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सोमवार, 29 जून 2020

लोकतंत्र की बिसात पर आज भी जनता का उत्पीड़न राजतंत्र सरीखे कर रही है,वर्तमान नौकरशाही

देश की धैर्यवान जनता का कुसूर क्या है...???

"कोरोना संक्रमण काल में योगी सरकार की नौकरशाही के कृत्यों से लगता है कि कोरोना वायरस सामर्थ्यवान को संक्रमित नहीं करेगा और आम आदमी को ही संक्रमित करेगा...

एसपी कार्यालय के सामने बने हॉट स्पॉट बैरियर पर चेहरा पहचान कर आने -जाने को दी जाती है,इजाजत... 
इसे जिला प्रशासन की तानाशाही कहें या निकम्मापन ? अजीब लीला है, प्रतापगढ़ जिला प्रशासन की ! जिस ब्यक्ति को कोरोना के संक्रमण के लक्षण मिलने पर उसे पद का दुरूपयोग करते हुए CMO प्रतापगढ़ अपने पास बुला लेता है और कानोंकान किसी को भनक तक नहीं लग पाती। जानते हैं, क्यों ? क्योंकि वह उनके कलेजे का टुकड़ा रहा। वह एटा जनपद से प्रतापगढ़ आया और CMO आवास में 3 दिन रहा। कोरोना वायरस संक्रमण की टेस्टिंग हुई तो रिपोर्ट पॉजीटिव आई 

रिपोर्ट आने के बाद जब CMO प्रतापगढ़ की कलई खुल गई तो CMO के बेटे को कोविड-19 अस्पताल में भर्ती किया गया और जब रिपोर्ट निगेटिव आई तो बिना किसी अधिकृत सूचना के वह प्रतापगढ़ छोड़ कर चला भी गया। सीएमओ डॉ अरविंद कुमार श्रीवास्तव कब क्वारंटीन हुए और कब उससे मुक्त हुए ? इसका भी लेखा जोखा किसी के पास नहीं है। कोरोना संक्रमण काल में भी जिले की अफरशाही देखने लायक है सारी गलती तो कटरा रोड़ क्षेत्र में रहने वालों की है। तभी तो उन्हें अभी भी कंटेनमेन्ट जोन (हॉट स्पॉट क्षेत्र) में रहने के लिए मजबूर किया जा रहा है। इस ब्यवस्था को देखकर एक सामन्तवादी राजा की कहानी याद आ गई। 

एक राजा था उसने अपनी प्रजा की धैर्यता की परीक्षा लेना चाहा। लिहाजा राजा ने अपनी प्रजा पर खूब अत्याचार करना शुरू किया। फिर भी राजा की प्रजा उसके प्रति बगावत नहीं की और उसका उत्पीड़न सहती रही। राजा बड़े बियोग में था कि उसकी प्रजा का धैर्य का मापदंड कैसे तय हो ? राजा अपने मंत्रियों की बैठक बुलवाई और प्रजा की धैर्यता की परीक्षा के लिए एक योजना तैयार की गई। योजना के अनुसार राजा ने एक पुल बनवाया और इस बार उसने नया फार्मूला लागू किया। राजा ने अपनी प्रजा से इस बार पुल का टैक्स वसूलने के बजाय उस पुल से आने और जाने वालों को टैक्स के बदले सौ जूते की मार सहने के बाद ही उस पुल को पार करने की ब्यवस्था बनाई और अपनी इस रणनीति पर राजा और उसके मंत्री खूब इतरा रहे थे कि इस बार तो प्रजा अपने राजा का विरोध अवश्य करेगी। 

विरोध के पता करने का फार्मूला भी निकाला गया और जहाँ जूता मारने की ब्यवस्था राजा ने की थी, वहीं बगल में एक शिकायत पेटिका भी स्थापित करा दी गई। ताकि जिस प्रजा को अपने राजा के कार्यों से कोई शिकायत हो तो वह अपने राजा को शिकायती पत्र के माध्यम से अपनी शिकायत आसानी से पहुँचा सके। राजा के सिपाही प्रतिदिन उस शिकायत पेटिका को खोलते और उन्हें शिकायती पत्र न मिलने पर मायूस होना पड़ता। शाम को राजा पूँछते कि आज किसी प्रजा की शिकायत आई है तो सिपाही मुंह लटका लेते थे। राजा समझ जाता था कि आज भी कोई शिकायत नहीं आई। कई महीने बीत जाने के बाद एक दिन एक शिकायत मिली और राजा के सिपाही उस शिकायत को जल्दी से राजा के पास लेकर पहुँचे और राजा को बताया कि महाराज आज एक शिकायत आई है। 

राजा ने अपने मंत्री से कहा कि शिकायत खोलकर जल्दी हमें सुनाओं कि हमारी किस प्रजा ने हमें अपनी शिकायत भेजी है। शिकायत जब खोली गई तो मंत्री ने पढ़कर राजा को प्रजा की शिकायत सुनाया। वो शिकायत नहीं बल्कि फरियाद थी कि महराज आपके राज में सब कुशल मंगल हैं। राजा, राज कर रहे हैं और प्रजा सुख भोग रही है। थोड़ी सी समस्या है, महराज....! आप द्वारा जो नया पुल बनवाया गया है, उस पर जो आने-जाने के लिए जो जूता मारने की ब्यवस्था है उसमें सिपाहियों की संख्या कम है और प्रजा को जूता मरवाने में काफी लम्बी लाइन लगानी पड़ती हैजिससे घर पहुँचने में देर हो जाती है। यदि जूता मारने के लिए सिपाहियों की संख्या बढ़ा दी जाए तो प्रजाजन को जूता मरवाने में बड़ी आसानी होगी। 

महराज जी ! अपनी प्रजा का ये छोटा सा अनुरोध स्वीकार कर लें और अपनी दयालुता दिखाते हुए जूता मारने वाले सिपाहियों की संख्या बढ़ा दें तो आपकी अति कृपा होगी। आज लोकतंत्र में हम जीने का नाटक भले ही कर लें, परन्तु हकीकत में आज भी देश की जनता उसी राजा और राजा की प्रजा सरीखे है आज भी आम जनता कथित लोकतंत्र में सामन्तवादी और तानाशाही ब्यवस्था में जीने को मजबूर है। वर्तमान नौकरशाही सिर्फ सांसदों, विधायकों और मंत्रियों के आगे पीछे घूमना जानती है और कुछ जानती है तो सिर्फ जनता का शोषण करना जानती है। नियम-कानून को मनमर्जी तरीके से लागू करना राजशाही नहीं तो और क्या है ? देश में जनता की पूँछ सिर्फ मताधिकार तक ही रहती है। सिर्फ कहने के लिए अच्छा लगता है कि जनता के द्वारा चुनी हुई जनता की सरकार का मालिक जनता ही है। हकीकत में ये कहीं ठहरता नहीं है। 

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