धार्मिक एवं सार्वजानिक स्थलों पर गौवंश की मृत शरीर को फेंकना कितना उचित है ? क्या मानवीय दृष्टिकोण से ऐसा कृत्य जायज है ? यदि नहीं तो ऐसे दरिंदों पर कार्यवाई क्यों नहीं की जाती ?
ट्रेजरी चौराहा के बगल श्रीहनुमान जी के मन्दिर के सामने गुफरान घोंसी द्वारा फेंका गया मृत गौवंश |
ट्रेजरी चौराहा स्थित श्रीहनुमान जी के मंदिर के सामने गौवंश को बोरे में फेंके जाने की खबर पाकर मंदिर के पुजारी पंडित प्रवीण पांडेय उर्फ सुभाष जी रात में ही आकर मंदिर में लगे माइक से गुफरान घोंसी की करतूतों की धज्जियाँ उड़ाते हुए सभी भक्तों से मंदिर पर एकत्र होने का किया आग्रह। उनके आग्रह पर दर्जनों भक्त हो गए इकट्ठा। पंडित प्रवीण पांडेय जी ने नगर कोतवाल को मंदिर के सामने फेंके गए गौवंश की सूचना दी। सूचना पाते ही चंद मिनटों में नगर कोतवाल सुरेंद्र नाथ जी मय हमराह मंदिर पर आ धमके।
" सूबे में योगी सरकार गौवंश की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है फिर भी डेरी संचालकों की मनमानी पर स्थानीय स्तर पर जिला प्रशासन कोई अंकुश लगा पाने में असमर्थ नजर आता है। तभी तो बिना किसी भय के कोई भी डेरी संचालक अपने मृत हुए गौवंश को धार्मिक स्थलों व सार्वजनिक स्थलों पर फेंक देता है और ब्यवस्था में बैठे जिम्मेदार लोग एक दूसरे पर जिम्मेदारियों की बात कहकर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं। सबसे आश्चर्यजनक स्थिति नगरपालिका परिषद् बेला प्रतापगढ़ की है। क्योंकि नगरपालिका क्षेत्र में संचालित डेरी की कोई सूची आजतक नगरपालिका प्रशासन ने नहीं बनाई। यदि बनाई होती तो उसके पास इतना रिकार्ड तो जरुर होता कि किस डेरी संचालक के पास कितने जानवर हैं और उनके डेरी वाले जानवर यदि मृत होते हैं तो वो उसे कहाँ विसर्जित करते हैं ? कहने के लिए जानवरों का विभाग भी बना है और पशु क्रूरता अधिनयम भी देश में लागू है,परन्तु वो सिर्फ कागजों तक ही सिमट कर रह गया है। इसी का नाम सिस्टम है, तभी तो लोग निडर और निरंकुश होते जा रहे हैं। उन्हें शासन व प्रशासन का तनिक भी भय नहीं रहता।"
नगर कोतवाल ने बिना देर किए नगरपालिका के ई ओ मुदित सिंह से बात करके जेसीबी बुलाया और गौवंश को मंदिर के सामने से हटवाया। तब कहीं जाकर लोंगो का आक्रोश खत्म हुआ। थोड़ी ही देर में सिविल लाइन चौकी प्रभारी भी आ पहुँचे। जिसके बाद नगर कोतवाल सुरेंद्र नाथ जी मय फोर्स गुफरान घोंसी के घर दबिश डाली, परन्तु पल्टन बाजार में ही सेनानी जी के घर के आगे एक सब्जी विक्रेता ने गुफरान घोंसी को उसके घर जाकर पुलिस के आने की सूचना देते हुए उसे घर से भगा दिया। ये देखकर एहसास हुआ कि इनमें आपस में लाख बैर हो, परन्तु ऐसे मौके पर ये एकजुट हो जाते हैं और अपनी ताकत का एहसास कराने से बाज़ नहीं आते।
गुफरान घोंसी के घर नगर कोतवाल के पहुँचने पर गुफरान घोंसी तो नहीं मिले, परन्तु उसकी पत्नी घर पर मिल गई। कोतवाल के पूँछने पर उसकी पत्नी झूठ बोलते हुए बताया कि गुफरान दूध लेकर कहीं गए हैं। कोतवाल जब पुलिसिया अंदाज में आये तो गुफरान की पत्नी ने स्वीकार किया कि गौवंश उसी के पति गुफरान घोंसी ने 150 रुपये देकर घर से शाम को उठवाया था। कोतवाल ने गुफरान की पत्नी से गुफरान को कोतवाली भेजने के लिए कह कर चले गए। कोतवाल के जाते ही गुफरान की पत्नी और माँ उस सब्जी वाले के घर की तरफ जाती हुई दिखी। फोन से बात कर गुफरान को बता रही थी कि जहाँ हो, अब आ जाओ ! पुलिस चली गई है।
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