मई,1987मेरठ का हाशिमपुरा और मलियाना की घटना भुलाए नहीं भूलती...
केंद्र और प्रदेश दोनों जगह कांग्रेस का शासन था। शांतिप्रिय समुदाय ने मेरठ के हर मोहल्ले में कत्ले आम मचा रखा था। 1984, 1985 और अब 1987 में जब चाहे हिन्दुओं का गला काटा जा रहा था। दुकानों और प्रतिष्ठानों को लूटा जा रहा था। हिंदू लडकियों के साथ बलात्कार तो आम बात हो चली थी। मई महीने तक चले इस वीभत्स घटना का एक मनहूस दिन भी आया। कालेज से निकली बच्चियों के स्तन काट डाले गए। बेटियों को सड़को पर निर्वस्त्र कर इज्जत लूट ली गयी। रौंगटे खड़े कर देनी वाली इन जघन्य घटनाओं को देखकर, दंगे रोकने के लिए तैनात, PAC का संयम और धैर्य जवाब दे रहा था। अपनी बेखौफी के लिए जाने जानी वाली PAC आखिर अपराधियों की धरपकड़ करने के लिए उनके इलाके में घुस ही गयी।
वही हुआ,जो होना था...
दंगाइयो ने PAC के जवानो को घेर लिया। तलवार और पत्थरों से उन पर हमला कर दिया। फिर 22 मई, 1987 वाले दिन जांबाज PAC के जवानों ने वो किया कि हर छह महीने में होने वाले दंगे आज बत्तीस साल बाद भी, फिर कभी मेरठ में नहीं हुए।
"42 दंगाइयों का फैसला ऑन द स्पॉट"
इस वाकये से हिन्दुओ में गर्व की अनुभूति की लहर दौड़ गयी। खुशी का ठिकाना न रहा। बतासे बाँटे गए। पी ए सी के उन जवानों को भगवान का दर्जा दिया गया। हर हिंदू उन जवानों के गुणगान करता नहीं अघाता था। PAC मतलब मजहबियों से हमारी बहन बेटियो की सुरक्षा की गारंटी। लेकिन, जरा सोचिए। पीएसी के उन जांबाज जवानों को क्या मिला ? इन्क्वारी बैठाई गयी। मुकदमा चला। सब के सब सस्पेंड कर दिए गए। नौकरी चली गयी। सस्पेंशन के दौरान उनको सरकार से सिर्फ एक हजार महीने का भत्ता मिलता था। उनका भरा पूरा परिवार बर्बाद हो गया। बच्चे भूखों मरने पर मजबूर हो गए। आखिर में 31 साल बाद 2018 में 17 जांबाज जवानों को जिम्मेदार ठहरा दिया गया और 70-75 की उम्र में उनको ताउम्र सड़ने के लिए जेल में ठूँस दिया गया।
इस वाकये से हिन्दुओ में गर्व की अनुभूति की लहर दौड़ गयी। खुशी का ठिकाना न रहा। बतासे बाँटे गए। पी ए सी के उन जवानों को भगवान का दर्जा दिया गया। हर हिंदू उन जवानों के गुणगान करता नहीं अघाता था। PAC मतलब मजहबियों से हमारी बहन बेटियो की सुरक्षा की गारंटी। लेकिन, जरा सोचिए। पीएसी के उन जांबाज जवानों को क्या मिला ? इन्क्वारी बैठाई गयी। मुकदमा चला। सब के सब सस्पेंड कर दिए गए। नौकरी चली गयी। सस्पेंशन के दौरान उनको सरकार से सिर्फ एक हजार महीने का भत्ता मिलता था। उनका भरा पूरा परिवार बर्बाद हो गया। बच्चे भूखों मरने पर मजबूर हो गए। आखिर में 31 साल बाद 2018 में 17 जांबाज जवानों को जिम्मेदार ठहरा दिया गया और 70-75 की उम्र में उनको ताउम्र सड़ने के लिए जेल में ठूँस दिया गया।
कहाँ गए उनको भगवान मानने वाले लोग...???
कहाँ गए मेरठ के सर्राफा बाजार के सेठ..? जिनके व्यापार को उन जांबाज जवानों ने जीवन दान दिया...?
कहाँं गए वो हिंदू जिनकी बेटियों के भविष्य में स्तन न कटने की उन जांबाज जवानों ने गारंटी दी थी...?
कोई मुझे बताए कि किसने आर्थिक या किसी भी तरह की सहायता की उन जांबाज जवानों की...?
किस हिन्दुवादी संगठन और हिंदूवादी पार्टी ने उन जवानों की सुध ली...?
हम हिन्दू प्रजाति के लोग भुलक्कड़ हो गए हैं। हमारा खून ठंढा पड़ चुका है। जिस संस्कार और संस्कृति की रक्षा के लिए जान की बाजी लगा देते थे। आज अपना अस्तित्व भूला बैठे हैं। जिनको अपने पेट पालने के अलावा कुछ सूझता भी नहीं है।
➤पियूष कुमार जी की कलम से...
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