प्रतापगढ़ शहर में कौन है,गुफरान घोंसी...???
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लॉकडाउन में चौराहेबाजी करते गल्ली मोहल्ले के नेता गुफरान घोंसी |
गौवंश के मृत होने पर डेरी संचालकों द्वारा उसे बोरे में भरकर सार्वजानिक स्थलों पर फेंक देने की घटना कोई पहली बार घटित नहीं हुई। इसके पहले भी प्रतापगढ़ में डेरी संचालकों द्वारा जब कोई गौवंश मृत हो जाता है तो उसे दिनभर वैसे ही सड़ने और गंधाने के लिए छोड़ दिया जाता है। उन्हें इंतजार रहता है तो शाम होने का ताकि वो उसे रात के अंधेरे में छिपते छिपाते बोरे में भरकर सार्वजनिक स्थलों पर उसे फेंक देने में सफल रहें। कल देर शाम ट्रेजरी चौराहे के बगल श्री हनुमान जी के मंदिर के सामने जो गाय का बछड़ा बोरे में भरकर फेंका गया था उसे कोई और नहीं बल्कि पल्टन बाजार मोहल्ले का रहने वाला का गुफरान घोंसी ने फेंकवाया था। ऐसा घृणित कार्य कभी पंचमुखी मंदिर के पास तो कभी श्री हनुमान जी के मंदिर के पास किया जाता है। बस फेंकते समय इन्हें कोई न देख सके। फिर तो ये हरिश्चंद्र की औलाद से अपने को कम नहीं बताते। ये सीधे गंगा पौड़ जायेंगे। ये तो कल लोंगो ने देख लिया तो गुफरान घोंसी का चाल, चेहरा और चरित्र उजागर हो गया।
"गल्ली मोहल्ले के नेताओं की बात ही निराली होती है। चाहे जितनी ब्यवस्था चाक चौबंद रहे पर ये गल्ली और मोहल्ले के नेता अपनी आदत से बाज़ नहीं आते। लॉकडाउन के दौरान भी इनकी जिंदगी सड़क पर बिना गप्पे लड़ाए कटती ही नहीं। ऐसे ही एक गल्ली के नेता हैं गुफरान घोंसी जो कई न्यायाधीशों और प्रशासनिक अफसरों को अपनी जेब में रखते हैं। नेताओं की बात करें तो कई नेता इनके डेरी में जानवरों को सानी देते हैं। ये जब सड़क पर किसी को आते जाते पा जायें फिर इनकी बकैती सुनते ही बनती है। ऐसा फेंकते हैं कि लपेटना मुश्किल हो जाता है,परन्तु हकीकत कुछ और ही है। जैसे ही पुलिस की गाड़ी गुफरान नेता देखते हैं तो दोनों पैर सर पर रखकर अपनी गली में भागकर छिप जाते हैं और पुलिस के जाते ही फिर बकैती चालू..."
सवाल उठना लाजिमी है कि इन घोंसियों के यहाँ गौवंश विशेष रूप से गाय के बछड़े और भैंस के पड़वे क्यों मर जाते हैं ? आखिर क्या है, इसकी असल वजह ? इस वजह की गहराई से पडताड़ करने पर पता चला कि गुफरान घोंसी जैसे डेरी संचालक दूध की लालच में गौवंश को जानबूझकर मार देते हैं। ताकि उसके हिस्से का भी दूध वो बेंच ले। साथ ही उन गौवंश को पालना भी न पड़े। उसकी खुराकी में लगने वाला धन भी बच सके। यदि गौवंश के मृत होने के बाद दूध देने में वो दुधारू गाय और भैंस आनाकानी भी करे तो प्रतिबंधित इंजेक्शन लगाकर उसका दूध गुफरान घोंसी जैसे डेरी संचालक दुह लेते हैं। भले ही वो दूध नुकसान देह हो ! ऐसे में आम आदमी को क्या गुफरान घोंसी जैसे डेरी संचालकों के यहाँ से दूध लेना चाहिये या नहीं लेना चाहिये...???
बात यहीं खत्म नहीं हुई। देश में कोरोना वायरस जैसी महामारी के दौरान देश भर में लॉकडाउन को लागू हुए 2 माह हो गए और पूरे लॉक डाउन के दरमियान गुफरान घोंसी मय परिवार सड़क और गली को अपने पिताजी की जागीर समझकर पूरी तरह महफ़िल लगाने में कोई संकोच नहीं करते। उनका समय सड़क पर अधिक से अधिक कटता है। आने जाने वालों पर गुफरान छीटाकशी भी करने से बाज़ नहीं आते। शाम को कोई महिला यदि भोजनोपरांत टहलने के लिए घर से भूलवश निकल जाए तो गुफरान घोंसी अपने पड़ोसी के साथ उसकी चाल ढाल पर भी फब्तियां कसने में संकोच नहीं करते। गुफरान घोंसी जैसे लोंगो का असली चेहरा समाज के सामने आना चाहिये। इनके अंदर फितरत कूट कूटकर भरी है। मौका मिलते ही ऐसे लोग योगी और मोदी की सरकार के विरुद्ध सड़क पर पूरे मनोयोग से गाली देने में भी पीछे नहीं रहते, जबकि सच्चाई की बात करें तो नियम कानून को ताक पर रखकर गुफरान घोंसी योगी और मोदी सरकार की सारी योजनाओं का लाभ लेने में कभी भी पीछे नहीं रहते। कामगारों और पटरी दुकानदारों को लॉकडाउन के मद्देनजर 1000/ एक हजार रुपये का लाभ पाने के लिए गुफरान घोंसी नगरपालिका का चक्कर लगाते दिखे थे।"आवास विहीन ब्यक्तियों को प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत आवास देने की बात मोदी सरकार ने की थी। अपने पहले कार्यकाल में मोदी सरकार नगरपालिका क्षेत्र में रहने वाले ऐसे मकान विहीन लोंगो को प्रधानमंत्री आवास देने की पहल की। जिसके पास जमीन थी,परन्तु आवास नहीं। गुफरान घोंसी के पास डेरी और पक्का आवास होने के बावजूद प्रधानमंत्री आवास को अपने शातिराने अंदाज में डूडा के अधिकारियों से पीएम आवास अपनी पत्नी के नाम झटक लिया। अभी तक उसका निर्माण भी नहीं कराए। जबकि हकीकत यह है कि गुफरान घोंसी अपने गाय और भैंस के तवेले यानि डेरी से प्रत्येक माह 30से 40हजार रुपये की आमदनी करता है। योगी और मोदी सरकार को ऐसे अपात्रों के चयन करने वाले अधिकारियों के वेतन से इसकी रिकवरी करनी चाहिए।"
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