प्रतापगढ़-श्रीरामलीला
समिति प्रतापगढ़ का वजूद दिन प्रतिदिन घटता जा रहा है.वजह पदाधिकारियों का समिति के प्रति
समर्पण भावना का ह्रास होना प्रमुख है. वर्तमान परिवेश में चाटुकारों का हर
क्षेत्र में जिस तरह प्रभाव बढ़ा,उससे श्रीरामलीला समिति,प्रतापगढ़ अछूती नहीं रही.जब किसी सामाजिक और धार्मिक कार्यों में
राजनीतिक लोंगो का प्रवेश होता है तो वहाँ राजनीति का होना सुनिश्चित हो जाता है.श्रीरामलीला समिति,प्रतापगढ़ में पहले नगर के ब्यवसायिक लोंगो
का बोलबाला हुआ करता था,जो आज घटते हुए न के बराबर हो गयी है.जो ब्यापारी श्रीरामलीला समिति से जुड़े
हैं,उनमें वो तड़ नहीं कि सही और गलत का सही तरीके से विरोध दर्ज करा सके. विरोध चाहे आपस में हो अथवा
प्रशासनिक...!!! समिति में इतने बुद्धिजीवी हैं कि आप उनके बौद्धिक स्तर का खुद ही
अध्ययन करिए. नीचे इमेज में श्रीरामलीला समिति का वर्ष 2017 का आमंत्रण कार्ड है,जिसमें वर्तमान सांसद कुंवर हरिवंश सिंह
के पद नाम का उल्लेख किया गया है.पदनाम राष्ट्रीय महासचिव-अपना दल लिखा
है...!!!
वर्ष 2017 के
विधान सभा चुनाव से पहले माँ बेटी के पारिवारिक युद्ध में अपना दल का नाम शहीद हो
गया था और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और मोदी मंत्रिमंडल में शामिल
श्रीमती अनुप्रिया पटेल की रणनीति के तहत अपना दल "सोनेलाल" राजनीतिक दल
का रजिस्ट्रेशन एक डमी ब्यक्ति जवाहर लाल के नाम कराकर उसका संरक्षक श्रीमती
अनुप्रिया पटेल को बनाकर उ. प्र. के विधान सभा चुनाव में भाजपा ने अपना घटक दल
बनाकर उसे 10 सीट देकर पूर्व अपना दल के अस्तित्व
को ही समाप्त कर दिया. यानि अपना दल दो गुट
में बंट गया. एक अपना दल सोनेलाल तो दूसरा
अपना दल कृष्णा गुट जिसका ऑन रिकार्ड कोई अस्तित्व नहीं,तभी
तो प्रतापगढ़-248 से प्रमोद मौर्या, कृष्णा पटेल के समर्थन के बाद भी निर्दलीय उम्मीदवार बने रहे. फिर 6 माह बाद श्रीरामलीला समिति, प्रतापगढ़ के पदाधिकारियों को कौन सा सपना दिख गया जो वर्तमान सांसद
कुंवर हरिवंश सिंह के पदनाम का उल्लेख राष्ट्रीय महासचिव-अपना दल करना पड़ा. क्या ये नासमझी में लिखा गया अथवा चाटुकारिता में लिखा गया...??? फिलहाल जो भी रहा हो....,दोनों स्थिति गंभीर
है...!!!
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