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रविवार, 7 जून 2020

संयुक्त राज्य अमेरिका में तबाही और अराजकता के पीछे की असलियत


अमेरिका में अराजकता कहीं राष्ट्रपति चुनाव से पहले विरोधियों द्वारा बिछाई गई विसात तो नहीं...


अमेरिका का राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प...
अपनी बात शुरू करने से पहले बता दूं कि आम चुनावो से पहले जिस तरह भारत में मोदी को दोबारा आने से रोकने के लिये अराजक आंदोलनो की साजिशें रची गई थी, ठीक उसी तरह अमेरिका मे भी वही वैश्विक ताकतें ट्रम्प को दोबारा आने से रोकने के लिये षडयंत्र कर रही हैं। दोनों देशों मे बहाने भले ही अलग हों, लेकिन उद्देश्य एक ही है। किसी भी राष्ट्रवादी को सत्ता शीर्ष पर बैठने नहीं देना है खैर वो अराजकता फैलाने के लिये चाहे जितना जोर लगा लें, जितने भी षडयंत्र कर लें, न वो दूसरी बार मोदी को रोक सके और न ही डोनाल्ड ट्रम्प को दोबारा आने से रोक पायेंगे। आप चाहें तो मेरे इस कथन का स्क्रीन शाट लेकर आसन्न भविष्य में परिणाम देखने के बाद मुझसे प्रश्न करने के लिये रख सकते हैं हां, एक बात और मैं ट्रम्प का चुनाव प्रचार नहीं कर रहा हूं। डोनाल्ड ट्रम्प का आगामी चुनाव में विजयी होने की उम्मीद करना कमजोर मनोबल का द्योतक होगाजबकि विश्वास करना आत्मविश्वास कहलाता हैं। क्योंकि जिस मानसिकता में हमारे देश का विशेष परिवार जी रहा है, बिल्कुल वही स्थिति वहां हिलेरी क्लिंटन की है। वहां सब कुछ बिडेन, हिलेरी, कम्युनिस्ट, जेहादी लॉबी की ही देन है

अमेरिका का  जॉर्ज फ्लॉयड...
आइए देखें कि संयुक्त राज्य अमेरिका में तबाही और अराजकता की वर्तमान लहर के आगे बढ़ने के पीछे क्या साजिश है ? जैसा कि हम समाचार माध्यमो से जानते हैं कि इसकी शुरुआत पुलिस की बर्बरता से हुई जिसमें  जॉर्ज फ्लॉयड नाम के एक अश्वेत व्यक्ति की मृत्यु हो गई थी चूंकि वहां अश्वेतों को लंबे समय तक गुलाम के रूप में प्रयोग किया गया था इसलिए भारत में मुसलमानों के साथ उनकी तुलना करना बेमानी है। क्योंकि भारत में मुस्लिम लंबे समय तक शासक, शासक वर्ग के साथ एक हमलावर, आक्रांता थे भले ही धर्मांतरितो की संख्या अधिक थी और है लेकिन इसके विपरीत, अमेरिका में अश्वेतों गुलाम थे, जबकि भारत में मुसलमान शासक थे। इस सत्य को गहराई और गंभीरता से समझिये

सत्ता की चाहत चाहे जो करा दे...
यह दिल्ली या अमेरिका हो, वामपंथियों को अराजकता को आगे बढ़ाने के लिए क्या करना चाहिए या वो करना क्या चाहते हैं ? वो हम कायदे से जानते हैं। यह उसी सोच, मानसिकता और विचारधारा का एक प्रतीक हैअमेरिका में अश्वेत की हत्या, तदुपरांत लगातार घट रही घटनायें उसी का एक उपयुक्त सचित्र प्रतिनिधित्व कर रहा है जो दुनिया भर के लोगों विशेष कर सेकुलरों (जिन्हे अब मैं कायर कहता हूं) को आकर्षित करने की क्षमता रखता है। उनका यह उद्देश्य सफल होने के बाद वे समाज में इसी आधार पर घृणा को बढ़ावा देते हैं। इस भयावह कार्रवाई के लिए वामपंथियों और इस्लामी जेहादियों को ऐसे लोगों के एक वर्ग की आवश्यकता होती है, जिन्हें वे हथियार के रूप में उपयोग कर सकते हैं। यह वामपंथियों और इस्लामिक जेहादियों की एक पुरानी किंतु जबरदस्त रणनीति होती है जो आपको मीडिया के माध्यम से बढ़ा चढ़ा कर बताने के साथ-साथ आम लोगों के बीच सहानुभूति भी पैदा करती है

