सत्ताधारी दलों के हाथों बिक चुके मीडिया हाउस और डिजाइनर पत्रकार देश की दशा और दिशा को अपने टीवी डिबेट जरिये बर्बादी के मुहाने पर ले जाने का कर रहे हैं,प्रयास...!!!
यह मामला केवल विज्ञापनों की घूसखोरी के मीडियाई भ्रष्टाचार मात्र का ही नहीं है। बल्कि विज्ञापनों के नाम पर अपनी नाकामियों को छुपाकर दूसरे ब्यक्ति की अच्छाइयों में कमियां निकलवाकर देश की जनता का ध्यान अपनी नाकामियों से हटाने का है। नए ट्रेंड के मुताविक न्यूज़ चैनलों में चार डिजाइनर लोंगो को बुलाकर जिस अंदाज में टीवी शो में डिबेट कराने की परम्परा शुरू हुई वो कोरोना संक्रमण से कम नहीं है। बिना सिर पैर के सवाल करना और बिना तथ्य और जानकारी के डिबेट में शामिल लोंगो द्वारा उस पर अपनी गढ़ी हुई प्रतिक्रिया देना और दिखाने के लिए एक दूसरे को नोच खाने का नाटक करना टीवी चैनलों में डिबेट का एक अंग बन गया है,जिसे दूर न किया गया तो देश और समाज को बड़ी क्षति होने से कोई रोक नहीं सकता।
बिना तथ्यों की जाँच किये अपनी तरफ से कोई बात नहीं करनी चाहिए क्योंकि आपकी उस तथ्यहीन बातों से समाज को हानि हो सकती है। हम बात कर रहे हैं देश में कोरोना संक्रमण में देश में राष्ट्रीय आपदा घोषित होने के बावजूद जिस तरह से एक राज्य, दूसरे राज्यों पर अपनी नाकामियों का ठीकरा फोड़ने के लिए सबसे सुगम और सरल तरीका विज्ञापनों के बहाने बिकाऊ मीडिया को अपना मोहरा बनाकर उसे पथभ्रष्ट करते हुए देश की जनता के सामने सही तथ्य को झुठलाते हुए गढ़े तथ्यों के सहारे देश की जनता का ध्यान भटकने के लिए एक नाट्य मंच के माध्यम से खेल खेला जाता है। क्योंकि उस नाट्य मंच का काम ही वही है सही को गलत और गलत को सही साबित कर लोंगो को भ्रमित करें। इसे अमलीजामा पहनाने के लिए टीवी चैनलों द्वारा लाइव डिबेट नाम देकर राजनीतिक दलों के प्रवक्ताओं को मंचासीन करके धार्मिक धर्मगुरुओं और मौलबी/मौलानाओं को आमंत्रित कर ये नाटक बड़ी ही चालाकी के साथ खेला जा रहा है और हकीकत को छिपाया जाता है। कोरोना संक्रमण काल में केंद्र सरकार को चाहिए कि ऐसे टीवी डिबेट पर तत्काल प्रभाव से प्रतिबन्ध लगाकर देश की जनता को दिग्भ्रमित होने से बचाएं।
चूँकि देश में कुल कोरोना संक्रमितों की संख्या (106750) का 45 प्रतिशत भाग देश के केवल 2 राज्यों महाराष्ट्र और दिल्ली में है। इन दोनों राज्यों में कोरोंना संक्रमितों की संख्या (47690) पहुंच चुकी है। जबकि इन दोनों राज्यों की जनसंख्या देश की जनसंख्या का मात्र 10 प्रतिशत ही है। लेकिन पिछले 2-3 दिनों से देश की पूरी मीडिया विशेषकर न्यूज चैनलों पर उस उत्तर प्रदेश की सरकार और उसके मुख्यमंत्री के खिलाफ़ लगातार सवाल उठाए जा रहे हैं, बहस की जा रही है, जिस उत्तर प्रदेश में देश में कोरोना संक्रमितों की संख्या का केवल 4.6 भाग है। जबकि देश की जनसंख्या में उत्तर प्रदेश की हिस्सेदारी लगभग 17 प्रतिशत है। इस सच्चाई को कौन नकार सकता है कि जितनी आबादी उत्तर प्रदेश की है उतनी आबादी विश्व के कई देशों की है। उत्तर प्रदेश से बहुतायत प्रवासी मजदूर मुंबई और दिल्ली में रहते हैं और वहाँ की अर्थब्यवस्था में भागीदारी का निर्वहन करते हैं। यदि दिल्ली और मुंबई में कल कारखाने/फैक्ट्रियों में काम करने वाले अपना श्रम देकर उसे तरक्की की राह पर ले जाकर यदि उसका विकास कर उसकी पूँजी को बढ़ाकर उसे मजबूत करते हैं और पूँजी लगाने वाला धन्नासेठ मुसीबत के दिनों में उन मजदूरों को भूखे मरने हेतु छोड़ दे। वहाँ की सरकारें इन प्रवासी मजदूरों के साथ सौतेला ब्यवहार करे। क्या ये नैतिक रूप से अथवा मानवीय दृष्टिकोण से उचित है ? शायद नहीं !
