Breaking News

Post Top Ad

Your Ad Spot

शुक्रवार, 29 मई 2020

चिकित्सकीय जैविक कचरे के निपटान के नियम

क्या हैं लाल,पीले व काले बैग...???

चिकित्सकीय जैविक कचरे को ऐसे रखने की होनी चाहिए ब्यवस्था...
बायोमेडिकल कचरे का सही ढंग से निपटान करने के लिये कानून तो बने हैं, लेकिन उनका पालन ठीक से नहीं होता है। इसके लिये केंद्र सरकार ने पर्यावरण संरक्षण के लिये बायोमेडिकल वेस्ट (प्रबंधन व संचालन) नियम, 1998 बनाया है। बायोमेडिकल वेस्ट अधिनियम 1998 के अनुसार निजी व सरकारी अस्पतालों को इस तरह के चिकित्सीय जैविक कचरे को खुले में या सड़कों पर नहीं फेंकना चाहिए। ना ही इस कचरे को म्यूनीसिपल कचरे में मिलाना चाहिए। साथ ही स्थानीय कूड़ाघरों में भी नहीं डालना चाहिए, क्योंकि इस कचरे में फेंकी जानी वाली सेलाइन बोतलें और सिरिंज कबाड़ियों के हाथों से होती हुई अवैध पैकिंग का काम करने वाले लोगों तक पहुँच जाती हैं, जहाँ इन्हें साफ कर नई पैकिंग में बाजार में बेच दिया जाता है।

बायोमेडिकल वेस्ट नियम के अनुसार, इस जैविक कचरे को खुले में डालने पर अस्पतालों के खिलाफ जुर्माने व सजा का भी प्रावधान है। कूड़ा निस्तारण के उपाय नहीं करने पर पाँच साल की सजा और एक लाख रुपये जुर्माने का प्रावधान है। इसके बाद भी यदि जरूरी उपाय नहीं किए जाते हैं तो प्रति दिन पांच हजार का जुर्माना वसूलने का भी प्रावधान है। नियम-कानून तो है, लेकिन जरूरत है, इसको कड़ाई से लागू करने की। नियम के अनुसार, अस्पतालों में काले, पीले, व लाल रंग के बैग रखने चाहिए। ये बैग अलग तरीके से बनाए जाते हैं, इनकी पन्नी में एक तरह का केमिकल मिला होता है जो जलने पर नष्ट हो जाता है, तथा दूसरे पॉलिथिन बैगों की तरह जलने पर सिकुड़ता नहीं है। इसी लिये इस बैग को बायोमेडिकल डिस्पोजेबल बैग भी कहा जाता है।


इन सबके अलावा, अस्पतालों में एक रजिस्टर भी होना चाहिए, जिसमें बायोमेडिकल वेस्ट ले जाने वाले कर्मचारी के हस्ताक्षर करवाए जाएँ। अस्पतालों से निकलने वाले इस कूड़े को बायोमेडिकल वेस्टेज ट्रीटमेंट प्लांट में भेजा जाना चाहिए। जहाँ पर इन तीनों बैगों के कूड़े को हाइड्रोक्लोराइड एसिड से साफ किया जाता है जिससे कि इनके कीटाणु मर जाएँ। आटोब्लेड सलेक्टर से कूड़े में से निकली सूइयों को काटा जाता है, जिससे कि इनको दोबारा प्रयोग में ना लाया जा सके। इसके बाद कूड़े में से काँच, लोहा, प्लास्टिक जैसी चीजों को अलग किया जाता है। शेष बचे हुए कूड़े-कचरे को प्लांट में डालकर उसमें कैमिकल मिलाकर नष्ट कर दिया जाता है। ऐसा करने से बायोमेडिकल कचरे के दुरुपयोग और इससे पर्यावरण को होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है।

 28 राज्यों में जैव चिकित्सा अपशिष्टों के पर्यावरणीय रूप से सुरक्षित निपटान के लिये 200 अधिकृत कॉमन बायो-मेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट एंड डिस्पोज़ल सुविधाएँ (Common Bio-medical Waste Treatment and Disposal Facilities- CBWTFs) हैं। शेष 7 राज्यों गोवा, अंडमान निकोबार, अरुणाचल प्रदेश, लक्षद्वीप, मिज़ोरम, नगालैंड और सिक्किम में CBWTF नहीं हैं। "केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड एवं जैव चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के अनुसार, जैव-चिकित्सा अपशिष्ट को 4 श्रेणियों में विभाजित किया जाना आवश्यक है और इसका इस नियम की अनुसूची 1 में निपटान के निर्दिष्ट तरीकों के अनुसार उपचारित और निपटान किया जाता है। "

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Post Top Ad

Your Ad Spot

अधिक जानें