अब मजदूरों का रोना रो लिए हो तो चुप हो जाओ और मध्यम वर्गीय जीवन जीने वाले को भी जरा याद कर दीजिये !
सबसे खराब दशा में मध्यम वर्गीय परिवार |
कोरोना संक्रमण काल में मजदूर घर पहुंच गया तो उसके परिवार के पास मनरेगा का जाब कार्ड, राशन कार्ड होगा ! सरकार मुफ्त में चावल व आटा दे रही है ! जनधन खाते होंगे तो मुफ्त में पैसा भी दिया 2000/ दो हजार रुपये तक आ जाएगा ! स्वयंसेवी संस्थाएं भी इन मजदूरों की मदद कर देती हैं। अब जरा उसके बारे में भी सोचिये जिसने लाखों रुपये का कर्ज लेकर प्राईवेट कालेज से इंजीनियर किया था और अभी कम्पनी में मजदूररों से भी कम सेलरी पर काम कर रहा था। हकीकत में कई तो 5 से 8 हजार तक की नौकरी कर रईस बने घूम रहे थे। परन्तु वह मजबूरी वश दिखावे में अमीरों की तरह रह रहे थे। क्योंकि वह मध्यम वर्ग से आते हैं। उसकी बचत निश्चित ही शून्य होगी।
मध्यम वर्गीय परिवार का खाली हुआ पर्स... |
अब बात करते हैं अन्य वर्ग की जिसका कार्य दूसरे की मदद करना और बदले में जो मिल जाए अपनी जीविकोपार्जन हेतु फीस ले लेना। हाँ, हम बात कर रहे हैं अधिवक्ताओं की ! वो अधिवक्ता जिसने अभी-अभी नई-नई वकालत शुरू की थी। दो चार साल तक वैसे भी कोई मुवक्किल नहीं मिलता। दो चार साल के बाद चार - पाच हजार रुपये महीने की ब्यवस्था यदि हो भी जाए तो उतना तो जेब खर्च ही हो जाता है, लेकिन मजबूरी वश वो भी अपनी गरीबी का प्रदर्शन नहीं कर पाता और चार छ: साल के बाद जब थोड़ी कमाई बढ़ती है यानि दस से पंद्रह हजार हो जाती हैं तो वो भी फाईनेंस कराकर एक चार पहिया वाहन यानि कार खरीदने की मजबूरी उसे आ जाती हैं। क्योंकि उसे भी बड़ा आदमी दिखाने की जो मजबूरी होती हैं। क्योंकि जो दिखता है,वही बिकता भी है।अब कार कि किस्त भी तो भरना है। इसीलिए मैं वही करता, जितना नकद देकर कर संकू।
जरा उसके बारे में भी सोंचिये जो कोरोना संक्रमण से पहले सेल्समैन, एरिया मैनेजर का तमगा लिये घूमता था। भले ही आठ महीना मिले, लेकिन कभी अपनी गरीबी का प्रदर्शन नहीं किया। उनके बारे में भी सोचिये जो बीमा ऐजेंट है, सेल्स एजेंट बना मुस्कुराते हुए घूमता था। आप कार की एजेंसी पहुंचे नहीं कि कार के लोन दिलाने से लेकर डिलीवरी दिलाने तक के लिये मुस्कुराते हुए, साफ सुथरे कपड़े में आपके सामने हाजिर। बदले में कोई उसे चंद रुपये भले ही मिल जाए, लेकिन वह भी अपनी गरीबी का रोना नहीं रोता हैं। आत्म सम्मान के साथ रहता हैं। मैने संघर्ष करते वकील, इंजीनियर, पत्रकार, ऐजेंट आदि देखे हैं। अंदर भले ही चड़ढी (अंडरवियर) फटी हो, लेकिन अपनी गरीबी का प्रदर्शन वो नहीं किया करते। इनके पास न तो मुफ्त में चावल पाने वाला राशन कार्ड है, न ही जनधन का खाता, अब तो गैस की सब्सिडी भी खत्म हो चुकी है। ऊपर से मोटर साईकिल की किस्त या कार की किस्त ब्याज सहित देना हैं। बेटी-बेटा की एक माह की फीस बिना स्कूल भेजे ही इतना देना हैं, जितने में दो लोगों का परिवार आराम से एक महीने खा सकता हैं। परंतु गरीबी का प्रदर्शन न करने की उसकी आदत ने उसे सरकारी स्कूल से लेकर सरकारी अस्पताल तक से दूर कर दिया हैं।
ऐसे ही टाईपिस्ट, स्टोनो, रिसेप्सनिस्ट आदि लोगो का वर्ग हैं। अब ऐसा वर्ग क्या करे ? फेसबुक पर बैठकर अपना दर्द भी नहीं लिख सकता हैं, क्योंकि बड़ा आदमी दिखने की उसकी जो मजबूरी हैं। मजदूर की त्रासदी के बहाने बहुत से मध्यम वर्गीय परिवार के नौजवान मजदूरों की पीड़ा नाम देकर ही अपनी पीड़ा व्यक्त कर रहे हैं।क्या इस गूढ़ रहस्य के बारे में आप सबको पता हैं, जानते हैं मध्यम वर्गीय परिवार की वेदना को ? इस हकीकत को किससे साझा किया जाए ! आरक्षण के इस युग में सिविल परीक्षाओं की तैयारी में आईएएस और पीसीएस का सपना लेकर रात-रात भर जागकर पढ़ने वाला छात्र तो बहुत पहले ही प्रयागराज व दिल्ली से पैदल निकल लिया था। वो भी अपनी पहचान छिपाते हुये मजदूरो के वेश में। क्योंकि वो कभी भी अपनी गरीबी व मजबूरी की दुकान नहीं सजाता। असलियत यही है जो आज न चाहते हुए भी ब्यक्त कर रहा हूँ। सबसे बुरे हालात में मध्यम वर्ग है। देश के अन्दर मध्यम वर्गीय परिवार की दशा ऐसी है कि वह अपनी पीड़ा भी किसी से ब्यक्त नहीं कर सकता !
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