथ-पैर चला रहा था, इसलिए बांधना पड़ा। मरीज से घर वाले कुछ पूंछते तो पता चला कि उसकी आवाज चली गई है। क्योंकि मरीज परिजनों को न देखकर मारे घबराहट में रात्रि भर चिल्लाई थी, जिसकी वजह से उनकी आवाज चली गई थी। चेहरे पर सूजन आ गई थी मरीज के आँखों से आँसू देखकर घरवाले इसका अंदाजा लगाये कि मरीज को असल समस्या क्या हुई ? सांस लेने की समस्या लेकर पहुँचे परिजनों के सामने अजीब समस्या आ गई कि उसके मरीज की आवाज ही चली गई जब हरीदया सुपर स्पेशलिटी सेंटर के स्वामी डॉ आशीष टंडन से मरीज के परिजन बात करने की कोशिश की तो उनका कहना था कि आप अपना मरीज ले जा सकते हो। परिजनों ने कहा कि मरीज जिस दशा में आया था वैसे कर दीजिये हम लोग अपने मरीज को तुरंत डिस्चार्ज कराकर यहाँ से चले जायेंगे।

हरीदया सुपर स्पेशलिटी सेंटर हॉस्पिटल के स्वामी डॉक्टर आशीष टंडन... 
संयोग से उस मरीज के साथ मेरा भी घरेलू तालुकात था, सो मैं भी हरीदया सुपर स्पेशलिटी सेंटर प्रयागराज पहुँचा तो परिजनों ने आप बीती घटना क्रम से अवगत कराया तो मेरे कान खड़े हो गएहरीदया सुपर स्पेशलिटी सेंटर का बड़ा नाम सुना था,परन्तु उसके कुकृत्यों को सुनकर वह कसाई का स्लाटर हाउस लगने लगा फिलहाल हरीदया सुपर स्पेशलिटी सेंटर के स्वामी डॉ आशीष टंडन से मिलकर इलाज की समरी तैयार करने और डिस्चार्ज का पेपर बनाने के लिए मैं स्वयं बात कियाइलाज की समरी मिलते ही नई दिल्ली में सर गंगाराम हॉस्पिटल में ऑनलाइन सम्पर्क किया गया तो सांस के अच्छे चिकित्सक डॉ अमित धमेजा के आश्वासन पर मरीज को लेकर सर गंगाराम हॉस्पिटल पहुँच गया और वहाँ भर्ती कर इलाज शुरू हुआ। डॉक्टरों की आधा दर्जन टीम मरीज को दोनों टाइम देखती थी। आवश्यकता पड़ने पर और स्पेलिस्ट बुलाये जाते थे। परन्तु परिणाम ईश्वर ने अपने पक्ष में न दिए, जिसकी मन में टीस बनी रहती है बड़े अस्पतालों से मन को बहुत पीड़ा हुई। चूँकि वहाँ सारा सिस्टम प्रोफेशनल तरीके से बनाया गया है

लगभग एक माह तक सर गंगाराम हॉस्पिटल में अपने मरीज का इलाज कराया और लाखों रुपये खर्च किया,परन्तु चिकित्सकीय ब्यवस्था से संतुष्ट न हो सका। क्योंकि मल्टी सुपर स्पेशलिटी सेंटरों में मरीज के तीमारदारों से मरीज को दूर रखा जाता है। डॉक्टर के राउंड पर ही बाहर से मरीज को दिखा दिया जाता है। सारी अब्यवस्था मल्टी सुपर स्पेशलिटी सेंटरों के स्वामियों को मरीज के तीमारदारों से उत्पन्न होती है। इसलिए उन्हें दूर रखते हैं। मेडिकल बुलेटिन जारी कर मरीज के तीमारदारों के ऊपर एहसान करने का कार्य किया जाता है। बीच-बीच में बुलाकर अथवा रजिस्टर्ड मोबाइल नम्बर हॉस्पिटल के बिल की डिमांड की जाती है कि एक लाख जमा करा दो, दो लाख जमा करा दो। सारा खेल पैसे के लिए खेला जाता है। मरीज के तीमारदार सुपर स्पेशलिटी सेंटर के स्वामियों की नजर में दुधारू जानवर समान होते हैंमरीजों के तीमारदारों से पैसा वसूलकर उन्हीं के पैसों से उन पर शासन किया जाता है और बोलने पर गार्ड धक्का देकर बाहर तक कर देने की हिम्मत रखता है। यह कोई कहानी नहीं बल्कि आप बीती घटना को आज सार्वजनिक कर रहा हूँ

