राष्ट्रीय आपदा में 400 रूपये प्लस जीएसटी अलग से लेकर अब कोरोना संक्रमण से बचने के लिए स्कूल वाले अब फेस मास्क भी बेंचेगे...
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कोरोना अवसर लेकर आया है चाहे भागता मौत का आँकड़ा हो या जेब भरता रोकड़ा हो... |
"स्वास्थ्य और शिक्षा का निजीकरण नहीं रुका तो देश बर्बाद हो जाएगा। कहने का आशय है कि जब तक सरकारें स्वास्थ्य और शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाते हुए खुद ज़िम्मेदारी नहीं लेंगी, तब तक देश में लूट और भ्रष्टाचार जारी रहेगा। यही दो आवश्यकता सरकार पूर्णतया अपने ज़िम्मे कर ले तो सभी मुफ़्त की योजना और भ्रष्टाचार पर अंकुश लग जाएगा। बाकी आपदा काल में धन कमाने ये दोनों तैयार हैं..."
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कोरोना आपदा नहीं बल्कि एक अवसर है... |
लॉकडाउन के दौरान विद्यालय बन्द हुए तो सरकार ने आदेश किया कि मध्याह्न भोजन का पैसा हर बच्चे के खाते में भेज दिया जाय। मतलब बंटवारा रुकना नहीं चाहिए। उधर प्राइवेट स्कूल वालों ने कहा कि हम ऑनलाइन पढ़ा रहे हैं, सो फी जमा कीजिये। मतलब वसूली नहीं रुकेगी ! दोनों के मालिक अपने-अपने एजेंडे पर डटे हुए हैं। मुझे लगता है कि शिक्षा के क्षेत्र में तो कम से कम नैतिकता होनी ही चाहिए। अगर विद्यालय अनुशासित हो गए तो राष्ट्र का भविष्य अनुशासित हो जाएगा। पर दुर्भाग्य यह है कि यहाँ नैतिकता बिल्कुल भी नहीं है। हर जगह केवल और केवल एक एजेंडा है वो है लूटो और खाओ खिलाओं का ! हमारे यहाँ नर्सरी क्लास के बच्चे को स्कूल ऑनलाइन पढ़ा रहे हैं। जिस बच्चे की लैट्रिन करने पर घर में अभी उसकी सफाई मां करती हो वो बच्चा भी अब ऑनलाइन पढ़ रहा है। इस ऑनलाइन पढ़ाई का लाभ न बच्चा समझ रहा है, न अभिभावक ! समझ रहा है तो बस स्कूल प्रशासन समझ रहा है। प्राइवेट स्कूल वालों का तर्क है कि शिक्षकों का वेतन देना है, सो फीस लेना सही है। चलिये छोटे स्कूलों की बात तो समझ में आती है, पर वे बड़े स्कूल जिनकी कमाई करोड़ों रूपये की है, वे क्या तीन महीने का वेतन भी अपने पास से नहीं दे सकते ?
वैसे मुझे तो यह भी समझ में नहीं आ रहा है कि तीन-चार महीना स्कूल बंद हो जाने से ऐसा क्या बिगड़ जा रहा है, जो ऑनलाइन पढ़ाना पड़ रहा है ? प्राइवेट और सरकारी दोनों स्कूल तो यूँ भी गर्मी की छुट्टी में दो-दो महीने बन्द रहते हैं। पर अभिभावकों से बच्चों की फीस लेनी है तो कुछ न कुछ तो दूकान लगानी ही पड़ेगी ! इसीलिए कहते हैं कि जो दिखता है वही विकता है ! आज देखा कि डीपीएस जैसा बड़ा स्कूल ग्रुप मास्क बेंच रहा है, वह भी 400 रुपये में। यह नैतिक पतन की पराकाष्ठा है। आपको क्या लगता है, ऐसी व्यवस्था में पढ़कर निकला बच्चा किसी के प्रति निष्ठावान हो सकता है ? शायद नहीं ! न राष्ट्र के प्रति ! न समाज के प्रति ! न घर के प्रति ! वह बस यही सीखेगा कि जैसे भी हो पैसा कमाना है। किसी भी तरह वैसे डीपीएस ने अब कहा है कि वह मास्क उसका नहीं है। मास्क न भी हो तब भी किताबों, जूतों आदि के नाम पर लूट कम नहीं होती। वैसे मुझे लगता तो नहीं लगता कि लोग प्राइवेट स्कूलों की इस अनैतिकता का विरोध कर पाएंगे ! पर उन्हें करना चाहिए। इस लॉक डाउन पीरियड का फीस तो नहीं ही दिया जाना चाहिए !
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