देश की सेना की टोपी उछाल रहे गिरोह के कपड़े सत्य और तथ्य की तलवार से अब पूरी तरह फाड़िये, बुरी तरह फाड़िये...
अपनी टीम के साथ देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु... |
हमारे देश को आजाद हुए आज 70 साल हो गए है। देश आजाद तो हो गया लेकिन देश को खोखला करने के लिए कुछ तत्वों ने घोटाले करना शुरू कर दिए। देश में धीरे धारे भ्रष्टाचार बढ़ने लगा। देश की कमान संभालने के जितने भी प्रधानमंत्री रहे उन्होंने अपने अपने स्तर पर भ्रषटाचार को खत्म करने के प्रयास किए। हालांकि कभई कभई देश के यही महान लोग इन घोटालो में शामिल भी हुए। 1947 से लेकर 2011 तक 40 सो अधिक घोटाले हो चुके है। आजादी के बाद से ही देश में घोटाले नाम का बीज बो दिया गया था। 1948 में ही जीप घोटाला सबके सामने आ गया था। इसके बाद तो मानों भ्रष्टाचार ने देश में अपीन पकड़ मजबूत करनी शुरु कर दी। इसके बाद साइकिल घोटाले से लेकर हरिदास मुंध्रा स्कैंडल तक हर एक दो साल के अंर्तराल पर एक ना एक नया घोटाला सामने आने लगता था।
"आज हम आपको बताएंगे देश में हुए पहले वित्त घोटाले के बार में जिसका नाम था मूंदड़ा घोटाला। ये आजाद भारत का पहले वित्त घोटाला था। 1958 में यो घोटाला सामने आया था अब आप योच रहे होंगे कि बड़ा ही अजीब नाम का घोटाला है ये। जनाब इसका नाम ऐसा इसलिए है क्योंकि देश को इस घोटाले की सौगात देने वाले का नाम हरिदास मूंदड़ा था..."
इंटरपोल द्वारा इंग्लैंड में पकड़ा गया था,धर्म तेजा... |
देश में कई ऐसे घोटाले है जिनके सामने आने के बाद देश की संसद से लेकर सड़क तक देश में हलचल मच गई थी लेकिन एक ऐसा घोटाला भी है जिसने का केवल देश के नुकसान पहुचाया बल्कि रिश्तों में भी दूरी लगी दी। मूंदड़ा घोटाला उन्ही घोटालों में से एक है। इस घोटाले ने पंड़ित ज्वाहरलाल नेहरू और उनके दामाद के रिश्तें खराब हो गए थे। क्योंकि इसे उजागर करने वाला फिरोज गांधी थे। इस वजह से त्तकालीन वित्त मंत्री टीटी कृष्णामचारी को इस्तीफा देना पड़ा था। इस घोटालो को जन्म देने वाले के बारे में सबसे पहले बात करते है।हरिदास मूंदड़ा एक मारवाड़ी था, जिसकी पहचान कलकत्ता का एक व्यापारी और सटोरिया के रूप में विख्यात थी। हरिदास पहले-पहले बल्ब बेचने का काम करता था। कंपनियों के शेयर्स में उसकी दिलचस्पी थी। मंदड़ियों और तेजड़ियों के खेल में हरिदास एक शातिर खिलाड़ी बनकर उभरा। 1956 तक आते-आते कई बड़ी कंपनियों में उसकी अच्छी-ख़ासी हिस्सेदारी हो गई थी।
देश का LICघोटाला...
