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शुक्रवार, 9 मार्च 2018

प्राथमिक विद्यालय के मध्यान्ह "MDM" भोजन की जमीनी हकीकत...

ब्यवस्थाजनित भ्रष्टाचार....
 MDM का साप्ताहिक चार्ट 
सरकार में बैठे हुक्मरानों की इस महत्वाकांक्षी योजना की गहराई से पड़ताल किया तो जो साक्ष्य और तथ्य मिले उससे तो होश उड़ गए किसी योजना को समझने के लिए उसके तह तक जाना आवश्यक होता है प्राथमिक विद्यालय के मध्यान्ह "MDM" भोजन की जमीनी हकीकत को जानने व समझने का एक छोटा सा प्रयास किया गया। MDM को समझने के लिए सबसे पहले ये जानना आवश्यक है कि एक बच्चे के पीछे एक दिन का क्या खर्च आता है और सरकार एक बच्चे पर क्या खर्च कर रही है ? एक बच्चे के पीछे प्रतिदिन सौ ग्राम राशन (गेंहू/चावल) और प्रति बच्चे के पीछे सरकार 4.13 पैसे धन ब्यवस्था में बैठे हरिश्चन्द्र की औलादों को उपलब्ध कराती हैसोमवार के दिन फल वितरण के लिए सरकार अतिरिक्त धन देती हैबुद्धवार को बच्चों को दूध पिलाया जाता हैएक बच्चे के पीछे 100 मिलीलीटर दूध का प्राविधान है दूध के लिए सरकार अतिरिक्त धन नहीं देती, परंतु बुद्धवार के दिन सभी प्राथमिक विद्यालयों में तहरी बनती है,जिससे कि दूध का बजट उसी में समाहित हो जाये। इतना कुछ होते हुए भी ब्यवस्था में बैठे लोग यदि ईमानदारीपूर्वक MDM का वितरण बच्चों में कराये तो सामूहिक भोजन निर्माण में इतने बजट में भी अच्छा भोजन बनवा कर बच्चों को खिलाया जा सकता है
रसोइयां के लिए अलग से मिलता है,मानदेय...
पाउडर का घटिया से घटिया दूध का किया जाता है,बच्चो में वितरण...
सरकार की बस एक कमी है कि वह नियमित रूप से धन न देकर लंबे अंतराल पर MDM के लिए धन देती है, जिससे समस्या उत्पन्न होती है। पैसा ग्राम प्रधान एवं प्रधानाध्यापक के संयुक्त खाते में आता है इसलिए दोनों में विवाद होता रहता है। कहीं-कहीं भोजन ग्राम प्रधान बनवाता है तो कहीं-कहीं प्रधानाध्यापक भोजन बनवाने का काम करता है। जो भोजन बनवाता है,चेक उसी के नाम से काटा जाता है। दरअसल बेईमानी के सारे धंधे बड़े ईमानदारी के साथ किये जाते हैं। चूँकि जिस योजना में शुरुआत में ही गड़बड़ी पैदा हो जाती है उसे अन्ततः दुरुस्त नहीं किया जा सकता। MDM लागू होने से पहले प्राथमिक स्कूलों में बच्चों की संख्या बढ़ाने के लिए अच्छी पढ़ाई के स्थान पर बच्चों को कुछ रुपये महीने का दिया जाना शुरू किया गया। उसमें भ्रष्टाचार की शिकायते अधिक हुई तो अनाज देने की ब्यवस्था शुरू की गई,परन्तु भ्रष्टाचार के प्रबल प्रवाह को रोका न जा सका। अनाज बेंच लेने की शिकायते हुई तो ब्यवस्था में बैठे शीर्ष पदों ने अंतिम फैसला लिया कि अब स्कूल में ही मिड-डे-मील बनाकर बच्चों को खिलाया जाएगा। उसके लिए सभी प्राथमिक स्कूलों में भोजन पकाने के लिए बर्तन खरीदने की ब्यवस्था की गई। गैस चूल्हा और रसोइयां की ब्यवस्था भी की गईपठन-पाठन की जगह प्राथमिक स्कूल सिर्फ मिड-डे-मील के उधेड़बुन में फंसता गया और अन्तोगत्वा देहात में ग्राम प्रधान और हेडमास्टर और शहरी क्षेत्र में निकायों के जनप्रतिनिधि और हेडमास्टर मिड-डे-मील में अंतिम विकल्प में भी सेंधमारी करते हुए पर्याप्त मात्रा में भ्रष्टाचार की ब्यवस्था कर डाली। इस प्रकार यह व्यवस्था बेसिक शिक्षा में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार के रूप में सबके सामने है । जब प्रधानाध्यापक भोजन बनवाता है तो फर्जी हाजिरी लगाकर पैसा बचाने का प्रयास करता है। यदि ग्राम प्रधान खाना बनवाता है तो वह भोजन की गुणवत्ता घटाकर कमाने की कोशिश करता है। इस तरह प्रतिदिन बच्चों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है,उनके जीवन को जानबूझकर जोखिम में डाला जाता है। योगी सरकार ने सत्ता में आने पर कहा था कि वह भोजन का खर्च बच्चों की मां के खाते में भेजेगी तथा माताएं दोपहर का टिफिन बच्चों को देंगी, मगर अभी तक इस पर अमल न हो सका। कोई भी लापरवाही होती है तो विभाग अपने कर्मचारी को पकड़ता है, परंतु संलिप्ता प्रधान की भी होती है। घटना घटित होने के कुछ दिन तक सक्रियता बनी रहती है और कुछ ही दिन बाद लोग उस घटना को भूल जाते हैं और भ्रष्टाचारियों को उसी दिन का वेशब्री से इन्तजार रहता है कि उसके द्वारा किये गए अपराध पर लीपापोती कर उसे उससे फुर्सत मिले और वो निकट भविष्य में वैसी घटना को पुनः अंजाम दे सके
 जहरीला दूध पीने के बाद जिला अस्पताल में भर्ती हुए बच्चे...
दो दिन पूर्व प्रतापगढ़ के तहसील-रानीगंज के विकास खंड-गौरा के प्राथमिक विद्यालय फतनपुर में जहरीला दूध पीकर जो बच्चे बीमार हुए तो विभागीय अधिकारियों सहित जिला प्रशासन के हाथ पैर फूल गये l जिलाधिकारी शम्भू कुमार और मुख्य विकास अधिकारी राजकमल यादव सहित जिला अस्पताल में चिकित्सकों ने बीमार बच्चों के प्रति मानवीय संवेदनाओं को ध्यान में रखकर जिसका इलाज जिला अस्पताल में हो सका,उसका इलाज यहाँ किया गया और जो सीरियस थे उन्हें इलाहाबाद भेजकर उनका इलाज वहां कराया गयाl दो दिन में सभी बच्चे स्वस्थ हो गए, मगर भविष्य में ऐसी घटना न घटे, इसका कोई ठोस इंतज़ाम शासन और जिला प्रशासन स्तर से होता नहीं दिख रहा है। इस पूरी घटना क्रम पर बड़ी तन्मयता से मैं नजर गड़ाए हुए थाl इस घटना का सबसे रोचक विषय यह है कि जब मैंने शिक्षकों से इस पर राय मांगी तो उन्होंने कहा कि शिक्षकों को इस जिम्मेदारी से मुक्त किया जाए मगर प्रधान दोष भी शिक्षक को ही देते हैं और इस मलाईदार योजना को इसी तरह बने रहने की वकालत भी करते हैं। मिड-डे-मील की असली समस्या इसमें व्याप्त भ्रष्टाचार है, सरकार जो व्यवस्था बनाती है, उसका बंटाधार ब्यवस्था में बैठे उसके अपने अधिकारी और कर्मचारी ही करते हैं l जैसे मिड-डे-मील में भ्रष्टाचार की शुरुवात जहां से अनाज आवंटित होता है,वहीं से शुरू हो जाता है l