उदाहरणार्थ देखिये कि जब पुलिस ने जेएनयू के हिंसक प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज किया तो उन्होंने विकलांग छात्रों को आगे बढ़ाने के लिए धक्का दिया ताकि बाद में वे विकलांग प्रदर्शनकारियों के खिलाफ राज सत्ता की क्रूरता को जोर शोर से बता सके। इसी रणनीति के तहत उन्होंने जामिया के मामले में हिजाब पहने महिलाओं को अग्रिम पंक्ति मे खड़े होने जिम्मेदारी दी थी। शाहीन बाग मे भी यही सब करने की साजिश थी। इसलिए अमेरिका मे जॉर्ज फ्लॉयड की गर्दन को घुटने मे दबाए एक पुलिसकर्मी की वायरल तस्वीर के आधार पर वे पूरे अमेरिका में दंगे भड़काने में सफल रहे। इस अराजक व विध्वंसकारी  रणनीति के कारण समाज को होने वाली सबसे बड़ी क्षति यह होती है कि इसकी ओट में मूल मुद्दे पर होने वाली बहस दब जाती है और कोई भी उस बारे में बात नहीं करता है

दिल्ली के हिंदू विरोधी दंगों में किसी भी मीडिया हाउस ने मुसलमानों द्वारा हिंदू पीड़ितों के साथ हुई साजिश के बारे में बात नहीं की क्योंकि उन्होंने पूरे मामले को 'अल्पसंख्यकों पर अत्याचार करने वाली मोदी सरकार' में बदल कर रख दिया। लेकिन जिस तरह के उद्धरण प्रतीकों और नारे का इस्तेमाल किया गया था, उसे देखते हुए यह स्पष्ट हो गया था कि असली मुद्दा न तो सीएए था और न ही 'अल्पसंख्यक वर्चस्व' ! उन्हें तो हिंदुओं और भाजपा के लिए अपनी घृणा को छिपाने के लिए एक लपेट की आवश्यकता थी और CAA का उपयोग उसी के रूप में उनके द्वारा किया गया था।

वहां एक चर्चों पर हमला किया गया शॉपिंग मॉलों को लूटा जा रहा है। व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में तोड़फोड़ की जा रही है पुलिसकर्मियों को गोली मारी जा रही है इमारतों को आग लगाई जा रही है। जार्ज फ्लायड की मौत का विरोध बहुत जल्द ही दंगों में तब्दील हो गया। दरअसल दूर-दराज मे सक्रिय उग्रवादी समूह ANTIFA इसके पीछे था।वास्तव में ये अन्य देशों को जांच में रखने के लिए चाहे वह एमनेस्टी हो या पेटा ! ये सभी अमेरिका द्वारा निर्मित किये गये है। इन सभी का उपयोग अन्य देशों में को अस्थिर करने के लिए अभी तक उपयोग की जाती थी। अब उनका ही ये कुटिल एजेंडा संयुक्त राज्य अमेरिका को निगलने को आतुर हैं और सच्चाई तो यह है कि आज वहां स्थिति नियंत्रण से परे हो गई है

बराक ओबामा, एक अश्वेत पूर्व राष्ट्रपति जो आज अन्तर्राष्ट्रीय उदारवादियो या कहें सेकुलरों की आँख का तारा बन चुके हैं। उनका सीधा संबंध ANTIFA से हैं। सोशल मीडिया के सक्रिय मित्रों ने एक महिला की तस्वीर पुलिस वैन पर शौच करते हुए देखी होगी। कोल्ड ड्रिंक, कपड़े या यहां तक ​​कि एटीएम लूटने वाले 'प्रदर्शनकारियों' के वीडियो इंटरनेट पर मौजूद हैं। हुआ क्या ? आरोप ट्रम्प और उनकी पार्टी पर जबरन थोप दिया गया। अब आप यहां यानि भारत में दिल्ली हिंदू संहार पर याद करिये कि कैसे ताहिर, अमानतउल्ला और शाहरूख को छिपा कर कैसे उन्होंने दिल्ली दंगों के मामले में सारा दोष कपिल मिश्रा और अनुराग ठाकुर पर  डाल दिया था ?

वास्तव मे हिंसक और धूर्त वामपंथी तथा जेहादी हमेशा ऐसी ही चौंकाने वाली विचित्र किस्म की नई रणनीति तैयार रखते हैं....इसी तरह वे अमेरिका मे अब वे वहां की सभी अराजकता के लिए 'श्वेत सुप्रीमों' को दोषी ठहरा रहे हैं। हकीकत तो यह है कि भारत के तथाकथित सामाजिक कार्यकर्ताओं की तरह यूएसए में भी 'नस्लीय संबंधो का सुविधानुसार लाभ लेने वाले स्लीपर सेल के रूप मे छिपे विशेषज्ञ' हैं जो वहां काम कर रहे हैं। हां कुछ रिपोर्टे वहां की अराजकता और तनावों को बढ़ाने में चीन के हाथ की बात कर रहे हैं। इससे इंकार भी नहीं जा सकता है। पैसा तो भरपूर है चीन के पास और इस समय वह दुनिया भर मे घिरा भी है