उस वक्त करीब देश में 245 छोटी बड़ी कंपनियां कार्यरत थी। इनमें से कुछ कंपनियां छोटी मोटी हेरा फेरी करती रहती थी। इसके बाद देश के नागरिकों के लिए बीमा बीमा की गारंटी देने के विचार से 1956 में भारतीय संसद ने बीमा विधेयक पारित किया। बाद में सारी 245 कंपनियों का विलय कर लिया गया और एक सरकारी संस्था का गठन किया गया जिसके नाम था एलआईसी (भारतीय जीवन बीमा निगम )। सबसे पहले सरकार ने इसमें पांच करोड़ की पूंजी लगाई थी। एलआईसी की नीति के तहत उन कंपनियों के निलेश करती थी जिनका प्रबंध नामी गिरामी होता था। सरल शब्दों में कहे तो वो अपना पैसा ब्लू चिप कंपनियों में लगता। 1957 में उसने उन छहों कंपनियों के शेयर्स ऊंचे दाम या बाज़ार भाव से अधिक भाव पर ख़रीदे थे जिनमें मूंदड़ा ने भी पैसा लगाया था और जिनके बारे में हमने ऊपर जिक्र किया था। ये कंपनियां ना तो ब्लू चिप कंपनियों में आती थी और ना ही इनका वित्त रिकॉर्ड अच्छा था। ये बाद भी एलआईसी ने इन कंपनियों में उस वक़्त सबसे बड़ा निवेश कर दिया।
इसके पीछे मूंदड़ा की सोची समझी साजिश थी। उसकी चाल थी कि जब निवेशकों को पता चलेगा कि उसकी कंपनी में सरकार ने निवेश किया है तो मुनाफे को निश्चित मानकर दूसरें लोग भी उन कंपनियों के शेयर्स खरीदेंगे। इससे शेयर्स के बाज़ार भाव ऊंचे होंगे और वह उन शेयर्स को ऊंचे दाम पर बेचकर मुनाफ़ा कमा लेगा।कहा जाता है कि इस बात के बारे में एलआईसी को पहले ही पता चल गया था। तो भी एलआईसी की निवेश कमेटी ने इस ख़रीद पर कोई आपत्ति नहीं जताई। कमेटी के सदस्यों का मानना था कि सरकार की रज़ामंदी के बिना निगम के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर इतनी बड़ी डील नहीं कर सकते लिहाज़ा किसी ने भी न तो हरिदास मूंदड़ा की कंपनियों के शेयर्स ख़रीदने पर हामी भारी और न ही किसी ने आपत्ति जताई। जब सब कुछ एक तरह से सेट हो गया था तभी इसका भांड़ा फूट गया।
देश के पहले घोटाले में फिरोज गांधी का रोल...
देश का LICघोटाला...
उस वक्त करीब देश में 245 छोटी बड़ी कंपनियां कार्यरत थी। इनमें से कुछ कंपनियां छोटी मोटी हेरा फेरी करती रहती थी। इसके बाद देश के नागरिकों के लिए बीमा बीमा की गारंटी देने के विचार से 1956 में भारतीय संसद ने बीमा विधेयक पारित किया। बाद में सारी 245 कंपनियों का विलय कर लिया गया और एक सरकारी संस्था का गठन किया गया जिसके नाम था एलआईसी (भारतीय जीवन बीमा निगम )। सबसे पहले सरकार ने इसमें पांच करोड़ की पूंजी लगाई थी। एलआईसी की नीति के तहत उन कंपनियों के निलेश करती थी जिनका प्रबंध नामी गिरामी होता था। सरल शब्दों में कहे तो वो अपना पैसा ब्लू चिप कंपनियों में लगता। 1957 में उसने उन छहों कंपनियों के शेयर्स ऊंचे दाम या बाज़ार भाव से अधिक भाव पर ख़रीदे थे जिनमें मूंदड़ा ने भी पैसा लगाया था और जिनके बारे में हमने ऊपर जिक्र किया था। ये कंपनियां ना तो ब्लू चिप कंपनियों में आती थी और ना ही इनका वित्त रिकॉर्ड अच्छा था। ये बाद भी एलआईसी ने इन कंपनियों में उस वक़्त सबसे बड़ा निवेश कर दिया।
इसके पीछे मूंदड़ा की सोची समझी साजिश थी। उसकी चाल थी कि जब निवेशकों को पता चलेगा कि उसकी कंपनी में सरकार ने निवेश किया है तो मुनाफे को निश्चित मानकर दूसरें लोग भी उन कंपनियों के शेयर्स खरीदेंगे। इससे शेयर्स के बाज़ार भाव ऊंचे होंगे और वह उन शेयर्स को ऊंचे दाम पर बेचकर मुनाफ़ा कमा लेगा।कहा जाता है कि इस बात के बारे में एलआईसी को पहले ही पता चल गया था। तो भी एलआईसी की निवेश कमेटी ने इस ख़रीद पर कोई आपत्ति नहीं जताई। कमेटी के सदस्यों का मानना था कि सरकार की रज़ामंदी के बिना निगम के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर इतनी बड़ी डील नहीं कर सकते लिहाज़ा किसी ने भी न तो हरिदास मूंदड़ा की कंपनियों के शेयर्स ख़रीदने पर हामी भारी और न ही किसी ने आपत्ति जताई। जब सब कुछ एक तरह से सेट हो गया था तभी इसका भांड़ा फूट गया।
देश के पहले घोटाले में फिरोज गांधी का रोल...
