योगीराज में स्टाम्प और नोटरी टिकट की मची हुई लूट,स्टाम्प वेंडरों की चाँदी...
उत्तर प्रदेश में स्टाम्प और नोटरी टिकट की हो रही है,कालाबाजारी... |
प्रत्येक जनपद मुख्यालय में एक ट्रेजरी दफ्तर होता है और जिले का मुखिया जिलाधिकारी जब जिले की कमान संभालने आता है तो अपना पदभार यहीं ग्रहण करता है। ट्रेजरी को कोषागार भी कहते हैं और उसके संचालन के लिए कोषाधिकारी यानि ट्रेजरी अफसर होते हैं। तहसील मुख्यालयों में उप कोषागार हैं और वहाँ भी जनसामान्य को स्टाम्प और टिकट की उपलब्धता की ब्यवस्था सरकार ने कर रखी है। परन्तु सरकार स्टाम्प और टिकट की कालाबाजारी रोकने में पूरी तरह असफल हैं। जबकि स्टाम्प और टिकट की बिक्री स्टाम्प वेंडर के जरिये होती है और यह लाइसेंस धारक होते हैं। फिर भी ये स्टाम्प वेंडर दिन दहाड़े जनसामान्य के साथ डकैती डाल रहे हैं और हाकिम बैठकर तमाशा देख रहे हैं।
जिले में जनसामान्य को स्टाम्प और रसीदी टिकट और नोटरी टिकट आदि की उपलब्धता के लिए जिला मुख्यालय स्थित कलेक्ट्रेट परिसर से लेकर दीवानी न्यायालय में स्टाम्प वेंडर के जरिये इसकी बिक्री की जाती है। निर्धारित मूल्य से दस पाँच रुपये अधिक लेकर अभी तक स्टाम्प मिल जाता था। परन्तु इस समय 10 रुपये का स्टाम्प तो 150 से 200 सौ रुपये में खुलेआम बेंचा जा रहा है और कोषाधिकारी के आँख के नीचे ये सारे खेल हो रहे हैं। ये अधिकारीगण अपने वेंडरो की लूट पर क्यों अंकुश नहीं लगा पा रहे हैं ? इससे तो यही लगता है कि सबका हिस्सा स्टाम्प और टिकट की इस लूट और डकैती में बंधा हुआ है।
जिलाधिकारी और अपर जिलाधिकारी सहित मुख्य राजस्व अधिकारी एवं ए आई जी स्टाम्प सहित तहसील मुख्यालयों पर उप जिला मजिस्ट्रेट और तहसीलदार के साथ-साथ प्रत्येक तहसीलों में सब रजिस्ट्रार की आँख पर पर्दा पड़ा है और उन्हें स्टाम्प की ब्लैक में बिक्री दिखाई नहीं दे रही है। जब सूबे में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की रणभेरी बज चुकी है। उम्मीदवारों के जेब पर अधिकारियों की मिलीभगत से यह डकैती स्टाम्प वेंडर और कोषागार कार्यालय के अधिकारी और कर्मचारी डाल रहे हैं,जिसे पूँछने वाला कोई नहीं है। अब जिसे पंचायत में चुनाव में भाग लेना है वह 10 रुपये का स्टाम्प 200 में खरीद रहा है। साथ ही कुछ बोलने की हिम्मत भी नहीं जुटा पा रहा है।
यह समस्या पूरे उत्तर प्रदेश में हैं। योगी और मोदी सरकार में इस तरह की लूट से जनमानस में असंतोष पैदा हो रहा है। जिले में तैनात अफसर सो रहे हैं। दस रुपये वाला E स्टाम्प 150 रुपये में बिक रहा है। अधिक पूँछ-ताँछ करने पर वेंडर अपनी दुकान से स्टाम्प चाहने वाले को भगा देता है। ट्रेजरी अफसर एवं राजस्व अधिकारी सहित निबंधक विभाग से जुड़े अफसर को तत्काल प्रभाव से इस प्रकार की लूट पर ध्यान देना चाहिए, क्योंकि यह लूट उनकी नाक के नीचे हो रही है। इस लूट से जनता सीधे प्रभावित होती है और सत्ताधारी दल बदनाम होता है। सत्ताधारी दल के साथ-साथ पूरी मशीनरी सहित वर्तमान सरकार पर भी सवाल उठता है।
वाहन पंजीकरण अपने नाम हस्तांतरित करना हो या जमीन व मकान का सौदा करना हो। नया लाइसेंस बनवाना हो या स्कूल-कॉलेज में दाखिला लेना हो। काम कुछ भी हो ! दस रुपए के स्टांप पेपर पर नोटरी की ओर से जारी शपथपत्र लगाना अनिवार्य होता है। यह समस्या उत्तर प्रदेश के प्रत्येक जिले में है। कुछ धंधेबाजों ने इस अनिवार्यता को अपनी कमाई का जरिया बना लिया है। इन स्टाम्प और टिकट के धंधेबाजों का तर्क है कि पंचायत चुनाव बार-बार थोड़े ही आता है। पाँच वर्ष में एक बार आता है। इसलिए वो भी कुछ धन कमा लें। जिला पंचायत व प्रधान एवं ब्लाक प्रमुख होने के बाद तो वह भी पाँच साल बेखौफ विकास कार्यों के लिए आने वाले धन में से कमीशनखोरी करेंगे। इसलिए आज उनकी बारी है तो उन्हें भी कमाने दिया जाए।
शपथपत्र जारी करने की प्रक्रिया...
नियमानुसार शपथपत्र के लिए पहले शपथकर्ता को स्टांप पेपर लेना होता है। स्टांप लेने वाले व्यक्ति का पूरा नाम और पता स्टांप विक्रेता के रजिस्टर में दर्ज होता है। स्टांप विक्रेता स्टांप लेने वाले के हस्ताक्षर भी रजिस्टर में दर्ज कराता है। शपथ पत्र पर नाम-पता और संबंधित विवरण भरने के बाद नोटरी के समक्ष सत्यापित कराया जाता है। नोटरी तभी मोहर और हस्ताक्षर कर सकता है, जब संबंधित व्यक्ति उसके समक्ष उपस्थित हो। परन्तु स्थिति यह है कि पंचायत चुनाव में स्टाम्प और नोटरी टिकट लगा हुआ शपथ पत्र वाले स्टाम्प पर नोटरी की मुहर व हस्ताक्षर पहले से हुआ रहता है और इसकी कीमत ब्लाक मुख्यालय पर तो 500 रुपये तक वसूली जा रही है। जबकि इस तरह कोई शपथ पत्र नियमतः नहीं बनाये जा सकते।
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