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शुक्रवार, 16 मार्च 2018

सपा जिला सचिव आशुतोष पाण्डेय ने किया प्रतापगढ़ महोत्सव की लूट का पर्दाफाश

जिला कार्यक्रम अधिकारी द्वारा प्रतापगढ़ महोत्सव में सहयोग राशि वसूलने का फंडा उनके व्हाट्स ऐप के मैसेज से समझा जा सकता है...!!!

 महोत्सव की लूट का सच...

प्रतापगढ़। राजकीय इंटर कॉलेज परिसर में आयोजित चार दिवसीय प्रतापगढ़ महोत्सव में नामचीन कलाकारों की प्रस्तुति यू ही नही हो रही है। महोत्सव में लगभग 50 लाख रुपये का खर्च होने का अनुमान है। जिलाधिकारी और उनकी पत्नी को खुश करने सबके ये महोत्सव का रंगारंग कार्यक्रम आयोजित किया गया। जो पैसा शासन के सांस्कृतिक विभाग से मिलेगा वो तो मिलेगा ही,परन्तु जनपद में विभिन्न विभाग के कार्यालय अध्यक्षों से सहयोग राशि लेने की जानकारी हुई । इसकी सच्चाई जानने का जब प्रयास किया गया तो जो सच सामने आया उसे देखकर आँखे खुली की खुली रह गई प्रतापगढ़ महोत्सव में प्रमुख भूमिका का निर्वहन करने वाले प्रभारी जिला कार्यक्रम अधिकारी संतोष कुमार श्रीवास्तव के पास वर्षों से जिला सूचना अधिकारी,प्रतापगढ़ का प्रभार है,जिसके कारण वो जिलाधिकारी सहित शासन स्तर पर अपनी उपस्थिति बनाये रखने में सफल हैं 


 सीडीपीओ द्वारा प्रसारित मैसेज... 

मुख्यमंत्री सामूहिक विवाह में भी संतोष कुमार श्रीवास्तव काफी सुर्ख़ियों में रहे CDPO रहते हुए जिला स्तरीय दो पदों पर प्रभारी बने रहना ये सिद्ध करता है कि संतोष कुमार श्रीवास्तव बड़े पैमाने पर सेटिंग करते हैं । एक सेटिंगबाज राजेश खरे पदमुक्त हुए तो दूसरे राजेश खरे की कमी पूरा करने के लिए पैदा हो गए अकेले CDPO संतोष कुमार खरे अपने विभाग के मातहतों से सहयोग राशि के रूप में लगभग ढाई लाख रुपये की वसूली कर महोत्सव में सहयोग किये। उन्होंने 13 मार्च को विकास भवन में मातहतों की मीटिंग बुलाकर प्रत्येक सुपर वाइजर से दो हजार तथा परियोजना अधीक्षक से 5 हजार रुपये वसूल किये। जो सहयोग राशि देने में आना-कानी किये,उसे संतोष कुमार श्रीवास्तव डीएम साहेब से कार्यवाही कराने का भय दिखाकर वसूल किये। 

इसी तरह से कई अन्य विभागों में डीएम का भय दिखा कर वसूली की गई है। अभी भी विभागों में वसूली की कार्यवाही जारी है। ये तो रहा सरकारी विभागों के मातहतों की पीड़ा अब आईये विभागों से जुड़े ठेकेदारों के साथ हो रही लूट पर विभागों  के ठेकेदारों की कमजोर नस विभागध्यक्ष के पास होती है इसलिए विना चिल्ल-पों किये वो भी सहयोग राशि प्रतापगढ़ महोत्सव के लिए दे दिए हैं और कुछ अभी भी दे रहे हैं। अब बात करते हैं प्राइवेट चंदे की जो ब्यवसायिक वर्ग से वसूला जा रहा है। ब्यवसायिक वर्ग तो चंदा देने के मामले में सबसे कमजोर होता है। ब्यवसाय में अनगिनत कमियाँ रहती हैं,प्रशासनिक डर से वो भी इच्छा के आभाव में भी न चाहते हुए चंदा दिया विचारणीय विन्दु ये है कि प्रतापगढ़ महोत्सव के नाम पर आखिर चंदा कितना एकत्र हुआ और उस पर खर्च कितना हुआ ? इसका लेखा-जोखा देने वाला कोई नहीं। इसलिए ये कहना गलत न होगा कि लूटा राजा चंदा भी लूटो...!!! 

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