ऐसे कुछ ज्वलंत सवाल हैं जो कांग्रेसी वामपंथी सवालों का जवाब हैं...
अटूट प्रतिबद्धता की प्रतीक प्रभु श्रीराम की अयोध्या नगरी...
उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा राम मंदिर निर्माण का अधिकार हिन्दूओं को घर बैठे नहीं मिला है। सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय के लिए हिन्दूओं ने लगभग 28 बरस तक न्यायालयों में लम्बी महाभारत लड़ी है। अतः आज ये सवाल प्रासंगिक हैं कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए न्यायालय में हिन्दूओं द्वारा लड़ी गई, उस महाभारत के दौरान मंदिर के पक्ष में हजारों ऐतिहासिक दस्तावेज एवं प्रमाण को एकत्र कर न्यायालय में प्रस्तुत करने का कार्य क्या विश्व हिन्दू परिषद और आरएसएस के बजाय कोई और कर रहा था ?
हिन्दूओं के बजाय सिब्बल सरीखे कांग्रेसी वकील उस मुस्लिम पक्ष की तरफ से न्यायालय में हर कानूनी दांवपेंच क्यों आजमा रहे थे, जो मुस्लिम पक्ष अयोध्या में राम मंदिर नहीं बनने देने का मुकदमा लड़ रहा था ? श्रीराम मंदिर आंदोलन के लिए कल्याण सिंह, लालकृष्ण अडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, साध्वी ऋतंभरा समेत विश्व हिन्दू परिषद, आरएसएस और भाजपा के अनेक दिग्गजों के खिलाफ मुकदमा आज भी क्यों चल रहा है ?
राम मंदिर आंदोलन के लिए मुकदमा किसी स्वरूपानंद, अविमुक्तेश्वरानंद, प्रमोदकृष्णन, चक्करपाणी तथा किसी भी कांग्रेसी वामपंथी या सपाई नेता के खिलाफ क्यों नहीं चल रहा ? आज उपरोक्त सवाल उन सवालों का जवाब दे रहे हैं जिन सवालों का यह धूर्त राग कांग्रेस और वामपंथियों ने अब अलापना प्रारम्भ किया है कि मंदिर तो सुप्रीम कोर्ट के फैसले के कारण बन रहा है। इसमें आरएसएस विहिप और भाजपा का क्या योगदान ? कांग्रेस व वामपंथी पता नहीं क्यों यह समझ नहीं पा रहे हैं कि हिन्दुओं को यह अधिकार बैठे ठाले उस तरह नहीं मिला है, जिस तरह अगस्ता वेस्टलैंड हेलिकॉप्टर सौदे में फैमिली को सैकड़ों करोड़ की घूस घर बैठे मिल गयी थी।
ध्यान रहे कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए 1934 के 56 वर्ष बाद 1990 में पुनः खून बहा था। 30 अक्टूबर, 1990 की सुबह हुआ पहला लाठीचार्ज उस जत्थे पर हुआ था, जिसका नेतृत्व विश्व हिन्दू परिषद के तत्कालीन अध्यक्ष स्व. अशोक सिंघल कर रहे थे। पहली लाठी भी उन्हीं पर बरसी थी। वह लाठीचार्ज प्रतीकात्मक नहीं था। बल्कि वह लाठीचार्ज इतना भीषण था कि 65 वर्षीय वृद्ध अशोक सिंघल के सिर पर बरसी लाठी ने उनका चेहरा लहू से लथपथ कर दिया था। उनके साथ जो थे उनकी भी वही स्थिति हो गयी थी। उस दिन से लेकर 9 नवंबर, 2019 को सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आने तक, अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण की महाभारत केवल विश्व हिन्दू परिषद और आरएसएस को ही लड़ते हुए देखा है।
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