केंद्र में 10वर्ष तक शासन करने वाली मनमोहन सरकार पंचायतों में महिलाओं को देना चाहती थी 50प्रतिशत आरक्षण...
पंचायतों में महिलाओं को 50प्रतिशत आरक्षण की ब्यवस्था देने वाले राजनीतिक दल लोकसभा व विधानसभा में 33प्रतिशत आरक्षण भी नहीं देना चाहते...
उत्तर प्रदेश में पंचायती राज ब्यवस्था में 33प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था है, जिसे वरीयता क्रम के अनुसार लागू किया जाता है। यानि पहला नंबर अनुसूचित जाति वर्ग की महिला का होगा। अनुसूचित वर्ग की कुल आरक्षित 21 प्रतिशत सीटों में से एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। इसी तरह पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षित 27 प्रतिशत सीटों में भी पहली वरीयता महिलाओं को दी जाएगी। अनारक्षित सीटों पर सामान्य वर्ग से लेकर किसी भी जाति का व्यक्ति चुनाव लड़ सकता है।
![]() |
UPके पंचायत चुनाओं में महिलाओं की वर्तमान स्थिति... |
केंद्र की मनमोहन सरकार को पंचायतों में महिला आरक्षण बढ़ने से उनका सशक्तीकरण बढ़ने की थी,उम्मीद...
महिलाओं के सम्मान और उनकी सुरक्षा सहित उनके स्वावलंबन की बात करने के लिए कोई पीछे नहीं रहना चाहता,परन्तु असल में जब महिलाओं को उनका अधिकार देने की बारी आती है तो वही लोग पीछे हट जाते हैं जो कल तक महिलाओं को झांसी की रानी बनाने की वकालत करते नहीं थकते थे। पंचायत में महिलाओं की भागीदारी की असलियत पर गौर करें तो आज भी पंचायत में महिलाओं का रोल सिर्फ चुनाव तक ही रहता है। चुनाव परिणाम के बाद उनके कर्तब्य और अधिकार का निर्वहन उनके घर के लोग ही किया करते हैं और वो महिला जनप्रतिनिधि नून, तेल, लकड़ी के मकड़जाल में ही उलझी रहती है। उसे पता ही नहीं चल पाता कि वह पंचायत के लिए बतौर जनप्रतिनिधि निर्वाचित हुई है।
भारत सरकार ने ग्राम स्तर पर महिलाओं के सशक्तीकरण की दिशा में एक असाधारण कदम उठाते हुए पंचायतों में महिलाओं की आरक्षित संख्या 33 प्रतिशत से बढ़ाकर 50 प्रतिशत करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी थी। देश भर में पंचायतों में महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण करने के लिए सरकार को संविधान के अनुच्छेद-243 में संशोधन करने के लिए विचार करना पड़ा। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व में कैबिनेट की बैठक में संविधान के अनुच्छेद 243 (डी) में संशोधन करने के लिए एक विधेयक लाने का फैसला भी किया गया था। परन्तु वर्ष डॉ मनमोहन की सरकार अपने उस फैसले को आगे न ले सकी। फिलहाल वर्ष-2009 में डॉ मनमोहन की सरकार पुनः केंद्र की सत्ता में वापसी तो हुई, परन्तु ये विधेयक पास न कर सकी। क्योंकि केंद्र सरकार महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण वाले विधेयक का पेंच फंसा रखी थी और वर्ष-2014 में केंद्र सरकार से मनमोहन सरकार की विदाई हो गई और देश में मोदी सरकार का आगमन हुआ और आज भी महिलाओं का 33 फीसदी आरक्षण अधर में लटका है।
तत्कालीन सूचना और प्रसारण मंत्री रही अंबिका सोनी ने पत्रकारों को बताया था कि यह एक असाधारण फैसला है। उन्होंने कहा कि पंचायती राज मंत्रालय पंचायतों में महिलाओं का आरक्षण बढ़ाने के इस फैसले को प्रभावी रूप देने के लिए संसद के आगामी सत्र में विधेयक लाने की योजना बना रहा है। पंचायतों में महिलाओं के लिए बढ़ा हुआ आरक्षण सीधे तौर पर निर्वाचित सीटों, पंचायत चैयरमैन के पदों और अनुसूचित जाति, जनजाति और आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों पर लागू होगा। अंबिका सोनी ने कहा था कि पंचायतों में महिलाओं के आरक्षण की सीमा बढ़ाने से सार्वजनिक जीवन में महिलाओं के सशक्तीकरण की दिशा में मदद मिलेगी। इससे पंचायतों में उनकी हिस्सेदारी बढ़ेगी और स्थानीय स्वशासन में उनका योगदान भी बढ़ेगा। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि यह फैसला लागू करने पर कोई अतिरिक्त वित्तीय खर्च नहीं आएगा।
संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी यू एन एफ पी ए ने अपनी रिपोर्ट में भारत में पंचायतों में आरक्षण के फलस्वरूप महिलाओं में उपजी नई चेतना की सराहना की है l भारत के सभी राज्यों में आज पंचायतों के माध्यम से महिलाएं नए उत्साह और स्फूर्ति के साथ विकास गतिविधियों में योगदान दे रही हैं l पिछले दशक के प्रारम्भ में महिलाओं को आरक्षण मिलने के बाद करीब 25 हजार महिलाएं पंचायतों के लिए चुनी गई थी, परन्तु आज देश भर में लगभग 10 लाख महिलाएं पंच, सरपंच तथा अन्य पदों पर चुनकर ग्रामीण शासन को नई दिशा दे रही हैं l पंचायती राज ब्यवस्था की मध्यावधि समीक्षा के अनुसार 1दिसम्बर, 2006 में तो पंचायतों में महिलाओं का कुल प्रतिनिधित्व 36.7प्रतिशत था l देश में पंचायतों में लगभग 28 लाख, 10 हजार प्रतिनिधि होते हैं, जिनमें से 36.87 प्रतिशत महिलाएँ हैं। देश के कई राज्यों के पंचायतों में महिलाओं का आरक्षण बढ़ाकर 50 प्रतिशत कर देने से निर्वाचित प्रतिनिधियों की संख्या 14 लाख और बढ़ने की संभावना है। संविधान में यह संशोधन नागालैंड, मेघालय, मिज़ोरम, असम के आदिवासी क्षेत्रों, त्रिपुरा, और मणिपुर के पहाड़ी क्षेत्रों को छोड़कर बाकी सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में लागू होगा।
देश की तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने संसद के संयुक्त अधिवेशन को संबोधित करते हुए घोषणा की थी कि पंचायतों में महिलाओं के आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत तक करने के लिए संविधानिक संशोधन किया जाएगा। तत्कालीन सूचना और प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी ने कहा कि शहरी स्थानीय निकायों में भी महिलाओं का आरक्षण बढ़ाने का एक प्रस्ताव अलग से लाया जाएगा। वर्ष-1993 में पास हुए संविधान 73वें एवं 74वें संविधान संशोधन के मुताबिक कुल सीटों में एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित की जाती हैं। तब से लेकर अब तक 16 राज्यों ने पंचायती राज में 50 प्रतिशत का आरक्षण तय कर रखा है। इसमें आंध्र प्रदेश,असम, बिहार, छत्तीसगढ, हिमांचल प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओड़िशा, राजस्थान, तमिलनाडु, त्रिपुरा, उत्तराखण्ड और पश्चिम बंगाल शामिल हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें