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बुधवार, 6 मई 2020

रावण हैवान या महान...?

रावण के हृदय पर किस कारण भगवान राम नहीं चलाये बाण,बार-बार काटते रहे सिर...!!!

राम और रावण के बीच भयंकर युद्ध हुआ लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान राम ने रावण के हृदय पर एक भी तीर नहीं चलाया था। आइए जानते हैं, आखिर इसके पीछे क्या वजह थी ? भगवान राम और रावण के बीच घमासान युद्ध चल रहा था राम जैसे ही रावण के शीश काटते एक और शीश रावण के सर पर आ जाता। राम ने रावण के दस सिरों और भुजाओं में दस-दस बाण मारे, लेकिन वे फिर नए हो गए। ऐसा उन्होंने कई बार किया, लेकिन रावण को मार पाने की कोशिश हर बार नाकाम हो जाती। दोनों के बीच भयंकर, विध्वंसक और तीनों लोकों को हिला देने वाला युद्ध हुआ। तभी सभी के मन में सवाल आया कि भगवान राम ने रावण के कई सिर और हाथों को काटकर फेंक दिया, लेकिन उन्होंने रावण के हृदय पर तीर क्यों नहीं चलाया ? यही सवाल देवताओं ने भी ब्रम्हा जी से पूछा। तब भगवान ब्रम्हा जी ने देवताओं को बताया कि रावण के हृदय में सीता का वास है और सीता के हृदय में श्रीराम का और श्रीराम के हृदय में सारी सृष्टि है
अगर राम, रावण के हृदय पर तीर चलाते तो सारी सृष्टि नष्ट हो जाएगी। ब्रह्माजी ने बताया कि जैसे ही रावण के हृदय से सीता का ध्यान हटेगा,वैसे ही राम रावण का संहार करेंगे। इस बात की जानकारी जब विभीषण को मिली तब उन्होंने रावण के नाभि में मौजूद अमृत के बारे में बताया और उस पर प्रहार करने को कहा। फिर भगवान राम ने आतातायी राक्षस रावण की नाभि पर तीर चलाकर उसका अमृत को सुखा दिया। नाभि में मौजूद अमृत सुखने के बाद रावण का मन विचलित हो गया और उसके हृदय से पलभर के लिए सीताजी से मन हट गया। तभी भगवान राम ने अगस्त्य मुनि द्वारा दिए गए ब्रह्मास्त्र से उसके हृदय पर प्रहार कर उसका अंत कर दिया और युद्ध जीतकर सीताजी को मुक्त करवाया। रावण वध का यही दिन दशहरा या विजयादशमी कहलाया। लंकापति रावण त्रेता युग का सबसे हीन प्राणी के साथ-साथ एक ब्रह्मज्ञानी, कुशल राजनीतिज्ञ और बहु विधाओं का भी जानकार था। भगावन राम के साथ युद्ध में उसकी मौत हुई और मोक्ष की प्राप्ति की। रावण जानता था कि माता सीता, लक्ष्मी स्वरूपा हैं। रावण सीताजी को हरण इसलिए करके लाया था ताकि भगवान राम द्वारा उसकी मुक्ति हो जाए और पापों का अंत हो। रावण सीताजी का उपासक था और अपने हृदय में सीताजी को रखा, जिससे उसको काफी बल भी मिला।
प्रभु श्रीराम और रावण के बीच हुए अंतिम युद्ध के बाद रावण जब युद्ध भूमि पर, मृत्युशैया पर पड़ा होता है तब भगवान राम, लक्ष्मण को समस्त वेदों के ज्ञाता, महापंडित रावण से राजनीति और शक्ति का ज्ञान प्राप्त करने को कहते हैं और तब रावण लक्ष्मण को ज्ञान देते हैं कि अच्छे कार्य में कभी विलंब नहीं करना चाहिए। अशुभ कार्य को मोह वश करना ही पड़े तो उसे जितना हो सके उतना टालने का प्रयास करना चाहिए। शक्ति और पराक्रम के मद में इतना अंधा नहीं हो जाना चाहिए कि हर शत्रु तुच्छ और निम्न लगने लगे। मुझे ब्रम्हा जी से वर मिला था कि बानर और मानव के अलावा कोई मुझे मार नहीं सकता। फिर भी मैं उन्हें तुच्छ और निम्न समझ कर अहम में लिप्त रहा। जिस कारण मेरा समूल विनाश हुआ। तीसरी और अंतिम बात रावण ने यह कही कि अपने जीवन के गूढ़ रहस्य स्वजन को भी नहीं बताने चाहिए। चूंकि रिश्ते और नाते बदलते रहते हैं। जैसे कि विभीषण जब लंका में था, तब मेरा शुभेच्छु था। परन्तु श्रीराम की शरण में आने के बाद मेरे विनाश का वह माध्यम बना। सार स्वरूप अपने गूढ़ रहस्य अपने तक रखना, शुभ कर्म में देरी न करना, गलत काम से परहेज़ करना और किसी भी शत्रु को कमज़ोर न समझना ! यह अमूल्य पाठ हर एक इंसान को अपने जीवन में उतारना चाहिए। 