इस पूरे मामले के बारे में जब फिरोज गांधी को मालूम हुआ तो उन्होंने इसके खिलाफ संसद में आवाज उठाई। उन्होंने कहा कि एलआईसी ने हरिदास मूंदड़ा की कंपनियों के शेयर्स उसे फ़ायदा पहुंचाने के लिहाज़ से खरीदे हैं। उन्होंने इस बात पर भी सवाल उठाए की सरकार और एलआईसी ने इसका विरोध क्यों नहीं किया। जब इसका जवाब वित्त मंत्री टीटी कृष्णामाचारी से मागा गया तो उन्होंने इसका गोलमोल जवाब दिया। संसद में इस मुद्दे पर बहस तेज हो गई। पंड़ित ज्वाहरलाल नेहरू तक को इसमें घसीट लिया गया। दिसंबर 1957 के शीतकालीन सत्र में फिरोज गांधी ने हमला बोला और कहा कि एलआईसी सरकार के हाथों बनाया गया सबसे बड़ा संस्थान है और सरकार को इसके निवेश पर निगरानी रखनी चाहिए। सरकार ने मामला कुछ समय तक टालने के बाद बम्बई उच्च न्यायालय के रिटायर्ड जज एमसी छागला की अध्यक्षता में जांच आयोग बिठा दिया। नेहरू नहीं चाहते थे कि उनकी सरकार पर उनके दामाद इस तरह के हमले बोले। सरकार ने इस मामले को कुछ समय तक चुप्पी साधे रखी वेकिन बाद में बम्बई उच्च न्यायालय के रिटायर्ड जज एमसी छागला की अध्यक्षता में जांच आयोग बिठा दिया।
जनता के सामने हुई थी,सुनवाई...
भारत में ऐसा पहली बार हुआ था कि किसी केश की सुनवाई जनता के सामने हुई हो। कोर्ट रूम के बाहर बड़े-बड़े लाउडस्पीकर लगाये गए ताकि जो लोग अंदर बैठकर कार्यवाही देख न पाएं वे कम-से-कम इसे सुन सकें। बताते हैं कि बड़ी तादाद में लोग यह सुनवाई देखने और सुनने जुटते थे। जज साहब सबको लाइन हाज़िर कर दिया था। जब जज साहब फटकार लगाते तो लोग जोर जोर से तालियां बजाते थे। एचडीएफसी बैंक के संस्थापक हंसमुख ठाकोरदास पारेख ने आयोग के सामने अपनी बात रखते हुए मूंदडा कंपनियों की कारगुजारी सामने रख दी। उन्होंने खुलासा किया कि रिदास ने इन कंपनियों के शेयर्स को ऊंचे दाम पर बाज़ार में बेचकर मुनाफ़ा कमाया है और एलआईसी द्वारा इन कंपनियों के ख़रीदे गए शेयर्स से 50 लाख रु से भी ज़्यादा का नुकसान हुआ है।
हम आप सारा देश इस शर्मनाक तथ्य से तो भलीभांति परिचित है कि 1962 के चीन युद्ध में लड़ रही हमारी सेना के जवानों के पास बर्फ में पहने जाने वाले जूते मोजे तक नहीं थे। अत्याधुनिक बंदूकों की तो बात ही छोड़ दीजिये। लेकिन सेना के जवानों की उस दीन हीन दरिद्र स्थिति के लिए कांग्रेसी नेता प्रवक्ता गजब की मक्कारी और बेशर्मी के साथ यह सफाई देते हैं कि उस समय देश को आजादी मिले हुए केवल 15 वर्ष हुए थे। देश गरीब था, इसलिए नेहरू की सरकार सैनिकों को ढंग के जूते मोजे और बंदूक तक नहीं दिलवा पायी थी। अब जानिए कि कांग्रेसी नेताओं प्रवक्ताओं की यह सफाई कितनी मक्कारी और धूर्ततापूर्ण है।
बात 1961 की है। जवाहरलाल नेहरू की सरकार ने 1962 में गजब की दया दिखाते हुए 200 रुपये हैसियत वाली एक फ़र्जी शिपिंग कम्पनी को कर्ज के रूप में 22 करोड़ रुपए दे दिए। अब यहां जरा ठहरिए और यह भी जानिए समझिए कि उस समय भारत में सोने की क़ीमत 119 रुपये प्रति दस ग्राम थी। आज 49710 रुपये प्रति दस ग्राम है। अर्थात् 1962 में उस व्यक्ति को दिए गए 22 करोड़ रुपये के कर्ज की क़ीमत आज के लगभग 9178 करोड़ (नौ हजार एक सौ अट्टत्तर करोड़) रुपये के बराबर थी। याद दिला दूं कि विजय माल्या इससे कम रकम लेकर भागा है।
