ईश्वर भक्ति, आध्यात्मिक ज्ञान चिंतन के पाखंड की आड़ में आनंद तलाशते हो ऑर्केस्ट्रा पार्टी का... तो फिर चिल्लाओ बौराओ मत...!!!
संयोग और सौभाग्य से से स्व. पं रामकिंकर जी के श्रीमुख से होती रही राम कथा की अमृत वर्षा से सराबोर होने का अपरिमित सुख युवावस्था में प्राप्त कर चुका हूं। राम कथा की आध्यात्मिकता की अतल गहराईयों में छुपे ज्ञान के अपार अथाह मोतियों को चुनना हो तो उनको सुनिए. वर्तमान और भावी पीढियों के सौभाग्य से स्व. पं रामकिंकर जी की राम कथा के ऑडियो अब यूट्यूब पर उपलब्ध हैं। लेकिन उन ऑडियो में ऑर्केस्ट्रा पार्टी का आनंद नहीं मिलेगा।
उनके समकालीन सभी अन्य रामचरित मानस मर्मज्ञ, हिन्दी के सभी दिग्गज साहित्यकार एक स्वर से एकमत होकर स्व. पं रामकिंकर जी के राम कथा ज्ञान के समक्ष नत मस्तक होते थे। स्व. पं रामकिंकर जी को उनके जीवन काल में ही युग तुलसी कहा जाने लगा था। राष्ट्रीय ख्याति के दिग्गज हिन्दी साहित्यकार समालोचक तथा रामचरित मानस के विलक्षण मर्मज्ञ स्व. ठाकुर प्रसाद सिंह जी ने तो यह तक कह दिया था कि पं रामकिंकर जी पर प्रभु श्री राम की ऐसी कृपा हुई है कि मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं होता कि राम कथा से संबंधित पं जी का ज्ञान सम्भवतः गोस्वामी जी से भी अधिक है।
लखनऊ के मोती महल लॉन में बहुत समान्य वातावरण में पं रामकिंकर जी की रामकथा का वर्ष में एक या दो बार नियमित आयोजन होता था। लेकिन इसके लिए पं रामकिंकर जी आज वाले किसी राम कथा के गव्वइय्ये बापू की तरह अपने साथ 40 ट्रक तंबुओं, लाखों वॉट् के साउंड सिस्टम, और इस पूरे तामझाम को सम्भालने के लिए दो ढाई सौ की फौज लेकर लखनऊ नहीं आते थे। समां बांधने के लिए ढोलक तबला सारंगी सितार मंजीरा खंजड़ी हार्मोनियम कीबोर्ड बजाने वाले दर्जन भर से अधिक म्युजिशियनों की ऑर्केस्ट्रा पार्टी भी उनके साथ नहीं होती थी। साधारण दरी बिछाकर उनके द्वारा राम कथा की अमृत वर्षा की जाती थी। किसी सत्ताधारी किसी "बिजनेस टाईकून" के दरबार में राम कथा कहने भी नहीं जाते थे।
आज पं रामकिंकर जी द्वारा कही जाने वाली रामकथा का उल्लेख इसलिए किया क्योंकि पिछले 2-3 दिनों से एक विवाद एक बहस सोशल मीडिया के एक बड़े वर्ग में चल रही है। कुछ मित्रों ने लगातार टोका कि इसपर अपनी राय लिखूं। अतः स्व. पं रामकिंकर जी द्वारा कही जाने वाली रामकथा के उपरोक्त उल्लेख से आज अपनी राय लिख रहा हूं। मुझे बिल्कुल बुरा नहीं लगा, ना कोई आश्चर्य हुआ जब सोशल मीडिया पर कुछ दुःखी आत्माओं के हुड़दंग के जरिए पता चला कि बापू नाम का कोई गव्वइय्या रामकथा का मंच सजा कर मौला अली... मौला अली... वाली क़व्वाली गाने लगा। दुःखी आत्माओं के हुड़दंग के जरिए ही यह भी पता चला कि शायद उसने और उसकी जैसी भजन ऑर्केस्ट्रा पार्टी चलाने वाले भांति भांति के स्वामी साध्वी टाइप के नामों वाले कई और गव्वइय्यों ने भी ऐसे ही करतब दिखाने शुरू किए हैं।
मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि बापू गव्वइए ने गलत क्या किया.? या उसके जैसे कई और गव्वइय्यों ने क्या गलत किया ? वो सभी लोग अपनी एक ऑर्केस्ट्रा पार्टी चलाते है जिसमें राम कथा को गाते सुनाते हैं। अतः दुःखी आत्माएं यह मानने समझने को क्यों तैयार नहीं कि ऑर्केस्ट्रा पार्टीयां किसी नियमावली या सैद्धांतिक परिपाटी, परम्परा के अनुसार आचरण नहीं करती। उनका धंधा पब्लिक डिमांड के अनुसार नाचना गाना झूमना और महफिल लूट लेना, अर्थात् अपनी झोली रूपयों से भर लेना ही होता है। ज्यादा माल मिलने की निश्चित उम्मीद हो तो यही लोग किसी दरगाह के सालाना उर्स में रात भर मेरे मौला... मेरे ख्वाजा... या अली अली... गाते हुए मिल जाएंगे।
अगर बात समझ में ना आयी हो तो स्पष्ट लिए देता हूं कि यह पोस्ट उन दुःखी आत्माओं के लिए है जो पिछले दो दिनों से इस बात पर आगबबूला हो रही हैं कि रामकथा गाने सुनाने का धंधा करने वाला कोई बापू रामकथा के मंच से मौला अली अली क्यों गा रहा था...? आज से लगभग 15 वर्ष पूर्व रामकथा के अपने मंच पर इसी बापू को भक्त और भगवान के मध्य सम्बंधों को समझाने के लिए अपने फुल ऑर्केस्ट्रा के साथ यह फिल्मी गाना गाते हुए टीवी पर सुना था कि... "है इसी में प्यार की आरज़ू, मैं वफ़ा करूं वो ज़फा करें" मेरे एक अत्यन्त घनिष्ठ मित्र उसकी इस अदा पर मगन हुए जा रहे थे वाह वाह कर रहे थे। लेकिन मैं हतप्रभ था हताश था कि क्या से क्या हो गए हम ? कहां से कहां आ गए हम...???
क्या महर्षि वाल्मीकि और गोस्वामी जी रचित रामकथा इतनी लचर लाचार है कि उसको समझने समझाने के लिए सतही फिल्मी गीत की बैसाखी का सहारा लेना पड़ रहा है। लेकिन ऐसा नहीं है। हां, इन मूर्ख धूर्त गव्वइय्यों के ज्ञान के बंद कपाटों पर मोटा अलीगढ़ी ताला अवश्य लटका हुआ है। इनको इतना ज्ञान भी नहीं है कि राम कथा तो बहुत बड़ी बात है, केवल प्रभु श्रीराम का नाम ही इतना विराट है कि समस्त सृष्टि को समेटे हुए है।व्यक्ति की अंतिम यात्रा के अंतिम क्षणों तक राम नाम ही उसका सहारा उसकी शक्ति उसका साधन होता है।उस राम नाम की चर्चा, उसका व्याख्यान उसका वर्णन करने के लिए किसी सस्ते रोमांटिक फिल्मी गीत की अवश्यकता नहीं होती। अतः ऐसे गव्वइय्यों, ऑर्केस्ट्रा पार्टियों को राम कथा मर्मज्ञ कहने समझने की अपनी मूर्खता पर पश्चाताप करिए, आग बबूला मत होइए। इन गव्वइय्यों, ऑर्केस्ट्रा पार्टियों का काम गाना बजाना माल कमाना है। ये वही कर रहे हैं। इस पर एक कड़ी और लिखूंगा। स्व. राम किंकर जी की रामकथा के यूट्यूब लिंक कमेंट में दे रहा हूं...!!!
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