रावण के हृदय पर किस कारण भगवान राम नहीं चलाये बाण,बार-बार काटते रहे सिर...!!!
राम और रावण के बीच भयंकर युद्ध हुआ लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान राम ने रावण के हृदय पर एक भी तीर नहीं चलाया था। आइए जानते हैं, आखिर इसके पीछे क्या वजह थी ? भगवान राम और रावण के बीच घमासान युद्ध चल रहा था। राम जैसे ही रावण के शीश काटते एक और शीश रावण के सर पर आ जाता। राम ने रावण के दस सिरों और भुजाओं में दस-दस बाण मारे, लेकिन वे फिर नए हो गए। ऐसा उन्होंने कई बार किया, लेकिन रावण को मार पाने की कोशिश हर बार नाकाम हो जाती। दोनों के बीच भयंकर, विध्वंसक और तीनों लोकों को हिला देने वाला युद्ध हुआ। तभी सभी के मन में सवाल आया कि भगवान राम ने रावण के कई सिर और हाथों को काटकर फेंक दिया, लेकिन उन्होंने रावण के हृदय पर तीर क्यों नहीं चलाया ? यही सवाल देवताओं ने भी ब्रम्हा जी से पूछा। तब भगवान ब्रम्हा जी ने देवताओं को बताया कि रावण के हृदय में सीता का वास है और सीता के हृदय में श्रीराम का और श्रीराम के हृदय में सारी सृष्टि है।
अगर राम, रावण के हृदय पर तीर चलाते तो सारी सृष्टि नष्ट हो जाएगी। ब्रह्माजी ने बताया कि जैसे ही रावण के हृदय से सीता का ध्यान हटेगा,वैसे ही राम रावण का संहार करेंगे। इस बात की जानकारी जब विभीषण को मिली तब उन्होंने रावण के नाभि में मौजूद अमृत के बारे में बताया और उस पर प्रहार करने को कहा। फिर भगवान राम ने आतातायी राक्षस रावण की नाभि पर तीर चलाकर उसका अमृत को सुखा दिया। नाभि में मौजूद अमृत सुखने के बाद रावण का मन विचलित हो गया और उसके हृदय से पलभर के लिए सीताजी से मन हट गया। तभी भगवान राम ने अगस्त्य मुनि द्वारा दिए गए ब्रह्मास्त्र से उसके हृदय पर प्रहार कर उसका अंत कर दिया और युद्ध जीतकर सीताजी को मुक्त करवाया। रावण वध का यही दिन दशहरा या विजयादशमी कहलाया। लंकापति रावण त्रेता युग का सबसे हीन प्राणी के साथ-साथ एक ब्रह्मज्ञानी, कुशल राजनीतिज्ञ और बहु विधाओं का भी जानकार था। भगावन राम के साथ युद्ध में उसकी मौत हुई और मोक्ष की प्राप्ति की। रावण जानता था कि माता सीता, लक्ष्मी स्वरूपा हैं। रावण सीताजी को हरण इसलिए करके लाया था ताकि भगवान राम द्वारा उसकी मुक्ति हो जाए और पापों का अंत हो। रावण सीताजी का उपासक था और अपने हृदय में सीताजी को रखा, जिससे उसको काफी बल भी मिला।
प्रभु श्रीराम और रावण के बीच हुए अंतिम युद्ध के बाद रावण जब युद्ध भूमि पर, मृत्युशैया पर पड़ा होता है तब भगवान राम, लक्ष्मण को समस्त वेदों के ज्ञाता, महापंडित रावण से राजनीति और शक्ति का ज्ञान प्राप्त करने को कहते हैं और तब रावण लक्ष्मण को ज्ञान देते हैं कि अच्छे कार्य में कभी विलंब नहीं करना चाहिए। अशुभ कार्य को मोह वश करना ही पड़े तो उसे जितना हो सके उतना टालने का प्रयास करना चाहिए। शक्ति और पराक्रम के मद में इतना अंधा नहीं हो जाना चाहिए कि हर शत्रु तुच्छ और निम्न लगने लगे। मुझे ब्रम्हा जी से वर मिला था कि बानर और मानव के अलावा कोई मुझे मार नहीं सकता। फिर भी मैं उन्हें तुच्छ और निम्न समझ कर अहम में लिप्त रहा। जिस कारण मेरा समूल विनाश हुआ। तीसरी और अंतिम बात रावण ने यह कही कि अपने जीवन के गूढ़ रहस्य स्वजन को भी नहीं बताने चाहिए। चूंकि रिश्ते और नाते बदलते रहते हैं। जैसे कि विभीषण जब लंका में था, तब मेरा शुभेच्छु था। परन्तु श्रीराम की शरण में आने के बाद मेरे विनाश का वह माध्यम बना। सार स्वरूप अपने गूढ़ रहस्य अपने तक रखना, शुभ कर्म में देरी न करना, गलत काम से परहेज़ करना और किसी भी शत्रु को कमज़ोर न समझना ! यह अमूल्य पाठ हर एक इंसान को अपने जीवन में उतारना चाहिए।
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