जल में रहई मगर से बैर की कहावत को चरितार्थ करते रहे,अपना दल के नेता आशीष पटेल और उनकी पत्नी अनुप्रिया पटेल...
उत्तर प्रदेश विधान परिषद सदस्य और अपना दल एस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष के फेसबुक पर योगी सरकार और सरकार के सिस्टम में जंग लगने की गई पोस्ट पर विभिन्न तरह की प्रतिक्रियाएं आने लगी हैं। सार्वजनिक जीवन में आने वाले ब्यक्ति को परिपक्व होना चाहिए तभी उसे सार्वजनिक जीवन में कदन रखना चाहिए। परन्तु भारतीय राजनीति में परिक्वता तो बाद में आती है और पद उसे पहले मिल जाता है। लिहाजा बिना आंकलन के ही वह ऊल जलूल कार्य भी करता है और बयानबाजी भी करता है। ऊपर से बनता है सबसे बड़ा समाजसेवी ! जनता के दुःखों का एहसास तक नहीं होता और आंसू पोछने के लिए रूमाल की जगह कम्बल ही निकाल लेते हैं। हाँ हम बात कर रहे हैं अपना दल से एमएलसी आशीष सिंह जो अपना दल एस के कभी राष्ट्रीय अध्यक्ष हुआ करते थे और जब उनकी पत्नी अनुप्रिया पटेल को मोदी मंत्रिमंडल में वर्ष-2019 में स्थान न मिला तो लुटियन जोन में मिले आवास पर ग्रहण लगना शुरू हुआ तो आपसी रजामंदी से अपना दल एस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर स्वयं मिर्जापुर से सांसद अनुप्रिया पटेल विराजमान होकर अपना दिल्ली वाला लुटियन जोन का सरकारी आवास छिनने से बच सका।
अपना दल एस के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल के पति आशीष सिंह (एमएलसी)... |
योगी मंत्रिमंडल में स्थान पाने के लिए कल तक मुँह खोले-खोले जब थक गए और उन्हें इस बात का एहसास हो गया कि योगी मंत्रिमंडल में उन्हें स्थान नहीं मिलने वाला है तो अब योगी सरकार नकारा हो चुकी है, जबकि हकीकत ये है कि इसी जंग रूपी सिस्टम के आज भी आशीष सिंह और अनुप्रिया पटेल महत्वपूर्ण सहयोगी बने हैं। आशीष सिंह और अनुप्रिया पटेल से जनता का सवाल है कि योगी और मोदी सरकार से मुखालफत न कर पाने की आप दोनों की मजबूरी क्या है ? आप दोनों में या तो साहस नहीं है या फिर जनता के सामने चिकनी चुपड़ी बात बोलकर जनता को गुमराह कर रहे हो और जनता को मुर्ख समझ रहे हो ! जबकि सच्चाई यह है कि ये पब्लिक है सब जानती है... आशीष सिंह के फेसबुक पर पोस्ट लिखने मात्र से जनता गुमराह होने वाली नहीं है। सच्चाई ही बयाँ करनी है तो यह सच्चाई क्यों नहीं बयाँ करते कि मोदी और योगी की इसी सरकार की बदौलत अपना दल और बाद में अपना दल एस पार्टी की हैसियत बनी। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे अमित शाह की बदौलत गोपनीय ढंग से चुनाव आयोग में अपना दल एस का रजिस्ट्रेशन कराकर आज आशीष सिंह और अनुप्रिया पटेल का अस्तित्व बचा लिया था।
अपना दल के संस्थापक स्व. सोनेलाल पटेल जीवन भर कमेरा कमेरा करते रह गये, परन्तु सदन का मुंह तक नहीं देख सके। सिर्फ बरसों बरस तक अकेले फड़फड़ा रहे थे, लेकिन अपना दल के नेताओं की हैसियत सदन में पहुँचने की नहीं बन पाई। आशीष और अनुप्रिया को डर है कि भाजपा ने अगर अपना दल एस से रिश्ता तोड़ लिया तो उसकी अकौत पूर्व की भांति हो जायेगी और आज 9 विधायक 2 सांसद और एक एमएलसी का अस्तित्व भी खतरे में पड़ जायेगा। सिर्फ मियां और बीबी की