चौरी-चौरा कांड ने ही बनाया था भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को गरम दल का क्रांतिकारी...
विवेचना में पक्षपात का उदाहरण है,चौरीचौरा जन प्रतिरोध की जांच रिपोर्ट। अधिकारियों को पढ़ाई जाती है,जांच की फाइल...!!!
देश की आजादी के लिए आंदोलन चल रहा था। साल था,1922 ! महात्मा गांधी का असहयोग आंदोलन पूरे उफान पर था। इसी दौरान यूपी के गोरखपुर के चौरी-चौरा में अंग्रेजी सरकार के खिलाफ प्रदर्शन चल रहा था। 4 फरवरी को भीड़ चौरी-चौरा पहुंची तो आंदोलनकारी बेकाबू हो गए। आंदोलनकारियों ने बिट्रिश सरकार की एक पुलिस चौकी में आग लगा दी। इस घटना में पुलिस चौकी में छिपे 22 पुलिस कर्मचारी जिन्दा जलकर मर गए थे। इसी घटना को इतिहास में चौरी-चौरा कहा जाता है। इस हिंसा के बाद महात्मा गांधी बेहद दुखी हुए। उन्होंने इस घटना के बाद असहयोग आन्दोलन को वापस ले लिया। इस घटना में अंग्रेजों ने 222 लोगों को आरोपी बनाया गया, जिसमें से 19 लोगों को 2 जुलाई, 1923 को फांसी की सजा हुई थी।
क्या है,चौरी चौरा की घटना...???
चौरी-चौरा का जन प्रतिरोध, अंग्रेजी हुकूमत को उखाड़ फेकने को लेकर आम अवाम के मन में सुलग रहे गुस्से का ही नहीं, बल्कि अंग्रेज अधिकारियों के पक्षपातपूर्ण जांच का भी बड़ा उदाहरण है। उस समय जांच में हुए पक्षपात को पुलिस अब भी कलंक की तरह मानती है। पूरी जांच रिपोर्ट मुरादाबाद पुलिस अकादमी की लाइब्रेरी में न केवल रखी हुई है, बल्कि प्रशिक्षु आइपीएस और पीपीएस अधिकारियों को नसीहत के तौर पर पढऩे के लिए भी दी जाती है। इसका उद्देश्य स्वाधीनता संग्राम की बेहद अहम घटना की जानकारी देना तो है ही, उन्हें यह भी समझाना है कि किसी मामले की जांच इस तरह से करें कि किसी पक्ष के साथ अन्याय या पक्षपात न हो।
स्वाधीनता आंदोलन के दौरान असहयोग आंदोलन के समर्थन में चार फरवरी 1922 को चौरी चौरा में प्रदर्शन कर रहे लोगों ने पुलिस वालों के दुर्व्यवहार से आक्रोशित होकर थाने में आग लगा दी थी। घटना में तत्कालीन थानेदार गुप्तेश्वर सिंह सहित 23 पुलिसकर्मियों की जलने से मौत हो गई थी। अंग्रेजी हुकूमत की जड़ें हिला देने वाली इस घटना के बाद पुलिस ने जमींदारों और उनके काङ्क्षरदों की मदद से इलाके में बर्बर अत्याचार शुरू कर दिया। बड़ी संख्या में लोगों को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया। थाना जलाने की घटना की जांच के लिए दो डिप्टी एसपी, एक सर्किल इंस्पेक्टर, एसओ और एक सब इंस्पेक्टर को नियुक्त किया गया। कुछ दिनों के अंदर ही उन्होंने अपनी जांच रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी।2010 बैच के एक आइपीएस अधिकारी बताते हैं कि चौरी चौरा की घटना की जांच रिपोर्ट पढऩे पर साफ तौर पर पता चल जाता है कि अंग्रेज अधिकारियों का उद्देश्य इलाके के अधिक से अधिक लोगों को दंडित करना था, ताकि विद्रोह को कुचला जा सके।
झूठ का पुलिंदा है,जांच रिपोर्ट...
जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि आठ फरवरी 1920 को गांधी जी गोरखपुर आए थे। उनका भाषण सुनकर लौटे चौरी चौरा इलाके के लोगों के मन में स्वराज की चाह की चिंगारी भड़क उठी थी। ऐसे ही लोगों के एक समूह ने थाने को आग के हवाले कर दिया था। यह तथ्य पूरी तरह से गलत है। सच यह है कि महात्मा गांधी आठ फरवरी 1921 को गोरखपुर आए थे। अपने भाषण में उन्होंने सत्य और अङ्क्षहसा के मार्ग पर चलकर स्वाधीनता आंदोलन को मजबूत बनाने का आह्वान किया था। जांच रिपोर्ट में चौरी चौरा थाने के सिपाही रघुबीर सिंह को शहीद बताया गया है। थाने के अंदर मौजूद पुलिस वालों के स्मारक पर भी रघुबीर का नाम शहीद के तौर पर दर्ज है। वही सिपाही रघुबीर सिंह 22 सितंबर 1922 को गोरखपुर के सेशन कोर्ट में क्रांतिकारियों के विरुद्ध गवाह के तौर पर पेश हुआ था। गवाही से जुड़े दस्तावेज के पृष्ठ संख्या 742 पर उसकी गवाही दर्ज है।
जांच रिपोर्ट में प्रदर्शनकारियों से पुलिस वालों के दुर्ब्यवहार का जिक्र नहीं...
जांच रिपोर्ट में शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे प्रदर्शनकारियों से पुलिस वालों के दुर्व्यवहार का जिक्र नहीं किया गया है। एक फरवरी 1922 को डुमरी खुर्द गांव में ग्रामीणों ने बैठक कर चार फरवरी 1922 को मुंडेरा बाजार बंद कराने और असहयोग आंदोलन के समर्थन में प्रदर्शन करने का फैसला लिया था। इसकी जानकारी होने पर बैठक में शामिल मुंडेरा बाजार के दुकानदार भगवान अहिर को थानेदार गुप्तेश्वर सिंह ने बुरी तरह से पीट दिया था, जिसकी वजह से लोगों में काफी आक्रोश था। प्रदर्शन के दौरान पुलिस वालों का दुव्र्यवहार आग में घी का काम किया। जांच रिपोर्ट में इस तथ्य का भी उल्लेख नहीं है। इस तरह की कई और तथ्यात्मक गलतियों से जांच रिपोर्ट भरी पड़ी है। जिन्हें जांच अधिकारी बनाया गया था,उनमें डिप्टी एसपी खान बहादुर सय्यद अशफाक, डिप्टी एसपी सीताराम, इंस्पेक्टर कसया, ख्वाजा अमीद अली, एसओ देवरिया लछुमन सिंह, सब इंस्पेक्टर देवरिया (जांच रिपोर्ट में नाम पठनीय नहीं है) हैं।
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