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शनिवार, 20 जून 2020

4000 भारतीय सैनिकों के उस बलिदान के साथ कांग्रेस की सरकार ने देशघाती विश्वासघात क्यों किया था ?

राहुल गांधी जिस राजनीतिक निकृष्टता पर उतारू हो गया है, उसके कारण उपरोक्त सवाल आज बहुत प्रासंगिक और अत्यन्त महत्वपूर्ण हो गया है...

 कांग्रेस के युवराज राहुल को राजनीति में नहीं आ पाई परिपक्वता...
उसी युद्ध में जिस पूर्वी पाकिस्तान को भारतीय सेना ने जीता था, उस पूर्वी पाकिस्तान को तत्कालीन कांग्रेसी सरकार ने इस्लामी राष्ट्र बनाने के लिए मुसलमानों को ही दे दिया था एक इंच जमीन भारत को नहीं मिली थी। उस इस्लामी राष्ट्र बांग्लादेश में भी मन्दिरों को उसी तरह ध्वस्त किया जाता है, उसी तरह हिन्दूओं का उत्पीड़न होता है, जिस तरह पाकिस्तान में ये सब होता है यह उन 4000 भारतीय सैनिकों के प्राणों के साथ तत्कालीन कांग्रेसी सरकार द्वारा किया गया शर्मनाक विश्वासघात था, जिसका भयंकर दुष्परिणाम बांग्लादेश के हिन्दू पिछले 49 बरसों से भोग रहे हैं


फील्ड मार्शल सैम बहादुर मानेक शॉ...
ज्ञात रहे कि वर्ष-1971 के भारत पाक युद्ध में 4000 भारतीय सैनिकों ने अपने प्राणों का बलिदान देकर तथा 12 हजार भारतीय सैनिकों ने बुरी तरह घायल होकर (अपना रक्त बहा कर) 90000 पाकिस्तानियों को बंदी बना के तत्कालीन कांग्रेसी सरकार के चरणों में लाकर डाल दिया था। राहुल गांधी जिस राजनीतिक निकृष्टता पर उतारू हो गया है, उसके कारण उपरोक्त सवाल आज बहुत प्रासंगिक और अत्यन्त महत्वपूर्ण हो गया हैपूर्वी पाकिस्तान में ढाका तक तथा पश्चिमी पाकिस्तान में लाहौर तक घुस कर भारतीय सेना ने भारतीय तिरंगा फहरा दिया था। कराची बंदरगाह और पाकिस्तानी नौसेना के अड्डे को भारतीय नौसेना ने नेस्तनाबूद कर दिया था। लेकिन 4000 भारतीय सैनिकों ने अपने प्राणों का बलिदान देकर जिस अविस्मरणीय अविश्वसनीय सफलता का स्वर्णिम इतिहास रचा था उसका देश को क्या लाभ मिला था...???


 कांग्रेस का हाथ दुश्मनों के साथ...
जिस पश्चिमी पाकिस्तान के लाहौर तक भारतीय फौज ने कब्जा कर लिया था उस पश्चिमी पाकिस्तान की एक-एक इंच जमीन तत्कालीन कांग्रेसी सरकार ने पाकिस्तान को वापस कर दी थी 90000 पाकिस्तानी सैनिकों को बिना शर्त रिहा कर ससम्मान वापस पाकिस्तान भेज दिया था। इसके बदले में पश्चिमी पाकिस्तान की तो बात छोड़िए, तत्कालीन कांग्रेसी सरकार ने पाकिस्तान के कब्जे वाले हमारे कश्मीर तक की एक इंच भूमि भी पाकिस्तान से वापस नहीं ली थी स्थायी सीमा तक का निर्धारण नहीं कराया था जबकि हमारी भारतीय सेना के शौर्य और पराक्रम से थर्राया घबराया पाकिस्तान उस समय घुटनों के बल बैठकर दया की भीख मांग रहा था लेकिन तत्कालीन कांग्रेसी सरकार ने उन 4000 भारतीय सैनिकों के बलिदान के साथ भयानक विश्वासघात करते हुए। भारत के हित के बजाय पाकिस्तान के हित का पूरा ध्यान रखते हुए पाकिस्तान की हर शर्त हर मांग मान ली थी 