पार्टी बचेगी। अपना दल एस के सभी 9विधायक मौका पाते ही भाजपा में शामिल हो जायेंगे। फिर अपना दल एस ढांक के तीन पात वाली कहावत में आ जायेगी। अनुप्रिया पटेल एक अच्छी वक्ता हैं, सदन में अपने मुद्दे को गंभीरता से रखती हैं, परन्तु जातिगत राजनीति छोड़कर आशीष सिंह और अनुप्रिया पटेल को सर्व समाज से जुड़ना चाहिए न कि एक समाज को आगे कर बाकी समाज के अन्य जातियों में वैमनस्यता की बीज बोयें। स्व. सोनेलाल पटेल को बोलते मैं भी सुना था। वो भी अच्छा बोलते थे, लेकिन जातिगत जहर ने उन्हें स्वयं को सदन से दूर रखा।
एक राजनीतिक दल के नेता के द्वारा सर्वोच्च न्याय की कल्पना तो उसी समय कोरी दिखी, जब प्रतापगढ़ के धुई (गोविंद पुर) गांव में सिर्फ एक ही पार्टी की बात सुनकर उसे पीड़ित मानकर अपनी राय दे दी। एक मझे हुए नेता को दोनों पक्ष की बात सुनकर उचित निर्णय लेना चाहिए। अनुप्रिया पटेल का पट्टी विधानसभा के गोविंदपुर गाँव जाना गलत नहीं था। विपक्षी दलों की तरह सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने और जातिगत वैमनस्यता का विष उगलना तो राजनीतिक रूप से नफा नुकसान हो सकता है, परन्तु पीड़ित पक्ष को न्याय दिलाने में ये कदम कदापि न्यायोचित नहीं हो सकता। एक राजनीतिक दल की राष्ट्रीय अध्यक्ष की हैसियत से एक ही पक्ष की बात सुनती वह भी ठीक था, लेकिन सरकार के सहयोगी दल होने के नाते सरकार के प्रमुख अंग ग्राम्य विकास मंत्री के विरोध में माहौल तैयार कराना कदापि उचित नहीं था। योगी सरकार के विरुद्ध मुर्दाबाद के नारे लगवाना तो अपने मुँह पर कालिख पोतने जैसा रहा। क्योंकि जो सरकार में शामिल हो, उसे सरकार के विरोध में नारा नहीं लगवाना चाहिए, बल्कि सरकार से अपनी बात रखनी चाहिए।
पट्टी के गोविंदपुर गाँव में मीडिया से मुखातिब अपना दल एस की मुखिया अनुप्रिया पटेल...
सच बात तो यह है कि सांसद मिर्जापुर अनुप्रिया पटेल ने मोती सिंह और जिले के पुलिस अधीक्षक अभिषेक सिंह का विरोध नहीं किया, बल्कि उस योगी सरकार का विरोध किया जिसमें आपके 9 विधायक अपना समर्थन दिए हैं। अगर अनुप्रिया और आशीष सिंह को भाजपा से छत्तीस का आकड़ा बनाना ही है और मोदी व योगी सरकार का विरोध करना ही है तो तत्काल केंद्र की मोदी सरकार और राज्य की योगी सरकार से अपना समर्थन वापस लेना चाहिए। सवाल ये है कि जब अनुप्रिया पटेल से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी से उक्त घटनाक्रम के सम्बंध में वार्ता हो गई थी तो सहयोगी दल होने के नाते सरकार के कदम का अनुप्रिया पटेल को इंताजर करना चाहिए था। सरकार अगर अनुप्रिया पटेल की बातों को गंभीरता से न लेती तो अनुप्रिया सड़क से सदन तक अपनी बात रखने की कोशिश करती, लेकिन अनुप्रिया पटेल के कदम से यह लगा कि अपना दल एस इसे चुनावी मुद्दा बनाकर अपनी राजनीति चमकाना चाहती हैं और पटेलों की एकलौती नेता बनना चाहती हैं। चूँकि विधानसभा चुनाव- 2017 में पट्टी विधानसभा में बतौर स्टार प्रचारक मोती सिंह के चुनाव प्रचार में हेलीकॉप्टर से तो जनसभा करने गई, परन्तु हेलीकॉप्टर अपना नहीं उतारा और मोती सिंह के विरोध में माहौल खड़ा किया था।
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