➤सतीश मिश्र की रिपोर्ट...
नेपाल के पीएम केपी शर्मा औली और चीन के पीएम सी जिनपिंग... |
अतः उसने 13 जून को संसद में नक्शा पास करने से एक दिन पहले 12 जून को एक 9 सदस्यीय कमेटी का गठन कर के उसे यह जिम्मेदारी सौंपी कि वह इस बात के तथ्य व साक्ष्य खोजे कि भारत भूमि के उस हिस्से पर नेपाल का दावा सही है। नेपाल सरकार ने इस कमेटी का गठन कर के पूरी दुनिया को स्वयं ही बता दिया है कि अपनी संसद में नेपाली सरकार ने प्रस्ताव पारित कर के भारत भूमि के जिस हिस्से पर अपना दावा ठोंक दिया है, उसके पक्ष में कोई भी तथ्य या साक्ष्य स्वयं नेपाल की सरकार के पास ही नहीं है। शी जिनपिंग की कठपुतली की तरह नाच रहा नेपाली प्रधानमंत्री केपी शर्मा औली भी यह बात अच्छी तरह जानता है कि उसकी इस नौटंकी से भारत का रोंया भी नहीं उखड़ने वाला, लेकिन ऐसा करके वो चीन द्वारा नियंत्रित संचालित होने वाले नेपाल के कम्युनिस्ट गैंग की अंदरुनी राजनीतिक कलह में खुद को अपने चीनी आकाओं का सबसे बड़ा वफादार चाकर सिद्ध करने में सफल हो जाएगा।
नेपाल की जनता के साथ भारत के हज़ारों वर्ष प्राचीन सामाजिक सांस्कृतिक धार्मिक आध्यात्मिक सम्बंधों को ध्यान में रख कर चीनी कठपुतलियों सरीखे नेपाल के कम्युनिस्ट शासकों की करतूतों को भारत प्रायः अनदेखा करता है और नेपाल के विरुद्ध भारत जानबूझकर कोई कार्रवाई कभी नहीं करता। ध्यान रहे कि नेपाल का इस वित्तीय वर्ष का कुल बजट 1.47 लाख करोड़ नेपाली रुपये का है। भारतीय मुद्रा में यह रकम लगभग 93 हजार करोड़ रुपये है। भारत इससे तीन गुना अधिक रकम केवल पहले दो महीनों में कोरोना संक्रमितों की सहायता के लिए बांट चुका है। नेपाल का रक्षा बजट लगभग 3 हज़ार करोड़ रुपये का है और भारत का 4.71 लाख करोड़ रुपये का है। अतः स्वयं सोचिए कि नेपाल क्या भारत से सैन्य या आर्थिक टकराव की स्थिति में है ? जहां तक बात है चीन की तो सामरिक आर्थिक व्यवसायिक कसौटी पर नेपाल की तुलना में पाकिस्तान उसके लिए दस गुना अधिक महत्त्वपूर्ण है। लेकिन इसके बावजूद पाकिस्तान को भारत जब भी बुरी तरह जुतियाता है तो चीन चुप्पी साध लेने में ही भलाई समझता है। कारगिल के लघु युद्ध से लेकर बालाकोट की एयर स्ट्राइक तक, कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने तक चीन ने चुप्पी साधने में ही भलाई समझी है।
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