मेरा अपना 31 वर्ष का स्वास्थ्य सेवाओं के लिए स्थापित सरकारी और गैर सरकारी हॉस्पिटल की दशा देखकर तरस आता है कि जहाँ मानवीय मूल्यों का कोई आंकलन न हो वह स्वास्थ्य सेवा केंद्र कहलाने का हक नहीं रखतामरीज और मरीज के साथ अटेंडेंट से सेल डीड और बैंक लोन की तरह हस्ताक्षर और निसानी अंगूठा लगाने की ब्यवस्था मल्टी सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल में रहती है। डिस्चार्ज के समय हॉस्पिटल का प्रसाशनिक विंग फीडबैक अलग से भरवाता है। मरीज का अटेंडेंट न चाहते हुए खराब से खराब सुविधाओं को बेहतर या सुविधाजनक जैसे कॉलम पर टिक लगाकर अपनी अभिब्यक्ति का गला घोंटकर डिस्चार्ज कार्ड के साथ मरीज का अभिभावक अपना मरीज लेकर बाहर आता है। जीवित आता है तो उसका सौभाग्य और मृत लेकर आता है तो उसका अपना दुभार्ग्य। एक माह की लम्बी लड़ाई में अपने मरीज को लामा भरकर सर गंगाराम हॉस्पिटल से प्रतापगढ़ वापस आया था और वेंटिलेटर कि सुविधा हटाते ही साँसे थम गई। ये कोई पहली घटना नहीं कोरोना संक्रमण काल में ऐसे कई साथी साथ छोड़कर चले गए। घर से सही सलामत बड़ी-बड़ी हॉस्पिटल में इलाज के लिए परिजनों द्वारा ले जाया गया और बाद में खाली हाथ लौटना पड़ा। बड़े अस्पतालों में तो घोर लापरवाही है। वहाँ तो मरीज और मरीज का परिजन कुछ कह भी नहीं सकता

मल्टी सुपर स्पेशलिटी सेंटरों पर मुख्य गेट पर रजिस्टर लेकर बैठे सुरक्षा गार्डों से मरीज के डिस्चार्ज कार्ड अथवा लामा की इंट्री कराकर हॉस्पिटल से मुक्त किया जाता है। मतलब इतना ही होता है कि मरीज के नाम कोई बकाया तो नहीं रह गया है मल्टी सुपर स्पेशलिटी सेंटरों के स्वामी यदि किसी से डरते हैं तो वह है विजली विभाग, विकास प्राधिकरण और नगर निगम/नगरपालिका, जिला प्रशासन/पुलिस विभाग सहित न्याय विभाग इन विभागों से इनकी कमजोर नसें दबी होती है, इसलिए इनको तवज्जों देते हैं। साथ ही स्वास्थ्य विभाग में जहाँ हॉस्पिटल का रजिस्ट्रेशन कराया जाता हैं वहाँ भी इन मल्टी सुपर स्पेशलिटी सेंटर के स्वामियों द्वारा स्वास्थ्य कर्मियों के संदर्भ में झूठी सूचना दी जाती है। स्वास्थ्य कर्मियों को कम भुगतान देना पड़े इसके लिए बिना ट्रेंड लड़के और लड़कियों को रखकर मरीजों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ किया जाता हैमल्टी सुपर स्पेशलिटी सेंटरों के ICU में जिनकी ड्यूटी लगाई जाती है वह भी मरीज के प्रति ध्यान न देकर आपस में गप्पे लड़ाते हैं और मल्टी मीडिया मोबाइल फोन का इस्तेमाल कर समय काटते हैं भर्ती मरीज मरे या जिए उनसे मतलब नहीं रहता मल्टी सुपर स्पेशलिटी सेंटर से निकलने वाला वह मरीज और उसके परिजन भगवान से प्रार्थना करते हैं कि इन कसाईयों के अड्डो पर दोबारा उनको न आना पड़े। बल्कि श्मशान घाट पर भले ही भेज देना प्रभु।

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