चिंगारी आजादी की सुलगती मेरे जिस्म में हैं,
इंकलाब की ज्वालाएं लिपटी मेरे बदन में हैं,
मौत जहां जन्नत हो यह बात मेरे वतन में है,
कुर्बानी का जज्बा जिंदा मेरे कफन में है...
“मलते रह गए हाथ शिकारी... उड़ गया पंछी तोड़ पिटारी...
अंतिम गोली ख़ुद को मारी... जियो तिवारी, जनेऊधारी..!!!”
#ChandraSekharAzad
मेरा नाम आजाद है, मेरे पिता का नाम स्वतंत्रता और मेरा घर जेल है... |
आजाद काकोरी कांड में शामिल थे उनके अंडर में 10 क्रांतिकारियों ने काकोरी में ट्रेन लूटी जिसमें फिरंगियों का पैसा जा रहा था। सारे पैसे अंग्रेज सिपाहियों के कंधे पर गन तानकर लोहे के उस बक्से से निकाल लिया गया। जो पैसे आज़ाद और उनके साथियों ने लूटे थे वो बहुत थे और अंग्रेजी हुकूमत के थे तो जाहिर सी बात है उसके लिए अंग्रेज खून देने और लेने दोनों पर उतारू हो गए थे। जिन लोगों ने ट्रेन को लूटा था उनको गोरे सिपाहियों ने खोज-खोज कर मारना शुरू किया, 5 उनकी पकड़ में आ गए। गोरों ने उन्हें मौत के घाट उतार दिया। आजाद भेस बदलने में माहिर थे, वो एक बार फिर से अंग्रेजों से बच निकले। नंगे पैर विंध्या के जंगलों और पहाड़ों के रास्ते चलकर वो जा पहुंचे कानपुर, जहां उन्होंने एक नई क्रांति की शुरुआत की।
इस काम में भगत सिंह भी शामिल थे। काकोरी कांड के बाद अंग्रेजी पुलिस उनके पीछे पड़ गई थी। वे सांडर्स की हत्या, काकोरी कांड और असेंबली बम धमाके के बाद फरार होकर झांसी आ गए थे, उन्होंने अपनी जिंदगी के 10 साल फरार रहते हुए बिताए जिसमें ज्यादातर समय झांसी और आसपास के जिलों में ही बीताया था। इसी बीच उनकी मुलाकात मास्टर रुद्रनारायण सक्सेना से हुई। वे स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे, दोनों के बीच में दोस्ती का बीज डालने के लिए ये वजह काफी थी। चंद्रशेखर आजाद कई सालों तक उनके घर पर रहे।अंग्रेजों से बचने के लिए वे अक्सर एक कमरे के नीचे बनी गुप्त जगह (इसे तालघर कहा जाता था, अब ये बंद कर दिया गया है) में छिप जाते थे, इतना ही नहीं वे साथियों के साथ मिलकर वहीं पर प्लान भी बनाते थे।
इस काम में भगत सिंह भी शामिल थे। काकोरी कांड के बाद अंग्रेजी पुलिस उनके पीछे पड़ गई थी। वे सांडर्स की हत्या, काकोरी कांड और असेंबली बम धमाके के बाद फरार होकर झांसी आ गए थे, उन्होंने अपनी जिंदगी के 10 साल फरार रहते हुए बिताए जिसमें ज्यादातर समय झांसी और आसपास के जिलों में ही बीताया था। इसी बीच उनकी मुलाकात मास्टर रुद्रनारायण सक्सेना से हुई। वे स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे, दोनों के बीच में दोस्ती का बीज डालने के लिए ये वजह काफी थी। चंद्रशेखर आजाद कई सालों तक उनके घर पर रहे।अंग्रेजों से बचने के लिए वे अक्सर एक कमरे के नीचे बनी गुप्त जगह (इसे तालघर कहा जाता था, अब ये बंद कर दिया गया है) में छिप जाते थे, इतना ही नहीं वे साथियों के साथ मिलकर वहीं पर प्लान भी बनाते थे।
रूद्र नारायण पाण्डेय जी द्वारा बनायीं गयी आजाद जी का पोट्रेट... |
रुद्रनारायण क्रांतिकारी होने के साथ-साथ अच्छे पेंटर भी थे। एक हाथ में बंदूक और दूसरे से मूंछ पकड़े चंद्रशेखर आज़ाद का फेमस वाला पोट्रेट उन्होंने ही बनाया था। इसे बनाने के लिए रुद्रनारायण ने आज़ाद को काफी समय तक उसी पोज में खड़ा रखा था ।बताया जाता है कि अंग्रेज आज़ाद को पहचानते नहीं थे, जब उन्हें इस तस्वीर की जानकारी हुई तो वे मुंहमांगी रकम देने को तैयार हो गए थे। इसके अलावा एक और फोटो भी है, जिसमें वे रुद्रनारायण की पत्नी और बच्चों के साथ बैठे हैं।ये वक्त ऐसा था जब रुद्रनारायण के घर की स्थिति अच्छी नहीं थी।आज़ाद से ये देखा न गया, वो सरेंडर के लिए तैयार हो गए ताकि जो इनाम के पैसे मिलें उससे उनके दोस्त का घर अच्छे से चल सके। चंद्रशेखर आज़ाद का अंदाज और साहस आज भी मास्टर रुद्रनारायण के घर में बसा हुआ है। वो पलंग आज भी यहां है, जिस पर आज़ाद बैठा करते थे।
माता -पिता को भी त्याग दिया था भारत माता के आज़ादी के लिए आज़ाद ने ...आजाद जी की जयंती पर सभी स्वतंत्रता संग्रामियों को शत शत नमन... |
काफी मेहनत के बाद वो दिन आया पर अंग्रेज आज़ाद को फिर भी जिंदा नहीं पकड़ पाएकाफी मेहनत के बाद वो दिन आया पर अंग्रेज आज़ाद को फिर भी जिंदा नहीं पकड़ पाए। 27 फरवरी 1931 को आज़ाद प्रयाग के अल्फ्रेड पार्क में छिपे थे। मीटिंग के लिए वो अपने बाकी दोस्तों का इतंजार कर रहे थे। आज़ाद की अपने ही एक साथी से किसी बात को लेकर बहस हो गई थी, इसका बदला लेने के लिए आज़ाद के साथी ने उनसे गद्दारी की और आज़ाद के पार्क में छिपे होने की बात अंग्रेजों को बता दी।
दुश्मन की गोलियों का हम सामना करेंगे,आज़ाद ही रहे हैं,आज़ाद ही रहेंगे... |
इतना काफी था उनके लिए, पूरी फौज लेकर पहुंच गए और बाहर से पार्क को घेर लिया और दनादन फायरिंग शुरू कर दी। अचानक हुए इस हमले औऱ साथी की गद्दारी दोनों से आज़ाद बेखबर थे। उनके पास एक ही पिस्तौल थी और गिनी हुई गोलियां। वो लड़ते रहे, सिर्फ अंग्रेजों पर गोलियां दागीं ताकि उनके साथी को चोट न पहुंचे और कम गोलियों में अंग्रेजों को ढेर कर सकें। अंत में उनके पिस्तौल में सिर्फ एक गोली बची, जिसे उन्होंने अपने आप को मार ली और जिंदा न पकड़े जाने की कसम को पूरा किया। जाते-जाते वो एक शेर बोल गए...
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