जब जनविरोधी बबूल बोओगे तो सत्ता का आम्रफल मुझसे कैसे पाओगे...???
सैकड़ों गुर्गों, समर्थकों, चमचों, चाटुकारों की भारी फौज जिस विकास दुबे के पास थी। उस विकास दुबे की लाश को कंधा देने के लिए पुलिस को विकास दुबे के रिश्तेदार या करीबी 4 आदमी नहीं मिले। सिर्फ बहनोई और पत्नी व बच्चे को छोड़ दें तो विकास दुबे के बाप, भाई व रिश्तेदार तक भी विकास दुबे की अंतिम संस्कार में जाने के लिए तैयार नहीं हुए। घर से सिर्फ उसकी पत्नी और बेटा शामिल हुए। पहले पत्नी ऋचा दुबे भी शव लेने से मना कर दिया था। हालांकि दाह संस्कार स्थल पर उसके शव के पास खड़ी उसकी पत्नी भी चिल्ला चिल्लाकर यही कह रही थी कि जो हुआ,ठीक हुआ। चाहे ये बातें झुझलाहट में ही कह रही हो !
अक्ल पर पत्थर पड़ना... |
विकास दुबे की मां, बाप, भाई, बहन, सब यही कह रहे हैं कि पुलिस ने बिल्कुल ठीक किया। उसके पापों का यही नतीजा होना था। उसके गांव समेत पूरे चौबेपुर में जश्न का माहौल है। ऐसे दुर्दांत अपराधी के मारे जाने पर केवल चौबेपुर, कानपुर या उत्तर प्रदेश में ही नहीं बल्कि सोशल मीडिया के माध्यम से पूरे देश में लोग अपनी प्रसन्नता और सन्तोष व्यक्त कर रहे हैं। हर विषय को दो पहलू होते हैं। एक पक्ष का तो दूसरा विपक्ष का ! एक सकारात्मक तो दूसरा नकारात्मक ! ठीक वैसे ही प्रतिक्रिया किसी भी घटना के बाद देखने व सुनने को मिलती है। बिकरू की घटना जो 2 जुलाई को रात एक बजे घटी वो ह्रदय विदारक घटना थी। ईश्वर ऐसी घटना की पुनरावृत्ति न करे। अपराधियों से मुक्त होना है तो उसका राजनीतिकरण बंद करना होगा। किसी भी अपराधी को राजनेताओं को अपना संरक्षण देना बंद करना होगा। पर वो होगा नहीं। फिर दूसरा विकास अपराध की दुनिया में जन्म लेगा और बिकरू की घटना की तरह पुनः वैसी घटना को अंजाम देगा।
आज जो विपक्ष में वो विकास दुबे जैसे अपराधी के अंत पर विधवा विलाप कर रहा है। वो एक बार भी नहीं समझने या मानने के लिए तैयार है कि उसके दल में भी विकास जैसे अपराधी आज भी मौजूद हैं। विकास को अपराध जगत में उन्होंने भी खूब पलने व बढ़ने दिया। कांग्रेस, सपा और बसपा, इन तीनों दलों के नेता विकास दुबे के एनकाउंटर को फर्जी सिद्ध करने की हर संभव कोशिश करने में जुटे हुए हैं। कांग्रेस और सपा का तो इतिहास रहा है कि वो देश के विरोध में आतंकियों का भी मुकदमा लड़ा और रात में सुप्रीम कोर्ट और देश के महामहिम राष्ट्रपति का दरवाजा तक खटखटाया था। विकास दुबे का एनकाउंटर जो उत्तर प्रदेश पुलिस ने किया उसका विरोध तो वो करेंगे ही। उनसे कौन पूछे कि ये भयंकर हुड़दंग और हंगामा विकास जैसे अपराधी की मौत पर आखिर वो क्यों कर रहे हैं ? अक्ल पर पत्थर पड़ना इसी को कहते हैं। अपनी ऐसी करतूतों के कारण ही पिछले 6 साल से इन तीनों दलों के नेताओं को हर चुनाव में EVM के खिलाफ अपनी छाती लगातार कूटनी पड़ रही है। बेचारी मूक EVM इनको यह समझा भी नहीं पा रही है कि जब जनविरोधी बबूल बोओगे तो सत्ता का आम्रफल मुझसे कैसे पाओगे...?
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