यह मात्र संयोग नहीं है कि जिन 2 राज्यों में कोरोना वायरस का संक्रमण इतना भयानक रूप ले चुका है कि देश भर में फैले संक्रमण का लगभग आधा हिस्सा इन्हीं 2 राज्यों में हैं। लेकिन इन दोनों राज्यों की सरकारों के इस भयंकर कुशासन कुप्रबंधन निकम्मेपन पर मीडिया विशेषकर न्यूज चैनल शातिर चुप्पी साधे हैं। उनके कुशासन कुप्रबंधन के कहर पर कोई सवाल नहीं पूछ रहे हैं। जबकि दिल्ली देश की राजधानी है और महाराष्ट्र में मुम्बई देश की आर्थिक राजधानी है। लेकिन कोरोना वायरस के संक्रमण के विरुद्ध युद्ध में देश में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर रहे उत्तर प्रदेश और उसके मुख्यमंत्री के खिलाफ लगातार ज़हर उगल रहा है, भारतीय मीडिया और उसके डिजाइनर पत्रकार। भारतीय मीडिया में भी विशेषकर न्यूज चैनल के वो पत्रकार जिन्हें अपने मीडिया हाउस के साथ-साथ अतिरिक्त पैकेज की ब्य्वस्था जहाँ से होती है वहाँ से इन पर नियन्त्रण होता है। यह मामला केवल विज्ञापनों की घूसखोरी के मीडियाई भ्रष्टाचार मात्र का ही नहीं है। बल्कि एक बड़ी साजिश का है,जिसकी रचयिता कुछ अदृश्य ताकतें हैं, जिनके हाथ में इन मीडियाई/सियासी कठपुतलियों की डोर है। मेरी बातों से सहमत हों और उचित समझे तो मेरी इस पोस्ट को सोशल मीडिया के प्रत्येक मंच के माध्यम से प्रयास करिए कि उपरोक्त सन्देश प्रत्येक भारतीय तक पहुंचा कर उसे समय रहते सजग और सतर्क किया जा सके।
यह मामला केवल विज्ञापनों की घूसखोरी के मीडियाई भ्रष्टाचार मात्र का ही नहीं है। बल्कि विज्ञापनों के नाम पर अपनी नाकामियों को छुपाकर दूसरे ब्यक्ति की अच्छाइयों में कमियां निकलवाकर देश की जनता का ध्यान अपनी नाकामियों से हटाने का है। नए ट्रेंड के मुताविक न्यूज़ चैनलों में चार डिजाइनर लोंगो को बुलाकर जिस अंदाज में टीवी शो में डिबेट कराने की परम्परा शुरू हुई वो कोरोना संक्रमण से कम नहीं है। बिना सिर पैर के सवाल करना और बिना तथ्य और जानकारी के डिबेट में शामिल लोंगो द्वारा उस पर अपनी गढ़ी हुई प्रतिक्रिया देना और दिखाने के लिए एक दूसरे को नोच खाने का नाटक करना टीवी चैनलों में डिबेट का एक अंग बन गया है,जिसे दूर न किया गया तो देश और समाज को बड़ी क्षति होने से कोई रोक नहीं सकता।
बिना तथ्यों की जाँच किये अपनी तरफ से कोई बात नहीं करनी चाहिए क्योंकि आपकी उस तथ्यहीन बातों से समाज को हानि हो सकती है। हम बात कर रहे हैं देश में कोरोना संक्रमण में देश में राष्ट्रीय आपदा घोषित होने के बावजूद जिस तरह से एक राज्य, दूसरे राज्यों पर अपनी नाकामियों का ठीकरा फोड़ने के लिए सबसे सुगम और सरल तरीका विज्ञापनों के बहाने बिकाऊ मीडिया को अपना मोहरा बनाकर उसे पथभ्रष्ट करते हुए देश की जनता के सामने सही तथ्य को झुठलाते हुए गढ़े तथ्यों के सहारे देश की जनता का ध्यान भटकने के लिए एक नाट्य मंच के माध्यम से खेल खेला जाता है। क्योंकि उस नाट्य मंच का काम ही वही है सही को गलत और गलत को सही साबित कर लोंगो को भ्रमित करें। इसे अमलीजामा पहनाने के लिए टीवी चैनलों द्वारा लाइव डिबेट नाम देकर राजनीतिक दलों के प्रवक्ताओं को मंचासीन करके धार्मिक धर्मगुरुओं और मौलबी/मौलानाओं को आमंत्रित कर ये नाटक बड़ी ही चालाकी के साथ खेला जा रहा है और हकीकत को छिपाया जाता है। कोरोना संक्रमण काल में केंद्र सरकार को चाहिए कि ऐसे टीवी डिबेट पर तत्काल प्रभाव से प्रतिबन्ध लगाकर देश की जनता को दिग्भ्रमित होने से बचाएं।