रावण का व्यक्तित्व इतना प्रभावशाली था कि हम उससे बहुत कुछ सीख सकते हैं, उसका स्वयं पर विश्वास ही उसकी सबसे बड़ी शक्ति थी। यदि आज हम खुद पर विश्वास की बात करे तो आंशिक रूप में कुछ ही लोग ऐसे होंगे जो स्वयं पर विश्वास रख किसी कार्य के लिए पूरी तरह से सजग होंगे, हमें रावण से आत्मा विश्वास की शिक्षा लेनी चाहिए कि किसी भी कार्य में सफलता और असफलता मायने नहीं रखती, अगर कार्य को पूर्ण निष्ठा पूर्वक किया जाये तो परिणाम अगर यदि असफल भी हो तब पर भी आपके आत्मा विश्वास के लिए आप का नाम इतिहास में याद किया जायेगा...!!!

हम सभी जब भी रावण का नाम सुनते है, तब हम सभी की सोच यही होती है कि वो राक्षस कुल में जन्मा एक हैवान था और कुछ कहेंगे कि वो तो चारो वेदों का ज्ञाता था, कुछ कहेंगे कि वो अहंकारी था और कुछ उससे सबसे बड़ा महादेव भक्त भी कहेंगे ! हम सभी अपने सोच के आधार पर रावण की परिकल्पना अपने मन करते हैं तो चलिए आज आप सभी को रावण की बायोग्राफी से परिचित कराया जाए ! रावण एक ऐसा महान पुरुष था, जिसको अपनी मौत के बारे में पता था ! आप सभी सोचेंगे कि इसमें नया क्या है और वो राक्षस कैसे महान पुरुष हो सकता है ? आप सभी को ये जान लेना अति आवश्यक है कि जो व्यक्ति अपना नाम इतिहास में अमर कर जाये वो भी युगों-युगों तक ! क्या ऐसे व्यक्तित्व के धनी ब्यक्ति को महान पुरुष नहीं कहना चाहिए...???

रावण भले ही अपने अहंकार से ग्रसित था,किन्तु सभी व्यक्तियों में अगर अवगुण होते हैं तो उसके साथ उसमें कुछ गुण भी होते हैं। रावण माता सीता के हरण के पहले ही जानता था कि वही उसका "काल" बनकर उसका नाश करेंगी और उसे प्रभु के धाम की प्राप्ति होगी। तभी तो उसके वंश का समूल नाश हो जाने के बाद भी उसने प्रभु श्रीराम की अधीनता स्वीकार नहीं की और खुद पर विश्वास कर स्वयं भगवान से युद्ध कर बीर योद्धा की भांति युद्धि भूमि में लड़ते हुए प्रभु के हाथों मारा गया और अमरत्व को प्राप्त हो गया। आज भी जब प्रभु श्रीराम के चरित्र की बात होती है तो उन्हें तीनों लोको के विजेता रावण के संघारक के रूप में जाना जाता है, विना रावण के रामायण अधूरी है। रावण एक महान शिव भक्त रहा, जिस पर स्वयं महादेव की कृपा रहती थी। रावण में कुछ तो बात रही होगी, जिसने महामृत्युंजय मंत्र को रचकर देवाधिदेव महादेव को संतुष्ट किया था।

रावण के ब्यक्तित्व में...

रावण सा हूँ, मैं हैवान ! 

सही पहचाना मुझको, 

नहीं बनना मुझको इंसान ! 

वो जो काम लगने पर बनाये भगवान, 

नहीं तो पहुँचाये तुमको सीधा श्मशान ! 

दुनिया मतलबी है, साहब ! 

मतलब न होने पर कहेगी, हैवान मुझको ! 

प्रभु श्रीराम जैसे बनकर यहाँ जी नहीं सकते, 

जीना हो तो जियो जैसे जिया, रावण महान ! 

खुद पर भरोसा रखा, इसलिए भगवान से लड़ गया ! 

वो हैवान ही है जो अपना नाम अमर कर गया ! 

उस हैवान की थी खुद एक पहचान, 

मरने के बाद बन गया वो महान,

जिसके कारण श्रीराम कहे जाते हैं,भगवान...!!!

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