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सोमवार, 15 जून 2020

जातीय वैमनस्यता को दबाने और विपक्षी दलों को मात देने के लिए पर्दे के पीछे से अनुप्रिया पटेल को आगे कर कहीं भाजपा का शीर्ष नेतृत्व ही तो नहीं खेल रहा है खेल !

पूर्व केन्द्रीय राज्यमंत्री अनुप्रिया पटेल और अपना दल एस की मुखिया आखिर किसके इशारे पर नाच रही हैं...???
पट्टी के गोविन्दपुर में अनुप्रिया पटेल ने साधा योगी सरकार और उनके मंत्री मोती सिंह पर निशाना 
राजनीति का खेल बहुत गंदा होता है। ये न अपना देखता है और न पराया बस राजनीति के रास्ते में फायदे की ही बात सबसे आगे होती है और उसी को नेता भी स्वीकार करता है। फिल्म नायक में राजनीति का घिनौना स्वरूप जनता को दिखाया गया था वो भले ही पर्दे पर दिखाया गया था,परन्तु हकीकत में राजनीति की शक्ल उससे भी घिनौनी है। राजनीति में ये तो कहा गया और देखा भी गया है कि बहुत देर तक कोई किसी का न तो मित्र रहा है और न ही शत्रु ! जब उत्तर प्रदेश में सत्ता के लालची समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के  नेता एक ही तम्बू के नीचे आकर राजनीति कर सकते हैं और मौका मिलते ही अलग हो लेते हैं। बिहार में इसी सत्ता सुख की खातिर नितीश कुमार लालू प्रसाद की पार्टी से गठबंधन कर जनादेश लेते हैं और बाद में उसी गठबंधन को लात मारकर भाजपा के साथ सरकार बना लेते हैं। बात यहीं खत्म नहीं होती अभी हाल ही में दो दशक पुराने गठजोड़ भाजपा और शिवसेना में गठबंधन करके महाराष्ट्र का जनादेश लिया और कुर्सी की रार में शिवसेना उससे गले लग गई जिसका उसने जीवन भर विरोध किया था। 


गोविंदपुर में अनुप्रिया पटेल के सामने लगे मंत्री मोती सिंह एवं योगी सरकार विरोधी नारे...
सूबे में अभी चुनाव 2 वर्ष बाद होंगे, परन्तु राजनीतिक दलों ने अपनी-अपनी दुकाने सजाने का कार्य प्रारम्भ कर दिया है। बस राजनीति के जानकारों को पता चल जाए कि अमुक स्थान पर उसे इस कार्य को कर लेने में फायदा हो सकता है फिर देखिये कि ये राजनीतिक लोग कैसे अपना पैर अपने सिर पर रखकर उस स्थान की ओर दौड़ लगा देते हैं। विश्वास न हो तो प्रतापगढ़ में पट्टी क्षेत्र के गोविंदपुर-धुई गाँव में हुई आपसी मारपीट की घटना को देखा जा सकता है गोविंदपुर-धुई गाँव को राजनीतिक दलों ने राजनीति का अखाड़ा बना दिया पहले विपक्षी दलों के नेता पट्टी के गोविंदपुर की तरफ राजनीतिक लाभ के लिए दल बल के साथ कूच किया और बाद में केंद्र और प्रदेश की सरकार में सहयोगी दल अपना दल एस भी कूद पड़ा सपा, बसपा, कांग्रेस, ओम प्रकाश राजभर और कृष्णा पटेल का विरोध और अपना राजनीतिक नफा नुकसान तो समझ में आता है,परन्तु उन्हीं विपक्षियों  के साथ मिलकर अपना दल एस की राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल द्वारा पट्टी में जातीय रंग देकर तूल देने की बात हर किसी को समझ नहीं आई। 


