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रविवार, 7 फ़रवरी 2021

भारत में आजादी के बाद पंचायती राज ब्यवस्था का जानिये स्वरूप

वर्ष-2010में मनाया गया पहला राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस...

देश में पंचायती राज व्यवस्था...

पंचायत हमारी भारतीय सभ्यता और संस्कृति की पहचान है। यह हमारी गहन सूझ-बुझ के आधार पर व्यवस्था-निर्माण करने की क्षमता की परिचायक है। यह हमारे समाज में स्वाभाविक रूप से समाहित स्वावलम्बन, आत्मनिर्भरता एवं संपूर्ण स्वंतत्रता के प्रति निष्ठा व लगाव का घोतक है। पंचायती राज व्यवस्था (उ० प्र०) में ग्राम पंचायत, क्षेत्र पंचायत, और जिला पंचायत आते हैं। पंचायती राज व्यवस्था आम ग्रामीण जनता की लोकतंत्र में प्रभावी भागीदारी का सशक्त माध्यम है। देश में 73वाँ संविधान संशोधन द्वारा एक सुनियोजित पंचायती राज व्यवस्था स्थापित करने का मार्ग प्रशस्त किया गया है।

पंचायती राज में गांव के स्तर पर ग्राम सभा, ब्लॉक स्तर पर मंडल परिषद और जिला स्तर पर जिला परिषद होता है। इन संस्थानों के लिए सदस्यों का चुनाव होता है जो जमीनी स्तर पर शासन की बागडोर संभालते हैं। सिर्फ केंद्र या राज्य सरकार ही पूरे देश को चलाने में सक्षम नहीं हो सकती है। इसके लिए स्थानीय स्तर पर भी प्रशासन की व्यवस्थ की गई है। इसी व्यवस्था को पंचायती राज का नाम दिया गया है। पंचायती राज में गांव के स्तर पर ग्राम सभा, ब्लॉक स्तर पर मंडल परिषद और जिला स्तर पर जिला परिषद होता है। इन संस्थानों के लिए सदस्यों का चुनाव होता है जो जमीनी स्तर पर शासन की बागडोर संभालते हैं।

पंचायती राज पर एक नजर...

एक त्रि-स्तरीय ढांचे की स्थापना की (ग्राम पंचायत, पंचायत समिति या मध्यवर्ती पंचायत तथा जिला पंचायत) हुई
ग्राम स्तर पर ग्राम सभा की स्थापना
हर पांच साल में पंचायतों के नियमित चुनाव
अनुसूचित जातियों/जनजातियों के लिए उनकी जनसंख्या के अनुपात में सीटों का आरक्षण

पंचायती राज की भूमिका...
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी कहते थे कि अगर देश के गांवों को खतरा पैदा हुआ तो भारत को खतरा पैदा हो जाएगा। उन्होंने मजबूत और सशक्त गांवों का सपना देखा था जो भारत के रीढ़ की हड्डी होती। उन्होंने ग्राम स्वराज का कॉन्सेप्ट दिया था। उन्होंने कहा था कि पंचायतों के पास सभी अधिकार होने चाहिए। गांधी जी के सपने को पूरा करने के लिए 1992 में संविधान में 73वां संशोधन किया गया और पंचायती राज संस्थान का कॉन्सेप्ट पेश किया गया। इस कानून की मदद से स्थानीय निकायों को ज्यादा से ज्यादा शक्तियां दी गईं। उनको आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय की शक्ति और जिम्मेदारियां दी गईं।

पंचायती राज कैसे चलता है ?
शुरुआती दिनों में एक सरपंच गांव का सर्वाधिक सम्मानित व्यक्ति होता था। हर कोई उसकी बात सुनता था। यानी गांव के स्तर पर सरपंच में ही सारी शक्तियां होती थीं। लेकिन अब ग्राम, ब्लॉक और जिला स्तरों पर चुनाव होता है और प्रतिनिधियों को चुना जाता है। अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति एवं महिलाओं के लिए पंचायत में आरक्षण होता है। पंचायती राज संस्थानों को कई तरह की शक्तियां दी गई हैं ताकि वे सक्षम तरीके से काम कर सकें।

पंचायती राज व्यवस्था में ग्राम, तालुका और जिला आते हैंभारत में प्राचीन काल से ही पंचायती राज व्यवस्था आस्तित्वा में रही है आधुनिक भारत में पहली बार तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु द्वारा राजस्थान के नागौर जिले के बगदरी गाँव में 2 अक्टूबर, 1959 को पंचायती राज व्यवस्था लागू की गयी इस समय राजस्थान के मुख्यमंत्री ‘मोहनलाल सुखाडिया’ व मुख्या सचिव ‘भगत सिंह मेहता’ थेभगत सिंह मेहता को राजस्थान में व बलवंतराय मेहता को भारत में पंचायती राज का जनक मन जाता है हर साल देशभर में 24 अप्रैल को 'राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस' मनाया जाता हैये दिन भारतीय संविधान के 73वें संशोधन अधिनियम, 1992 के पारित होने का प्रतीक है, जो 24 अप्रैल 1993 से लागू हुआ था जिसके बाद इस दिन को राष्ट्रीय पंचायतीराज दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत साल 2010 से हुई थी

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