कोरोना संक्रमण काल में दूसरों की जिन्दगी बचाते-बचाते एक बहादुर योद्धा का यूं ही चले जाना हम कभी भूल नहीं पायेंगे- जिलाधिकारी, अम्बेडकर नगर
राकेश मिश्र -जिलाधिकारी, अम्बेडकर नगर के उद्गार...
एक जिलाधिकारी की वेदना जब उनके हृदय को बेंधकर शब्दों में पिरोने लगी तो वो अपने को रोक न सके।उनके मन में जो बातें हिलोरे मार रही थी वो हाथ की अँगुलियों से मोबाइल के सहारे सोशाल मीडिया पर कुछ ही क्षणों में वायरल होने लगा। राकेश मिश्र जिलाधिकारी, अम्बेडकर नगर ने सोशल मीडिया पर अपने मन की पीड़ा का वर्णन किया। हमारे जिले अंबेडकर नगर के महात्मा ज्योतिबा फुले संयुक्त ज़िला चिकित्सालय के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ. संत प्रकाश गौतम दूसरों की जिंदगी बचाते-बचाते स्वयं अपनी जिंदगी की जंग हार गए। उनके निधन पर जिले के मुखिया स्वयं डीएम ने एक भावुक पोस्ट लिखी है।
हाँ सर... हाँ सर... जी सर... यस सर... मोबाइल कॉल को रिसीव करने की आवाज होती है, वो चाहे रात में 2 बजे हो अथवा भोर में 5 बजे। परन्तु सीएमएस डॉ सन्त प्रसाद गौतम कभी भी न तो असहज होते थे और न ही अपने कर्तब्य पथ से कभी भागते थे। उन्हें जब फोन करिए बड़ी संजीदगी से अपनी बात रखते थे। एक दिन फोन पर सीएमएस सन्त प्रसाद गौतम ने बताया था कि सर देखिए लाइन बहुत लम्बी हो रही है। लोग घंटों से खड़े हैं, अभी स्क्रीनिंग पटल बढ़वाता हूँ, सर...! हरदम मेरे पहुँचने से पहले ही वह उपस्थित मिलते। नाम था उनका सन्त प्रसाद गौतम। वाकई वो एक संत की तरह थे भी। मुख्य चिकित्सा अधीक्षक जो विशेषज्ञ चिकित्सकों की टीम का नेतृत्व करता है। 30 लाख आबादी के जिले के हजारों मरीजों, सैंकड़ों गर्भवती महिलाओं को 24*7 चिकित्सा सुविधा उपलब्ध करवाना। कभी भी कोई पहुँचे, वह उपस्थित मिले। एक आदर्श चिकित्सा व्यवस्था उपलब्ध करायी। जिसके लिए उन्हें व जनपद को प्रशंसा मिलती रही।
कोरोना के संक्रमण से जंग हार गए सीएमएस डॉ सन्त प्रसाद गौतम ... |
फिर करोना का दौर आया। दिन रात प्रवासी मज़दूरों का आगमन, पैदल, साइकिल, बस, ट्रक, श्रमिक ट्रेनें, चौबीसों घंटे करोना की जाँच चलती रहती, सबके भोजन, विश्राम, परिवहन की जिम्मेदारी में जिले का हर अधिकारी और कर्मचारी लगा हुआ था, डॉक्टर गौतम के जिम्मे Covid Hospital की भी जिम्मेदारी थी, जहां संक्रमित मरीज भर्ती हैं, उन्हीं में से एक मरीज के कमरे में राउंड के दौरान डॉक्टर गौतम संक्रमित होते हैं। पर सेवा के भाव में साथी डॉक्टर जान नहीं पाते हैं कि वह लगातार असहज हो रहे हैं। बात जब मालूम हुई, तब तक संक्रमण फेफड़े में दस्तक दे चुका था, तुरंत विशेषज्ञों की टीम लगती है, परन्तु एक अंग के बाद दूसरा अंग साथ देना छोड़ रहा था, हम सभी रो रहे हैं, पर हर कोई काम में लगा है।
आज हर उम्मीद को तोड़ती खबर आयी, हम सब लखनऊ भागे, अंतिम विदाई, पूरा परिवार था, पर पार्थिव शरीर एक बैग में सील्ड थी, अंतिम दर्शन में जहाँ मुख मंडल दिखाए जाने की परम्परा रही, वहीं कोरोना संक्रमण काल में मुख मंडल का भी दर्शन न हो सका। बिजली शवदाह गृह के कर्मचारी अपने विशेष वस्त्र पहनने लगे, हमें भी अपने पाँव, सर, हाथ मुँह, सब ढकना था, वहाँ सबकी पहचान खो सी गयी। सहसा आपस में गुथमगुत्था होकर विलाप करता परिवार, सड़क के इस पार ही खड़ा रहा, बेटी ने रोते हुए मुझसे कहा, पिता जी को बहुत ब्यस्त रखा, आप लोगों ने ! पिता की सेहत खराब होती रही और आप लोग उनसे काम लेते रहे ! मैंने हाथ जोड़े और क्या कहता ? समय का यह दौर सोच रहा था ऐसे निकल जाएगा सोचते-सोचते और अपनी जिम्मेवारियों के निर्वहन के बीच। भूल जाऊँगा सब कुछ ! डॉक्टर गौतम का यूँ जाना, बार-बार असहज कर रहा है। इसे अब भूलने भी नहीं देगा। मैं लखनऊ से वापस मुख्यालय लौट रहा हूँ। कल हम सब उस लड़ाई को आगे बढ़ाएँगे, जिसे डॉक्टर गौतम ने जी जान से लड़ा, अलविदा डॉक्टर सन्त प्रसाद गौतम, आप को हम भूल नहीं पाएँगे।
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