चूँकि देश में कुल कोरोना संक्रमितों की संख्या (106750) का 45 प्रतिशत भाग देश के केवल 2 राज्यों महाराष्ट्र और दिल्ली में है। इन दोनों राज्यों में कोरोंना संक्रमितों की संख्या (47690) पहुंच चुकी है। जबकि इन दोनों राज्यों की जनसंख्या देश की जनसंख्या का मात्र 10 प्रतिशत ही है। लेकिन पिछले 2-3 दिनों से देश की पूरी मीडिया विशेषकर न्यूज चैनलों पर उस उत्तर प्रदेश की सरकार और उसके मुख्यमंत्री के खिलाफ़ लगातार सवाल उठाए जा रहे हैं, बहस की जा रही है, जिस उत्तर प्रदेश में देश में कोरोना संक्रमितों की संख्या का केवल 4.6 भाग है। जबकि देश की जनसंख्या में उत्तर प्रदेश की हिस्सेदारी लगभग 17 प्रतिशत है। इस सच्चाई को कौन नकार सकता है कि जितनी आबादी उत्तर प्रदेश की है उतनी आबादी विश्व के कई देशों की है। उत्तर प्रदेश से बहुतायत प्रवासी मजदूर मुंबई और दिल्ली में रहते हैं और वहाँ की अर्थब्यवस्था में भागीदारी का निर्वहन करते हैं। यदि दिल्ली और मुंबई में कल कारखाने/फैक्ट्रियों में काम करने वाले अपना श्रम देकर उसे तरक्की की राह पर ले जाकर यदि उसका विकास कर उसकी पूँजी को बढ़ाकर उसे मजबूत करते हैं और पूँजी लगाने वाला धन्नासेठ मुसीबत के दिनों में उन मजदूरों को भूखे मरने हेतु छोड़ दे। वहाँ की सरकारें इन प्रवासी मजदूरों के साथ सौतेला ब्यवहार करे। क्या ये नैतिक रूप से अथवा मानवीय दृष्टिकोण से उचित है ? शायद नहीं !
यह मात्र संयोग नहीं है कि जिन 2 राज्यों में कोरोना वायरस का संक्रमण इतना भयानक रूप ले चुका है कि देश भर में फैले संक्रमण का लगभग आधा हिस्सा इन्हीं 2 राज्यों में हैं। लेकिन इन दोनों राज्यों की सरकारों के इस भयंकर कुशासन कुप्रबंधन निकम्मेपन पर मीडिया विशेषकर न्यूज चैनल शातिर चुप्पी साधे हैं। उनके कुशासन कुप्रबंधन के कहर पर कोई सवाल नहीं पूछ रहे हैं। जबकि दिल्ली देश की राजधानी है और महाराष्ट्र में मुम्बई देश की आर्थिक राजधानी है। लेकिन कोरोना वायरस के संक्रमण के विरुद्ध युद्ध में देश में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर रहे उत्तर प्रदेश और उसके मुख्यमंत्री के खिलाफ लगातार ज़हर उगल रहा है, भारतीय मीडिया और उसके डिजाइनर पत्रकार। भारतीय मीडिया में भी विशेषकर न्यूज चैनल के वो पत्रकार जिन्हें अपने मीडिया हाउस के साथ-साथ अतिरिक्त पैकेज की ब्य्वस्था जहाँ से होती है वहाँ से इन पर नियन्त्रण होता है। यह मामला केवल विज्ञापनों की घूसखोरी के मीडियाई भ्रष्टाचार मात्र का ही नहीं है। बल्कि एक बड़ी साजिश का है,जिसकी रचयिता कुछ अदृश्य ताकतें हैं, जिनके हाथ में इन मीडियाई/सियासी कठपुतलियों की डोर है। मेरी बातों से सहमत हों और उचित समझे तो मेरी इस पोस्ट को सोशल मीडिया के प्रत्येक मंच के माध्यम से प्रयास करिए कि उपरोक्त सन्देश प्रत्येक भारतीय तक पहुंचा कर उसे समय रहते सजग और सतर्क किया जा सके।
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