MDM में अनाज घोटाला...
एफसीआई से ये अनाज आरएफसी को मिलता है l बीच में एस डब्लू सी से होते हुए परिवहन के ठेकेदारों द्वारा मार्केटिंग इंस्पेक्टरों की ब्लाकवार गोदामों में पहुंचता है और वहां से MDM का अनाज सम्बन्धित कोटेदार के गोदाम पहुँचता है l अब इतनी लम्बी चेन में अनाज को हर जगह बिकना पड़ता है l अच्छा अनाज तो ऊपर ही बिक जाता जाता हैफिर उसमें कोटेदार घटतौली करके सड़ा-गला अनाज स्कूल के हेडमास्टर अथवा ग्राम प्रधान को देता है l इतनी जगह ये MDM का अनाज भ्रष्टाचार की बलि चढ़ते हुए तब कहीं जाकर उस प्राथमिक स्कूल तक पहुँचता है l यदि ग्राम प्रधान और हेडमास्टर में आपसी सहमति ठीक रहती है तो सरकार द्वारा दी गई धनराशि प्रधान औऱ प्रधानाध्यापक के खाते में आने पर खर्च होने के बाद जो धन बचती है, उस धन को वे दोनों आपस में आधा-आधा बाँट लेते हैं। हेडमास्टर के लिए एक सिरदर्दी और बचती है,क्योंकि इस भ्रष्टाचर में सत्यापन के लिए एसडीआई भी घूस लेता है इसके अलावा यदि किसी ने इस घपले और घोटाले की शिकायत की तो सत्यापन करने के लिए जो जाँच टीम आती है, उस जाँच को भी सही जाँच न करने के एवज में मनमाफिक रिपोर्ट लगाने हेतु हेडमास्टर को उनकी भी सेवा करनी पड़ती है। ग्राम प्रधान तो अपना हिस्सा लिए और किनारे हो लिए,परन्तु जाँच हुई तो सबसे पहले हेडमास्टर की ही गर्दन फंसती है l जरा ध्यान से सोचिये तब एहसास होगा कि इतनी विसंगतियों के बीच मिड-डे-मील का भोजन बढ़िया और मानक पर खरा हो...!!!

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