हिंसा के मामले में जेहादी और कम्युनिस्ट मौसेरे भाई हैं। हिटलर की हार के तुरंत बाद याद करिये कि पूर्वी जर्मनी पर कम्युनिस्टों का वहां शासन था और उन्होंने सीमाओं को सील करने के लिए एक दीवार बनाई थी, लेकिन क्या आपको चीन या उत्तर कोरिया के बीच में किसी भी विरोध को सुनने को मिलता है ? होता भी होगा तो या तो वे बहुत प्रारंभिक चरण में दबा दिए जाते हैं या उनके बारे में हर एक खबर आपके द्वारा पहुंचने से पहले ही फ़िल्टर कर दी जाती है। जेहादियों, वामपंथियो और यहां तक की कांग्रेस भी समान विभाजनकारी, अलोकतांत्रिक और घृणास्पद विचारधारा के पोषक हैं, जो अपने प्रतिद्वंद्वियों को बेहद क्रूरता के साथ दबा देने में विश्वास करती है। वे लोग यहां भी ऐसा ही करते हैं। सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरने के बाद दोबारा वापस आने वाला आदमी उनके लिए 'हिटलर' है।

सच्चाई तो यह है कि मीडिया की भूमिका ऐसे मामलों में हमेशा संदिग्ध होती है। तभी तो उन्होंने शाहीन बाग, CAA, धारा-370 और तीन तालाक पर 'शांतिपूर्ण विरोध' के कुछ चित्रों को आपके सामने दिखाने के लिए चुना
तभी तो यह लोग शाहीन बाग में तिरंगा लहराते हुए प्रदर्शनकारियों को दिखाने में आगे रहे। अब, जब संयुक्त राज्य अमेरिका उपद्रवी लुटेरों को दवा दे रहा है तो वो लॉाबी अब वहां से दिशा बदल कर भारत की उदार पारिस्थिति वाले तंत्र को एक बार फिर निशाने पर लेने की तैयारी कर रही है। मुझे अपनी सरकार पर पूर्ण विश्वास है फिर भी देश की जनता को संदिग्धों से सतर्क, सजग और सावधान रहने की आवश्यकता है। विनष्ट हो चुका वामपंथ वापसी के लिये छटपटा रहा है। 9/11 के बाद दुनिया भर में कायदे से कूटे गये जिहादी अमेरिका से बदला लेना चाहते हैं। बिड़ेन और हिलेरी ने उनकी पीठ पर हाथ रखा है। लिहाजा अमेरिका जल गया

फिलहाल ये खून चूसने वाले लोग भारत को भी उसी परिस्थितियों में एक बार फिर फेंकना चाहते हैं। आज जिसमें अमरीका फंस गया है। चाहे वह ताहिर हुसैन हों ! शार्जील इमाम हों ! उमर खालिद हों या फारूक फैसल हों ! हिंदू विरोधी दंगों में शामिल सभी लोगों की गर्दन दबोच कर न्याय दिलाया जा रहा है। इसलिये यह ऐसी स्थिति नहीं है, जिसे देखकर कम्युनिस्ट, कांग्रेस और जेहादी प्रसन्न होंगे। यह उनके लिए कठिन समय है और वे हिंसा का सहारा लेने के लिए किसी भी एक भी घटना का उपयोग कर सकते हैं। ऐसा भी नहीं है कि वे कोशिश नहीं कर रहे हैं। वे अपने स्तर पर सर्वश्रेष्ठ प्रयास कर रहे हैं, लेकिन जहां सरकार इस बार अतिरिक्त सतर्क हैवहीं देश की जागरूक जनता भी इनके पिछवाड़े घुसेड़ने के लिये बांस लिए तैयार है। सोशल मीडिया पर उनका घृणित अभियान और समाचार पत्रों में प्रचारित झूठे लेख भी अब काम नहीं कर रहे हैं। सच तो यह है कि इस महामारी के बीच उनके लिए बेहद कठिन समय सामने है जो एक बात प्रारम्भ में मैने कहा कि ट्रम्प और मोदी को आने से रोका इसलिये नहीं जा सकता कि जहां अमेरिका 60-70% राष्ट्रप्रेमी जनता बड़े गौर से सब कुछ देख और समझ रही है कि वहां ये आग किसने और क्यों लगाई है ? वहीं हमारे देश की 50-60% जनता भी समझ चुकी है कि कौन उसका है और कौन पराया है....???

प्रस्तुति:- अजित सिंह  

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