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सोमवार, 13 जुलाई 2020

असफलता ही सफलता की कुंजी है

सफलता को तो सब सेलिब्रेट करते हैं, लेकिन असफलता को कोई सेलिब्रेट नहीं करता। लेकिन जिस दिन कोई अपनी असफलता को सेलिब्रेट करना सीख जाए, उस दिन से सफलता स्वयं उसके कदम चूमेगी...

असफलता से सफलता का राज कोई अनुपम खेर से सीखे...
आज आये CBSE कक्षा 12 की परीक्षा के परिणामों में असफल हुए छात्रों विशेषकर उनके अभिभावकों के लिए है, जो 3वर्ष पहले मेरे द्वारा अपनी फेसबुक वाल पर एक पोस्ट में लिखी गयी यह कहानी है। सफलता का शिखर चूम चुके एक विख्यात व्यक्ति की असफलता की यह ऐसी कहानी है, जिसका मर्म जिसने भी समझ लिया तो उसके जीवन मे असफलता कभी आसपास नहीं फटकेगी। हिमांचल की राजधानी शिमला में एक बालक अपने मध्यम वर्गीय परिवार में अपने सरकारी कर्मचारी पिता के साथ रहता था। शिमला में उन दिनों एक रेस्टोरेंट बहुत प्रसिद्ध था। अतः जाहिर है कि बहुत महंगा भी था। इसलिए उस बालक के पिता वर्ष में एकाध बार ही पूरे परिवार को उस रेस्टोरेंट में ले जा पाते थे।
एक दिन शाम को ऑफिस से वापस आते ही पिता ने केवल उस बालक को ही तैयार होने के लिए कहा तथा उसे अपने साथ लेकर उसी रेस्टोरेंट में पहुंच गए। उन्होंने अपने पुत्र से कहा कि तुम्हारी जो मर्जी हो वो मंगवाओ और खाओ। जो तुम्हे सर्वाधिक प्रिय हो वही डिश मंगवाओ और जी भरकर खाओ। बालक सुखद आश्चर्य में डूबा हुआ था कि आज ऐसा क्या खास है कि पिता जी केवल मुझे यहां लेकर आये और इस तरह पेश आ रहे हैं। अंततः असमंजस में डूबे बालक ने पिता से कारण पूछ ही लिया। पिता ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया कि पहले ठीक से खा पी लो फिर कारण भी बताऊंगा
थोड़ी देर बाद पिता पुत्र की वह विशेष दावत खत्म हुई तो उठने से पहले बालक ने पिता से वही प्रश्न किया। इस बार पिता ने उससे बताया कि आज ऑफिस से आते समय मैं शिक्षा विभाग के कार्यालय में तुम्हारा परीक्षा परिणाम देखते हुए लौटा था। (उन दिनों बोर्ड का परिणाम सम्भवतः पहले ऑफिस में आ जाता था) पिता ने बेटे को बताया कि मै परिणाम देखकर आया हूं और तुम फेल हो गए हो ! पिता से यह सुनकर बालक सन्न रह गया था। उसकी समझ मे ही नहीं आ रहा था कि क्या कहूं, क्या करूँ...?
अंततः उसके पिता ने ही उसे उस दुविधा से बाहर निकाला था। उन्होंने अपने पुत्र से कहा था कि आज मैं तुम्हे इस रेस्टोरेंट में शर्मिंदा करने के लिए कतई नहीं लाया हूं। तुमसे नाराज़ भी नहीं हूं। तुमको आज यहां इसलिए लाया हूं ताकि तुमको यह सिखा सकूं कि सफलता को तो सब सेलिब्रेट करते हैं, लेकिन असफलता को कोई सेलिब्रेट नहीं करता। लेकिन बेटा जिस दिन अपनी असफलता को सेलिब्रेट करना सीख जाओगे, उसदिन से सफलता स्वयं तुम्हारे कदम चूमेगी।
धन्य थे वो पिता और धन्य है, उनका वह पुत्र जिसने उनके उस सन्देश के मर्म को समझा था। आज उस पुत्र को हम आप और पूरा देश अनुपम खेर के नाम से जानता है। सन 2000 या 2004 में आकाशवाणी के विविध भारती चैनल में अनुपम खेर का वह इंटरव्यू जिसमें उन्होंने यह प्रसंग सुनाया था, मैं आज तक नहीं भूला, संभवतः जीवन भर भूलूंगा भी नहीं। पिछले वर्ष-2019 में प्रकाशित अपनी आत्मकथा में भी अनुपम खेर ने उपरोक्त प्रसंग का जिक्र किया है
प्रस्तुति :- सतीश मिश्र

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