सेना के जवानों पर शक करना और सवाल उठाना स्वयं के लिए अपनी कब्र खोदने जैसा...
पूरी दुनिया के इतिहास में यह अकेला ऐसा शर्मनाक उदाहरण है जिसमें युद्ध में विजयी हुए देश ने युद्ध में बुरी तरह पराजित हुए देश की शर्तों और मांग के अनुसार समझौता किया था। तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल मानेक शॉ ने उस समझौते का जबर्दस्त विरोध खुलकर किया था उस समझौते से आहत होकर उस समय अनेक सैन्य अधिकारियों ने कहा था कि हम अपना खून बहा कर एक एक इंच जमीन जीतते हैं लेकिन आप उस जमीन को समझौतों की टेबिल पर चाय की चुस्कियां लेते हुए वापस कर देते हैं। सेना के उपरोक्त विरोध से खिसियाई तत्कालीन कांग्रेसी सरकार ने ज़वाब में सेना से "वन रैंक वन पेंशन" की वो सुविधा छीन ली थी जिसको 2014 में सत्ता में आने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने सेना को पुनः प्रदान किया है। तब तक फील्ड मार्शल बन चुके जनरल मानेक शॉ को भी तत्कालीन कांग्रेसी सरकार ने जमकर अपमानित किया था उनकी पेंशन तक रोक दी थी 2008 में उनकी मृत्यु के पश्चात हुए अन्तिम संस्कार में तत्कालीन कांग्रेसी यूपीए सरकार का कोई अदना मंत्री या अधिकारी तक जनरल मानेक शॉ को श्रद्धांजलि देने नहीं गया था 


 पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी...
अपने नेतृत्व में देश की सेना को देश के लिए अविस्मरणीय अविश्वसनीय विजय दिलाने वाले महानायक का किसी सरकार द्वारा ऐसा अपमान किए जाने का शर्मनाक और निकृष्ट उदाहरण दुनिया में कोई दूसरा नहीं हैध्यान रहे कि तत्कालीन कांग्रेसी सरकार की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी कोई और नहीं बल्कि राहुल गांधी की दादी थी अतः आजकल राजनीतिक निकृष्टता पर उतारू हो चुका राहुल गांधी देश को यह बताए कि उन अमर बलिदानी 4000 भारतीय सैनिकों के उस बलिदान के साथ कांग्रेस की तत्कालीन कांग्रेसी सरकार ने देशघाती विश्वासघात क्यों किया था ? आज यह सवाल देश के हर नागरिक तक पहुंचाना हमारा आपका सबका दायित्व है। 

भारत का इस्लाम के नाम पर विभाजन कितना उचित था...???
भारत का इस्लाम के नाम पर विभाजन करने के बाद भी भारत को मुस्लिमों के लिए सबसे बड़ी संख्या का देश बनाकर ही अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में मॉडर्न सेक्युलरिज्म का स्वरूप तथा अपने दल के लिए वोटबैंक बनाने की सोच इंडिया दैट इज भारत का आधार रही है। इसका लाभ पाकिस्तान बांग्लादेश ने लेकर अपने देशों में भारतीय पंथों के अल्पसंख्यक वर्ग को लगभग नगण्य कर इस्लामी देशों के रूप में राजकीय पहचान बनाई है। यही कारण है कि आज भी मुस्लिम इस्लामी उम्मा की पहचान के साथ भारत का इस्लामीकरण करने के लिए शरीयत के सत्ता से संघर्षरत है। अतः सैन्य शक्ति से विजित भूमि टेबल टॉक समझौते में शास्त्री जी व इन्दिरा जी ने गंवाई है तथा नेहरु जी ने तो बार बार थप्पड़ खाकर भी कुछ नहीं हुआ कहने में संकोच नहीं किया है। इस देश की पहचान को लेकर जब तक यह फरेब छल को रखा जाएगा, तब तक आंतरिक व बाह्य दोनों मोर्चे पर संकट बना रहेगा..."
प्रस्तुति : - सतीश मिश्र  

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