 मीडिया के सवालों से झुंझलाई अनुप्रिया पटेल मीडिया को ही देने लगी नसीहत...
अपना दल एस की राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल धारा-144, महामारी एक्ट की धज्जियाँ उड़ाते हुए गठबंधन दल के ऊपर जिस तरह कालिख पोती उसकी चंहुओर निंदा हो रही है। आम जनता भी इस खेल को समझना चाहती है, जिसे अनुप्रिया पटेल विपक्षियों के इशारे पर खेल रही हैं। राजनीति की थोड़ा बहुत भी समझ रखने वाले लोग दूसरा पहलू भी झाँकने से बाज नहीं आये। उनका तो ये कहना है कि भाजपा शीर्ष नेतृत्व के इशारे पर विपक्षियों को नेस्तानाबूत करने के लिए अपने सहयोगी दल को जानबूझकर प्रतापगढ़ के पट्टी में विपक्षियों द्वारा लगाई गई आग में अपना घी डालकर उस क्रेडिट को खत्म कर देना चाहती है। लिहाजा अनुप्रिया पटेल के कंधे पर बन्दूक रखकर गोविंदपुर में दगाने का कार्य किया है। ताकि विपक्ष के लोग इसके बाद से धुई और गोविंदपुर भूल जाएं। इसके पीछे का तर्क ये है कि जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन अपने मुंह पर फेविक्विक लगाकर चिपका लिया था कि अनुप्रिया पटेल और योगी के राज्यमंत्री जैकी एवं प्रतापगढ़ के सदर विधायक राजकुमार पाल उर्फ करेजा के विरुद्ध मुकदमा न लिखने का कोई कारण न पूँछ ले ! 


 पट्टी,गोविंदपुर गाँव में तनाव के बीच सहयोगी दल अनुप्रिया पटेल के विषय में जवाब देते मंत्री मोती सिंह...
भाजपा की दूसरी लॉबी अपना दल एस के विश्वनाथगंज विधायक एवं अपना दल एस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉ आर के वर्मा ने अपनी राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल के खिलाफ बिगुल बजा दिया है। ये माया सिर्फ और सिर्फ भाजपा और भाजपाई ही समझ सकते हैं। भाजपा में वैसे भी पर करतने की पुरानी धारणा है। जिस तरह बकरे को काटने के पहले उसके माथे पर टीका लगाया जाता है, ठीक उसी तरह भाजपा में भी उस नेता को जपने से पहले उसका खूब सत्कार किया जाता है। जिस तरह बिहार में दोनों सिन्हा को किनारे किया गया और अपनी ही पार्टी के दो वरिष्ठ नेताओं एल के आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी को किनारे लगा दिया गया। गठबंधन के रूप में सुहेलदेव भारतीय समाज के मुखिया ओम प्रकाश राजभर जो योगी सरकार में मंत्री रहे उन्हें भी समय आने पर भाजपा ने जप दिया। अब बारी है गठबंधन दल के रूप में अपना दल एस और उसकी मुखिया अनुप्रिया पटेल को किनारे लगाने का समय आ गया है भाजपा के रणनीतिकार उन्हें भी किनारे लगाने की पूरी जुगत में हैं। 

सारे राजनीतिक दलों के नेताओं द्वारा पट्टी के गोविंदपुर के मामले में तूल तो पकड़ा दिया, परन्तु पीड़ित को इसका लाभ नहीं मिल रहा है। वो तो लगातार किसी न किसी साजिश का शिकार हो रहा है। कभी सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने का तो कभी जातीय वैमनस्यता फैलाने का ! सच्चाई तो यही है कि राजनीतिक दलों के नेता आये और जख्मों को कुरेद कर चले गए। पर झेलना तो गाँव वालों को ही पड़ रहा है। अब तो उत्तर प्रदेश का विधान चुनाव- 2022 तक इस मामले को राजनीतिक दलों के नेताओं द्वारा इसे इसी तरह गर्म रखा जाएगा। जिसका जो नुकसान हो उससे इन राजनीतिक दलों के लोगों का कोई लेना देना नहीं है। इन्हें तो अपनी बंद पड़ी राजनीतिक दुकान चलने से मतलब है। तभी तो राजनीतिक दलों के नेताओं द्वारा गोविन्दपुर के मामले को पिछड़ा वर्ग आयोग में ले जाया गया है। उत्तर प्रदेश राज्य पिछड़ा आयोग भी गोविन्दपुर के मामले को संज्ञान लेकर उसे अपने यहाँ दर्ज कर उसमें 16 जून को सुनवाई लगा दिया है। इस मामले में स्थानीय विधायक व प्रदेश सरकार के काबीना मंत्री राजेन्द्र प्रताप सिंह "मोती" का नाम घसीटा गया है। इस मामले में वर्मा विरादरी के तहरीर पर दूसरे पक्ष के वर्मा विरादरी के लोगों पर रिपोर्ट दर्ज हुई है। मामले के विवेचक भी वर्मा विरादरी से है। 

