सूबे की नौकरशाही के पास ऐसा मन मोहनी मंत्र है जो प्रत्येक सरकार के मुखिया और उनके कैबिनेट मंत्रियों को उनके सलाह व सुझाव भा जाते हैं। तभी तो वर्ष 2007 में बसपा सरकार में सूबे की मुखिया रही माया के परिवहन मंत्री राम अचल राजभर को परिवहन विभाग के मायावी अधिकारियों ने ऐसा मंत्र, मंत्री जी के कान में फूंका कि उ. प्र. परिवहन निगम की सभी बसे नीले रंग की हो गई। यानि सारी बसे बसपाई रंग में रंग गई। वर्ष 2012 में जब सूबे की सत्ता अखिलेश के हाथ में आई तो उनके परिवहन मंत्री दुर्गा प्रसाद यादव को भी वही मंत्र परिवहन विभाग के अधिकारियों ने दिए तो वो भी अपने कार्यकाल में परिवहन विभाग की सारी बसे सपाई कलर यानि समाजवादी रंग में रंगवा लिए। वर्तमान में प्रचंड बहुमत के साथ उ प्र में भगवा रंग बिखरा तो योगी जी सूबे की बागडोर संभाले और परिवहन मंत्री के रूप में स्वतंत्र देव को स्वतंत्र प्रभार के रूप में परिवहन विभाग दे दिया गया। यानि देखा जाए तो सूबे में तीन बार अलग-अलग राजनीतिक दलों की सरकार बनी और परिवहन विभाग में नौकरशाही में विशेष बदलाव न हुआ। इस बार भी परिवहन विभाग के अधिकारियों ने परिवहन विभाग की बसों का रंग सरकार के रंग का कराने में सफल रहे।
यानि वर्ष 2007 में बसपाई रंग, वर्ष 2012 में समाजवादी रंग और वर्ष 2017 में भगवा रंग की बसें सड़क पर जब दिखी तो अनायास बरबस ये मुंह से लोंगो के निकल गया कि सभी राजनीतिक दल और सरकार बनाने के बाद वो राजनीतिक दल चोर चोर मौसेरे भाई सरीखे कार्य करते हैं। परिवहन विभाग की बसें देखने के बाद बसपा, सपा और भाजपा में कोई फर्क नजर नहीं आता। सरकार बदलने पर जिस दल की सरकार सूबे में बने बस का रंग भी वैसा हो जाता है, भले ही अगली सरकार बनने पर उसे पोतवाने का खर्च अलग से लगे। फिर अन्य राजनीतिक दलों और BJP में क्या फर्क ही बचा...? सिर्फ कहने के लिए विचारधारा अलग है। असल में सभी दलों के नेता एक जैसे होते हैं। जो थोड़ी बहुत विचारधारा भिन्न होती भी है तो उसे नौकरशाही संयोजक की भूमिका का निर्वहन कर पूरा कर देती है ।
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