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शुक्रवार, 29 मई 2020

कैसे होती है बायोमेडिकल कचरे का निपटान...???

कितना खतरनाक है यह बायोमेडिकल कचरा...???


जैविक कचड़े का ऐसे होता है,समापन...
अस्पतालों से निकलने वाला यह जैविक कचरा किसी के लिये भी खतरनाक हो सकता है। इस कचरे में कई तरह की बीमारियों से ग्रस्त मरीजों के उपयोग में लाए गए इंजेक्शन, सूइयाँ, आईवी सेट व बोतलें आदि होती हैं। कबाड़ी इस कचरे को रिसाइकिल कर बेच देते हैं और कई स्थानीय कम्पनियाँ इन बोतलों व सूइयों को साफ कर फिर से पैकिजिंग कर देती हैं। ऐसे में इनके उपयोग से संक्रमण के साथ-साथ अन्य लोगों की जान जाने का भी खतरा होता है। इन जैविक कचरों में कई ऐसी सड़ी-गली चीजें भी होती हैं, जिनसे उनको खाने कि लिये कुत्ते व सुअर भी आ जाते हैं, इस तरह जानवरों में और फिर उनसे लोगों में संक्रमण फैलने का खतरा बना रहता है।

कई ऐसे अस्पताल हैं, जिनमें बायोमेडिकल कचरे को साधारण कचरे के साथ कूड़ाघर में डाल रहे हैं। जो बहुत बड़ी चिंता की बात है। उससे भी बड़ी चिंता की बात यह है कि इन अस्पतालों की प्रबंधन कमेटियाँ निजी कम्पनियों से बायोमेडिकल वेस्ट के सुरक्षित निस्तारण का करार तो कर लेती हैं, लेकिन इसकी अच्छी तरह से निगरानी न करने से वे कम्पनियाँ लापरवाही से काम करती हैं और यह लापरवाही धीरे-धीरे और भी खतरनाक रूप लेती जा रही है।

अस्पतालों से निकलने वाला कचरा काफी घातक होता है। खुले में फेंकने से प्रयोग की गई सूई और दूसरे उपकरणों के पुनः इस्तेमाल से संक्रामक बीमारियों का खतरा बना रहता है। सामान्य तापमान में इसे जलाकर खत्म भी नहीं किया जा सकता है। अगर कचरे को 1,150 डिग्री सेल्सियस के निर्धारित तापमान पर भस्म नहीं किया जाता है तो यह लगातार डायोक्सिन और फ्यूरान्स जैसे आर्गेनिक प्रदूषक पैदा करता है, जिनसे कैंसर, प्रजनन और विकास संबंधी परेशानियाँ पैदा हो सकती हैं। ये न केवल रोग प्रतिरोधक प्रणाली और प्रजनन क्षमता पर असर डालते हैं बल्कि ये शुक्राणु भी कम करते हैं और कई बार मधुमेह का कारण भी बनते हैं।

जैविक कचरा किसी के लिये भी खतरनाक हो सकता है
जहाँ तक बायोमेडिकल वेस्ट निपटारन प्लांट की बात है, हमारे देश में करीब 157 कॉमन बीएमडब्ल्यू निपटारा प्लांट मौजूद हैं। इनमें से लगभग 149 प्लांट चालू हैं। इनमें सबसे अधिक 34 कॉमन बीएमडब्ल्यू सुविधाएँ महाराष्ट्र में मौजूद हैं। दिल्ली में बीएमडब्ल्यू के निपटारे के लिये नियुक्त कंपनी सिनर्जी वेस्ट मैनेजमेंट प्राइवेट लिमिटेड दिल्ली के हर भाग से बायोमेडिकल वेस्ट इकट्ठा करती है। इस समस्या से छुटकारे के लिये ही पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल के तहत सिनर्जी ने दिल्ली में एक ही स्थान पर कचरे के निपटारे के लिये पर्याप्त क्षमता का प्लांट यानि इंसिनिरेटर (उच्च तापमान पर भस्म करने वाला संयंत्र) लगाया गया है। इसमें कचरा नष्ट किया जाता है।

आंकड़ों के अनुसार राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में सालभर में कुल 2,400 टन के आस-पास बायोमेडिकल कचरे का निपटारा किया जाता है। जिसमें से लगभग 800 टन नोएडा, लगभग 600 टन गुड़गाँव, लगभग 500 टन गाजियाबाद और करीब 350 टन फरीदाबाद में कचरा निकलता है। दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीपीसी) के आंकड़ों के अनुसार दिल्ली में रोजाना 60 टन बायोमेडिकल कचरा पैदा होता है। इसके निपटारे को और दक्ष बनाने के लिये दिल्ली सरकार प्लाज्मा टेक्नोलॉजी का संयंत्र लगाने की योजना भी बना रही है। फिलहाल दिल्ली के कॉमन बीएमडब्ल्यू संयंत्र 20 से 25 फीसदी की क्षमता पर कार्य कर रहे हैं।

पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने हाल ही में देश के 13,037 स्वास्थ्य सेवा केंद्रों की सूची जारी की है जिन्हें बायोमेडिकल कचरा उत्पादन एवं निबटान नियमों का उल्लंघन करते पाया गया है। ऐसी स्वास्थ्य इकाइयों की संख्या 2007-08 में 19,090 थी। मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, देश में रोजाना 4,05,702 किलोग्राम बायोमेडिकल कचरा पैदा होता है, जिसमें से 2,91,983 किलोग्राम कचरा ही ठिकाने लगाया जाता है। इस आंकड़े से इस बात की भी पुष्टि होती है कि रोजाना 1,13,719 किलोग्राम कचरा नष्ट नहीं किया जाता और वह अनिवार्य रूप से स्वास्थ्य प्रणाली में वापस आ जाता है।


जैविक कचड़े के लिए ऐसे रखने चाहिए डिब्बे...
" आंकड़े यह भी बताते हैं कि नियमों का उल्लंघन करने वाली सबसे ज्यादा मेडिकल इकाइयां महाराष्ट्र और बिहार में हैं। मात्रा के हिसाब से देखें तो जिन राज्यों में सबसे ज्यादा बायोमेडिकल कचरा निकलता है, वे हैं कर्नाटक (लगभग 62,241 किलोग्राम), उत्तर प्रदेश (लगभग 44,392 किलोग्राम) और महाराष्ट्र (लगभग 40,197 किलोग्राम)। कर्नाटक में नियमों का सबसे ज्यादा उल्लंघन होता है, क्योंकि वह रोजाना 18,270 किलोग्राम मेडिकल कचरे को ठिकाने नहीं लगा पाता। महाराष्ट्र का दावा है कि वह पूरे बायोमेडिकल कचरे को ठिकाने लगा देता है, इसके बावजूद उसके यहाँ कानून का उल्लंघन करने वाली स्वास्थ्य इकाइयां हैं। बिहार में रोजाना सिर्फ 3,572 किलो बायोमेडिकल कचरा पैदा होता है जो बड़े राज्यों की तुलना में न्यूनतम है जबकि निपटारा नियमों का उल्लंघन करने वालो राज्यों में उसका तीसरा स्थान है। "

इसका मतलब यह है कि बिहार में बड़ी संख्या में स्वास्थ्य सेवा केंद्र ऐसे हैं, जो नियमों का पालन नहीं करते। वैसे तो 1998 के बायोमेडिकल कचरा (प्रबंधन और निपटान) नियमों के मुताबिक, बायोमेडिकल कचरा पैदा करने वाले स्वास्थ्य सेवा केंद्रों के लिये यह पक्का करना अनिवार्य है कि कचरे के प्रबंधन से मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण पर किसी तरह का प्रतिकूल प्रभाव न पड़े। लेकिन ऐसा कभी-कभार ही होता है। फरवरी 2009 में गुजरात के मेडासा कस्बे में वायरल हेपिटाइटस की वजह से कई लोगों की मृत्यु हो गई। स्वास्थ्य विभाग की जाँच के अनुसार, बायोमेडिकल कचरे को ठीक से ठिकाने न लगाए जाने की वजह से घातक वायरस फैला जिससे कई लोगों की जान गई। हमें और आपको क्या करना चाहिए...?

बायोमेडिकल कचरे के उचित निपटान एवं प्रबंधन में हमारी और आपकी भी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। इसके लिये हम निम्न बातों को अपना कर इस बायोमेडिकल कचरे से खुद को और अपने पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचा सकते हैं :-
1. कचरे को बंद वाहनों में ले जाना चाहिए। मिश्रित कचरे को अलग-अलग करके निर्धारित प्रक्रिया के तहत उसका निस्तारण करना चाहिए।
2. कचरे को जलाकर नष्ट करने के बजाय उसकी री-साइकिल करने की व्यवस्था होनी चाहिए।
3. बायोमेडिकल और इंडस्ट्रियल कचरे को शहरी कचरे में नहीं मिलाना चाहिए।
4. जगह-जगह पर कचरा पात्र रखे होने चाहिए, जहाँ से कचरा नियमित रूप से उठाने की व्यवस्था हो।
5. ठोस कचरा प्रबंधन की जानकारी के लिये जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए।
6. व्यक्तियों के द्वारा कचरा उठाकर डालने की प्रक्रिया पूर्णतयः प्रतिबंधित होनी चाहिए।
7. लैंडफिल साइट पर बायोमेडिकल कचरा न डालें। यदि लैंडफिल पर कचरा डालना भी हो तो कचरा डालते ही तत्काल 10 मिलीमीटर की मिट्टी की परत बिछा देनी चाहिए।
8. अस्पतालों को भी बायोमेडिकल कचरा निपटान के नियमों का पूरी तरह से पालन करना चाहिए।

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