Breaking News

Post Top Ad

Your Ad Spot

गुरुवार, 28 फ़रवरी 2019

पाकिस्तान से समझौता करने की जल्दबाजी में इंदिरा गांधी इतनी अंधी बहरी क्यों हो गयी थीं ?

सवाल तो उठना ही चाहिए साथ ही छिपे और छिपाए गए राज़ से भी पर्दा उठना चाहिए... 
आज एक विंग कमांडर अभिनंदन को बंदी बनाए जाने तथा उनकी रिहाई को लेकर सरकार के खिलाफ राजनीतिक मातम और मीडियाई ताण्डव करने का घृणित पाखंड कर रही कांग्रेस शायद भूल गयी है कि जो 54 युद्धबंदी इंदिरा गांधी की तत्कालीन कांग्रेसी सरकार की घातक शर्मनाक अनदेखी और आपराधिक लापरवाही के कारण आजतक लौटकर अपने घर वापस नहीं आ सके उनमें भी एक विंग कमांडर हरसरन सिंह गिल तथा 4 स्क्वाड्रन लीडर समेत वायुसेना के 25 पायलट शामिल हैं। उनके परिजन आज 48 साल बाद भी इंदिरा गांधी की उस कांग्रेसी सरकार की प्राणघातक करतूत के पाप की आग में जल रहे हैं। उल्लेखनीय है कि 1971 के भारत पाक युद्ध में बंदी बनाए गए 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों तथा 3800 भारतीय सैनिकों के प्राणों की कीमत चुका कर भारतीय सेना द्वारा कब्ज़ा की गई पाकिस्तानी भूमि को 1972 में बिना शर्त वापस करने की जल्दबाजी में इंदिरा गांधी इतनी अंधी बहरी हो गयी थीं कि उनको भारतीय वायुसेना के विंग कमांडर हरसरन सिंह गिल, फ्लाइट लेफ्टिनेंट वी. वी. तांबे और फ्लाइंग ऑफिसर सुधीर त्यागी तथा भारतीय सेना के कैप्टन गिरिराज सिंह, कैप्टन कमल बख्शी समेत उन 54 भारतीय युद्धबंदियों की रिहाई की याद नहीं आयी जो पाकिस्तानी जेलों में बंद थे और जिनके बंद होने के पुख्ता प्रमाण सार्वजनिक रूप से उपलब्ध थे।
उल्लेखनीय है कि फ्लाइट लेफ्टिनेंट वी. वी. तांबे का नाम 5 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान के ऑब्जर्वर अखबार में फ्लाइट लेफ्टिनेंट तांबे के नाम से प्रकाशित हुआ था। अखबार रिपोर्ट में कहा गया था कि 5 भारतीय पायलट पाकिस्तान के कब्जे में हैं। लेकिन पाकिस्तान ने युद्ध बंदियों की सूची में इनको नहीं दिखाया और इंदिरा गांधी भी उन भारतीय सैनिकों को रिहा कराना भूल गई थीं। उल्लेखनीय है कि फ्लाइट लेफ्टिनेंट वी. वी. तांबे की पत्नी साधारण महिला नहीं है। 1971 में वो अंतरराष्ट्रीय ख्याति की बैडमिंटन खिलाड़ी थीं तथा बैडमिंटन की राष्ट्रीय महिला चैम्पियन थीं। अतः उन्होंने हर उच्च स्तर तक  गुहार लगाई थी लेकिन परिणाम शून्य ही रहा। इसी तरह युद्ध की समाप्ति के 11 दिन पश्चात 27 दिसम्बर 1971 को भारतीय सेना के मेजर ऐके घोष का पाकिस्तान की जेल में बंदी अवस्था का चित्र विश्वविख्यात अमेरिकी पत्रिका TIMES ने प्रकाशित किया था। लेकिन 93000 पाकिस्तानियों को रिहा करने का समझौता करते हुए इंदिरा गांधी को मेजर घोष याद नहीं रहे थे।
ज्ञात रहे कि 4 मार्च 1988 को पाकिस्तान की जेल से रिहा होकर भारत आये दलजीत सिंह ने बताया था कि उसने फ्लाइट लेफ्टिनेंट वीवी तांबे को लाहौर के पूछताछ केंद्र में फरवरी 1978 में देखा था। 5 जुलाई 1988 को पाकिस्तानी कैद से रिहा होकर भारत वापस लौटे मुख्तार सिंह ने बताया था कि कैप्टन गिरिराज सिंह कोट लखपत जेल में बंद हैं। मुख्तार ने 1983 में मुल्तान जेल में कैप्टन कमल बख्शी को भी देखा था। उस समय उनके मुताबिक बख्शी मुल्तान या बहावलपुर जेल में हो सकते हैं। इसी तरह के कई और चश्मदीद लोगों की रिपोर्ट भी अलग अलग समय पर उन 54 भारतीय युद्धबंदियों के परिजनों के पास लगातार आती रही हैंफ्लाइंग ऑफिसर सुधीर त्यागी का विमान भी 4 दिसंबर 1971 को पेशावर में फायरिंग से गिरा दिया गया था और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था। अगले दिन पाकिस्तान रेडियो ने इस बारे में घोषणा की थी तथा पाकिस्तानी अखबारों ने भी इस खबर को छापा था। इसके बावजूद पाकिस्तान लगातार यही कहता रहा है कि ये 54 लोग उसकी जेलों में बंद नहीं हैं, जबकि उनके परिजनों का मानना था कि ये लोग पाकिस्तान की जेलों में कैद हैं। अतः आज पूरा देश कांग्रेस से यह जानना चाहता है कि 1972 में पाकिस्तान से समझौता करने की जल्दबाजी में इंदिरा गांधी इतनी अंधी बहरी क्यों हो गयी थी ? विशेष: उन 54 युद्धबंदियों की पूरी सूची का लिंक पहले कमेन्ट में देखिए तथा इस कांग्रेसी कुकर्म और करतूत की कहानी से आज हर भारतीय का अवगत होना अत्यन्त आवश्यक है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Post Top Ad

Your Ad Spot

अधिक जानें