सरकार ही नहीं चाहती कि उसके द्वारा बनाये गए कानून पर अमल हो...!!!
उ.प्र.में जमींदारी विनाश अधिनियम तो वर्ष 1950 में कर दिया गया था, परन्तु शहर यानि नगर में जमींदारी बची रह गई जिसे खत्म करने के लिए जनता का सरकार पर दबाव भी बना रहा l दबाव का परिणाम ये रहा कि वर्ष 1956 में शहर की कास्तकारी यानि खेती की योग्य जमीनों को जमींदारी से अलग कर दिया गया l अब बचा शहर यानि नगर में रिहायशी जमींदारी से मुक्ति का तो इससे भी 11 फरवरी, 2016 को उ.प्र.सरकार ने नगर की जनता को मुक्त करने का फैसला कर दिया l स्वतंत्रता के 69 वर्ष में जाकर राजा यानि जमींदार के चंगुल से आम जनता को राहत मिली है l प्रदेश में कानून तो बन गया अब उसे मूर्तरूप में लागू करने की बारी जब आई तो उसमें अनेकों विसंगतियां सामने आना शरू हुई l इस कानून को लागू हुए 2 वर्ष होने को हैं,परन्तु अभी तक आम जनता में इस कानून को लेकर असमंजस बरकरार है l उ.प्र.राजस्व संहिता, 2006 जो 11फरवरी, 2016 को अपने अस्तित्व में आई l यानि शहर का रिहायसी क्षेत्र की जमीदारी को समाप्त करने के लिए वर्ष 2007 में माया सरकार बनते ही उस पर मंथन शुरू किया गया l उ.प्र.राजस्व संहिता, 2006 पर कार्य करना तो शुरू हुआ परन्तु उसे मूर्तरूप मायावती की सरकार न दे सकी l वर्ष-2012 का आम चुनाव हुआ जिसमें मायावती बुरी तरह पराजित हुई और सूबे में समाजवादी पार्टी की सरकार बनी जिसके मुखिया अखिलेश यादव हुए l अखिलेश की सरकार ने भी इस कानून को 4 वर्ष तक ठंडे बस्ते में रखा और चुनावी वर्ष में इस कानून को चुनावी कुरुक्षेत्र में उतार दिया l
वर्ष-2017 के चुनाव में सपा, बसपा और कांग्रेस की भाजपा ने हवा निकाल दी l सूबे में भगवा सरकार अस्तित्व में आई परन्तु योगी सरकार को बने भी एक वर्ष होने जा रहे हैं,परन्तु राजस्व विभाग के निकम्मे और गैरजिम्मेवार अधिकारी इस अधिनियम पर मौन ब्रत धारण किये हुए हैं l यानि एक तरह से सूबे की सभी सरकारें सिर्फ आम जनता को झुनझुना पकड़ाकर अपना उल्लू सीधाकर काम बनाना चाहती हैं,तभी तो चुनावी वर्ष में इस कानून को पास किया गया,जबकि बसपा सुप्रेमो मायावती के कार्यकाल में उ.प्र.राजस्व संहिता,2006 पर कार्यवाई शुरू हुई और कच्छप गति से 10वर्ष बाद बहुत ही ढुलमुल तरीके से अनेको कमियों के साथ इसे अमल में लाया गया l तभी तो 10 वर्ष में कच्छप गति से बने इस कानून को लागू हुए 2 वर्ष होने को है फिर भी अभी तक सरकार ये तक तय नहीं कर सकी है कि शहरी क्षेत्र में जमींदारों द्वारा दिए गए पट्टे जिस पर पट्टेदार अपना आशियाना बनाकर अभी तक रह रहा है,इसके पट्टे का रिन्युवल कौन करेगा ? जिन पट्टेदारों के पट्टे की अवधि समाप्त हो गई है अथवा होने वाली है,उन्हें उस भूखंड का स्वामित्व किस प्रक्रिया के तहत दिया जाएगा l आज भी जमींदार अपने को राजा मानते हुए नॉन जेड ए की जमीन का स्वामी बताकर पट्टेदारों अथवा जो भी क्रेता पट्टे की जमीन लेना चाहता है,उसे राजा अपने को जमींदार बनकर उसे बकायदा रजिस्ट्री दफ्तर में बैनमा कर दे रहे हैं l कथित जमींदारों से लोकतंत्र की दुहाई देने वाली सरकार की हिम्मत नहीं हो रही है कि इन कथित जमींदारों से ये पूंछने की जहमत मोल लें कि किस अधिकार से जमींदारी समाप्त होने के बाद वो शहरी क्षेत्र में पट्टे वाली जमीन का बैनामा कर रहे हैं ? सबसे बड़ा सवाल तो ये है कि जिन नॉन जेड ए की जमीनों को ये जमींदारों द्वारा बिक्रय किया गया क्या उसका टैक्स राजस्व परिषद् में जमा किया गया ? यदि नहीं जमा किया गया तो उन जमींदारों के विरुद्ध राजस्व परिषद् और उ.प्र.की सरकारें क्या कार्यवाही की ? राजस्व परिषद् के आला अधिकारियों सहित जनपद में तैनात जिलाधिकारी एवं मुख्य राजस्व अधिकारी इस मुद्दे के सवाल पर बगल झांकने लगते हैं l इस प्रक्रिया के सम्बन्ध में आर टी आई भी डाली गई है,परन्तु योगी सरकार में भी वेखौफ़ और भ्रष्ट अधिकारियों के सिर पर जूं नहीं रेंग रही l कहावत है कि जिससे जन्मते नहीं बनता,उससे मरते भी नहीं बनता…!!!
उ.प्र.राजस्व संहिता,2006 की वर्तमान स्थिति... |
राजस्व परिषद् ,उत्तर प्रदेश... |
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