सतीश मिश्र -
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अड़सठिया पत्रकारों की इस अड़सठिया पत्रकारिता... |
चाहे केन्द्र सरकार की हो या देश की किसी भी राज्य सरकार की। कोई भी सरकारी नौकरी कर रहे चपरासी से लेकर आईएएस अधिकारी से यदि पूछिये कि क्या वो अपनी नौकरी से सन्तुष्ट और सुखी है.? तो उसका तत्काल जवाब यही होगा कि "नहीं, अपनी नौकरी से वो सुखी या सन्तुष्ट नहीं है।" यह बताने के साथ ही वो अपनी शिकायतों और मांगों की लम्बी सूची भी आप के सामने प्रस्तुत कर देगा। यह शिकायतें/मांगें कितनी दमदार/ईमानदार होती हैं। इसका एक उदाहरण आपको देता हूं। मेरे एक मित्र महोदय की पत्नी उत्तरप्रदेश सरकार के एक विभाग में कार्यरत हैं। एक दिन वो शिकायत करने लगीं कि भाई साहब मोदी और योगी सरकार कर्मचारी विरोधी है। मैंने पूछा कैसे और क्यों.? तो जवाब मिला कि कांग्रेस सरकार महंगाई भत्ता(DA) 5 से 7 % तक देती थी जबकि मोदी सरकार 2% से ज्यादा नहीं देती।
योगी सरकार से उनकी शिकायत यह थी कि ऑफिसों में उपस्थिति के लिए बायोमीट्रिक प्रणाली लागू कर दी है, इसलिए अब साढ़े 9 बजे ऑफिस पहुंचना पड़ता है और 5 बजे तक बैठना पड़ता है। पहले 11-11:30 बजे तक आराम से जाते थे और 3 बजे के बाद जब जी होता था चले आते थे। मैंने उनसे सहज ही पूछ लिया कि आपका वेतन इस समय कितना है.? उन्हें मालूम था कि मुझे तथ्यों की जानकारी है अतः वो अपनी हंसी नहीं रोक पायीं और लजाते हुए बोलीं कि इस महीने 87,000 रूपये मिलें हैं। मैंने उनसे पुनः पूछ लिया कि जितना वेतन है आपका क्या उसके अनुसार कठिन या कठोर कार्य भी है आपका.? तो पुनः उन्होंने हंसते हुए ईमानदारी से स्वीकार किया कि "...भइय्या काम तो कुछ भी नहीं है, बल्कि कभी कभी तो ऑफिस में समय काटना मुश्किल हो जाता है।।" यहां उनके विभाग का नाम जानबूझकर नहीं लिख रहा हूं, लेकिन यह अवश्य लिख रहा हूं कि उनका विभाग उत्तरप्रदेश सरकार के सर्वाधिक महत्वपूर्ण टॉप 3 विभागों में से एक है। अनुमान लगा लीजिये कि कम महत्व वाले शेष विभागों में कार्य के बोझ की क्या स्थिति होगी।
आज उपरोक्त प्रसंग का उल्लेख इसलिए क्योंकि एक आग्रह पर यूट्यूब में रविशकुमार का दो-तीन दिन पुराना "बैंक सीरीज" वाला Prime Time कार्यक्रम देखा। देखकर ऐसा लगा मानो बैंक कर्मचारी रौरव नर्क में जीवन गुजार रहे हैं और और उनके मानसिक आर्थिक शारीरिक शोषण की पराकाष्ठा हो चुकी है। संयोग से मेरी पुत्री स्वयं बैंक अधिकारी है और अनेक मित्र भी हैं जो बैंक अधिकारी/कर्मचारी हैं। लेकिन तुलनात्मक उदाहरण आपको बताता हूं। मेरे दो चचेरे भाई हैं। एक रेलवे में प्रथम श्रेणी अधिकारी हैं, दूसरा स्टेटबैंक में स्केल-3 का अधिकारी है। रेलवे अधिकारी भाई जब भी मुझसे मिलते हैं तो अपने बैंक अधिकारी भाई तथा मेरी पुत्री का हवाला देते हुए यह उलाहना अवश्य देते हैं कि यार बैंक के अफसरों को जो सुविधाएं मिलती हैं उसकी चौथाई सुविधाएं भी हमलोगों को नहीं मिलती।" उनका यह उलाहना गलत भी नहीं है। लेकिन रविशकुमार की रिपोर्ट देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो बैंक अधिकारी नौकरी नहीं कर रहे बल्कि भयंकर प्रताड़ना के शिकंजे में कसे हुए हैं। रही बैंक कर्मचारियों की बात तो मेरे कुछ मित्र हैं जिन्होंने अधिकारी पद पर अपना प्रमोशन सिर्फ इसीलिए नकार दिया कि निचले स्तर पर भी पर्याप्त वेतन है और जिम्मेदारियां बहुत कम है। ज़िन्दगी मौज से कट रही है। इसलिए प्रमोशन नहीं लिया। यूं तो NDTV/रविशकुमार को देखना बहुत पहले छोड़ चुका हूं लेकिन मित्र के आग्रह पर जब यूट्यूब पर देखा तो एक और दृश्य देख मन घृणा से भर उठा।
दिल्ली के जंतर मंतर पर NDTV प्रायोजित प्रदर्शन कर रही बैंक कर्मियों की भीड़ में शामिल, खुद को बैंक अधिकारी बता रहा एक व्यक्ति रविशकुमार की जिंदाबाद लगाते हुए कह रहा था कि सरकार से हमलोग जब वेतन बढ़ाने की मांग करते हैं तो सरकार हमसे कहती है कि माल्या और नीरव मोदी जैसे लोग इतना पैसा लेकर भाग गए हैं कि हमारे पास पैसा ही नहीं बचा है इसलिए हम तुमलोगों का वेतन नहीं बढ़ा सकते। क्या कोई बैंक अधिकारी इतना मूर्खतापूर्ण और बेहूदा बयान दे सकता है.? शत प्रतिशत नहीं। लेकिन NDTV यह दिखा रहा है। आज यह पोस्ट इसीलिए लिखी क्योंकि दो दिन पहले ही यह तथ्य उजागर हुआ है कि कैम्ब्रिज एनालिटिका ने देश की सरकार और विशेषकर देश के प्रधानमंत्री के खिलाफ जहरीला वातावरण बनाने के लिए 2 से 5 लाख रू महीने की रकम पर 68 पत्रकारों/लेखकों/फिल्मस्टारों को अनुबंधित किया है। NDTV/रविशकुमार की उपरोक्त रिपोर्ट बता रही है कि उन 68 लोगों की सूची में शामिल पत्रकार किस तरह कैम्ब्रिज एनालिटिका के मिशन को अंजाम दे रहे हैं। इसीलिए आज से मैंने इन पत्रकारों को 68 की सूची में शामिल अड़सठिया पत्रकार तथा उनकी पत्रकारिता को अड़सठिया पत्रकारिता कह कर सम्बोधित करने की ठानी है। अड़सठिया पत्रकारों की इस अड़सठिया पत्रकारिता को उजागर करती यह पहली किस्त है। यह क्रम जारी रहेगा।
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