खैर तब के 22 करोड़ और आज के हिसाब से 9178 करोड़ रुपये की रकम मिलने के बाद वो आदमी पूरी रकम लेकर देश से फ़रार हो गया था। विदेश में लिंचेसटाइन बैंक में वह रकम जमा करा के गुलछर्रे उड़ाने लगा था।फ्रांस ब्रिटेन और अमेरिका में उसने आलीशान बंगले कोठियां और फार्म हाऊस खरीद लिये थे। 60 के दशक का राजनीतिक इतिहास पढ़िए तो आपको ज्ञात होगा कि धर्म तेजा नाम का यह जालसाज आदमी उन दिनों जवाहरलाल नेहरू का बहुत करीबी मित्र था। संसद में इस विषय पर बोलते हुए राम मनोहर लोहिया ने अपने दर्जनों तथ्यात्मक भाषणों में धर्म तेजा और नेहरू के गठजोड़ की धज्जियां उड़ायी थीं। संसद के अभिलेखों में वह सारे भाषण आज भी सुरक्षित हैं।
10 साल बाद 1972 में धर्म तेजा इंटरपोल द्वारा इंग्लैंड में पकड़ा गया था। न्यायालय द्वारा दी गयी तीन साल की सजा काटकर फिर विदेश चला गया था। लेकिन उससे एक रुपये की भी वसूली कभी नहीं की गयी थी। वो विदेशों में अरबपति रईसों की तरह आलीशान जिन्दगी जीते हुए ही मरा था। अब यह समझिए कि जिस जवाहरलाल नेहरू के पास फौजियों के लिए जूते मोजे बन्दूक खरीदने के पैसे नहीं थे, उस नेहरू की सरकार ने आज के हिसाब से 9178 करोड़ (नौ हजार एक सौ अट्टत्तर करोड़) रुपये एक जालसाज को दे दिए थे। जिससे वह पूरी दुनिया में गुलछर्रे उड़ाता रहा। एक बात और समझ लीजिए कि आज सैनिकों द्वारा बर्फ में पहने जाने वाले विशेष जूतों को अगर आप बाजार से मात्र एक पीस खरीदें तो उसकी क़ीमत 15000 रुपये चुकानी पड़ेगी। आज 9178 करोड़ रुपये में लगभग 61 लाख जूते आ जाएंगे।
1957 में जब सोना 90 रुपये प्रति दस ग्राम था उस समय जवाहरलाल नेहरू की सरकार ने हरिदास मूंदड़ा नाम के जालसाज की कम्पनी को जीवन बीमा निगम LIC के सवा करोड़ रुपए दे दिए थे। जिसे हड़प कर वो जालसाज बैठ गया था। हद तो यह है कि केवल वर्ष भर पहले 1956 में शेयर मार्केट में फ़र्जी शेयर का फर्जीवाड़ा करने के कुकर्म में मूंदड़ा को शेयर मार्केट द्वारा दंडित किया जा चुका था। मूंदड़ा और नेहरू सरकार की मिलीभगत के घोटाले का मामला जब कोर्ट में गया था तब हरिदास मूंदड़ा को सजा सुनाते हुए न्यायाधीश ने जवाहरलाल नेहरू सरकार के वित्तमंत्री पर भी भ्रष्टाचार का मुक़दमा चलाने की बात कही थी। पर नेहरू ने उसका इस्तीफा लेकर मामले की लीपापोती कर दी थी। इसी तरह 1949 में सेना के लिए जीप खरीदने के नाम पर 80 लाख रुपये जवाहरलाल नेहरू लील गया था। सेना को वह जीपें कभी नहीं मिली। पर ना कभी कोई जांच हुई ना कोई दंडित हुआ।
पुनः उल्लेख कर दूं कि आज के हिसाब से मूंदड़ा और जीप घोटाले की रकम लगभग 1100 करोड़ रुपये होती है और आज इतनी रकम में सैनिकों द्वारा बर्फ में पहने जाने वाले लगभग 7.36 लाख जूते खरीदे जा सकते हैं।ध्यान रहे कि यह क़ीमत तब है, जब फुटकर बाजार से मात्र एक जूता खरीदा जाए। अतः उपरोक्त तथ्य धज्जियां उड़ा देते हैं। कांग्रेसी नेताओं प्रवक्ताओं की उस सफाई की कि 1962 में देश को आजादी मिले हुए केवल 15 वर्ष हुए थे। देश बहुत गरीब था इसलिए नेहरू की सरकार सैनिकों को ढंग के जूते मोजे और बंदूक तक नहीं दिलवा पायी थी। जबकि सच यह है कि उसी समय नेहरू के दोस्त जालसाज आज के हिसाब से हज़ारों करोड़ रुपये लूट रहे थे।
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