ऐसे में इस मामले की सुनवाई पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा किया जाना विधि सम्मत प्रतीत नहीं हो रहा है। प्रावधान यह है कि वादी-प्रतिवादी यदि अलग अलग जाति के होते तो आयोग को सुनवाई करने का पूरा अधिकार था, किंतु यहाँ तो एक ही विरादरी के बीच हुए मामले की सुनवाई आयोग कर रहा है। हालांकि मंत्री मोती सिंह का नाम इस मामले में घसीटे जाने व अनुप्रिया पटेल व सदर विधायक राजकुमार पाल के सामने विरोध में नारेबाजी के बाद मंत्री मोती सिंह भी एक्शन में आ गए है। उन्होंने मामले को मुख्यमंत्री के साथ ही भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं प्रदेशध्यक्ष के संज्ञान में लाने के बाद पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष भगवान सिंह साहनी को पत्र भेजकर पूरे घटना क्रम से अवगत करा दिया है। पत्र में कहा गया है कि मेरे विधान सभा में दो पक्षों के बीच मारपीट की घटना को विपक्षी दलों के साथ मिलकर सहयोगी दल की नेता अनुप्रिया पटेल ने तूल देने का काम किया है। एक पक्ष के लोग सपा-बसपा व कांग्रेस के समर्थक हैं और पीड़ित पक्ष भाजपा का बूथ व सेक्टर प्रभारी है। मामले की न्याययोचित कार्यवाही कर रही पुलिस को जांच के नाम पर उत्तर प्रदेश राज्य पिछड़ा आयोग के अधिकारीगण अपने पद व दायित्यों का दुरुपयोग कर रहे हैं। 

फिलहाल इस मामले में विपक्षी दलों से साठ-गांठ करके सहयोगी दल की नेता अनुप्रिया पटेल जो रोल अदा कर रही हैं उसकी चहुँओर निंदा हो रही है। बड़ा सवाल यह है कि इस घटना में चोट खाये दूसरे पक्ष के वर्मा विरादरी के साथ वर्मा विरादरी के घायल पुलिस कर्मियों को न्याय कब मिलेगा ? अनुप्रिया पटेल व उत्तर प्रदेश राज्य पिछड़ा आयोग को इस पर भी बयान जारी करना चाहिए। मजेदार बात यह है कि अनुप्रिया पटेल जिस पुलिस कर्मियों पर इस मामले में पक्षपात करने का आरोप लगा रही हैं, वह सब वर्मा विरादरी से ताल्लुकात रखते हैं। पट्टी में इस समय इंस्पेक्टर सहित 14 पुलिसकर्मी वर्मा विरादरी के तैनात हैं। अपना दल एस की मुखिया अनुप्रिया पटेल का पट्टी में नियम कानून को ताक पर रखकर आना और समाज में सामाजिक सौहार्द को बिगाड़ कर जाना और जिला प्रशासन एवं पुलिस प्रशासन का मूक बने रहना ये इशारा करता है कि शासन सत्ता के इशारे पर ही अनुप्रिया पटेल पट्टी आकर तमाशा खड़ा किया। बस इंतजार है प्रतापगढ़ पुलिस अधीक्षक अभिषेक पर गाज गिरने की ! यदि पुलिस अधीक्षक अभिषेक सिंह प्रतापगढ़ से एक माह के अन्दर हटा दिए जाते हैं तो इस बात पर लोग यकीन कर लेंगे कि भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के इशारे पर ही अनुप्रिया पटेल के ये बोल निकल रहे हैं। 

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