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शुक्रवार, 8 जुलाई 2016

...क्योंकि जो स्मृति नहीं कर पाईं वह जावड़ेकर कर सकते हैं

...क्योंकि जो स्मृति नहीं कर पाईं वह जावड़ेकर कर सकते हैं

लेखक: राम शिरोमणि शुक्ल।।
अभी जब स्मृति ईरानी से केंद्रीय मानव संसाधन विकास (एचआरडी) मंत्रालय छीन लिए जाने पर चौतरफा बहस छिड़ी हुई है और कहा जा रहा है कि उनकी अक्षमता और विवादों के कारण यह फैसला किया गया, तब छत्तीसगढ़ से आई एक खबर की अहमियत कुछ ज्यादा ही बढ़ जाती है। खबर यह कि छत्तीसगढ़ के छह कुलपतियों और तीन दर्जन प्रफेसरों को बुलाकर संघ ने उनके साथ विचार-विमर्श किया। यह बैठक प्रांत संघचालक बिसरा राम यादव ने ली। राज्य के एक स्थानीय अखबार में प्रकाशित इस खबर का हर कोई अपने तरीके से अर्थ निकाल सकता है, लेकिन इसे स्मृति के खिलाफ ‘कार्रवाई’ के संदर्भ में भी देखा जा सकता है।
क्रिया और प्रतिक्रिया...!!!
स्मृति ईरानी 
माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्मृति इरानी के परफार्मेंस से काफी नाराज थे। कहा तो यह भी जा रहा है कि उनसे कहीं ज्यादा संघ स्मृति से नाराज था।तो क्या यह माना जाए कि संघ बहुत पहले से शिक्षा मंत्रालय से कोई ऐसा काम करना चाह रहा था, जो स्मृति इरानी नहीं कर पा रही थीं, या करना नहीं चाहती थीं। रोहित वेमुला के मामले समेत अलीगढ़, जेएनयू और कई अन्य विश्वविद्यालयों और शिक्षण संस्थाओं में खड़े हो रहे गंभीर विवादों और उन्हें ठीक से न सुलझा पाने के चलते हो रही सरकार की किरकिरी को परेशानी का सबब समझा जा सकता है लेकिन शिक्षा के भगवाकरण की कोशिश में तो स्मृति ने कोई कसर नहीं उठा रखी थी। 
इसके बावजूद अगर संघ को कुलपतियों की क्लास लेनी पड़ रही है तो मामला ज्यादा गंभीर और विवादास्पद हो जाता है। और विपक्षी कांग्रेस यदि इसे मुद्दा बनाती है तो इसे विपक्षी कार्यनीति का जरूरी हिस्सा माना जाना चाहिए।संघ के नेताओं ने छत्तीसगढ़ के सभी छह विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के साथ तो बैठक की ही, साथ में राज्य के उच्च शिक्षा मंत्री प्रेमप्रकाश पांडेय को भी तलब किया। मंत्री, मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री पहले भी संघ के साथ बैठकें करते रहे हैं। लेकिन संघ द्वारा ऐसी सीधी पहल शायद पहली बार ही हुई है।
दावा यह किया जा रहा है कि शिक्षा से संबंधित समस्याएं जानने और उनका समाधान करने की कोशिश के तहत यह बैठक बुलाई गई, लेकिन शायद ही यह तर्क किसी के गले के नीचे उतरे। क्या निकट भविष्य में इसे अन्य राज्यों में भी दोहराया जाएगा? इसके साथ ही इस तरह की चर्चाएं भी बढ़ी हैं कि कहीं ऐसा तो नहीं कि सरकार के बजाय अब संघ ही शासन-प्रशासन को संचालित करने लगेगा? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कथन ‘मिनिमम गवर्नमेंट, मैक्सिमम गवर्नेंस’ का मतलब कहीं यही तो नहीं था?
छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस के अनुसार यह बैठक बताती है कि संघ किस तरह बीजेपी सरकारों को अपनी उंगली पर नचाता है। और तो और, वह कुलपति जैसे सम्मानित पद को भी नहीं बख्श रहा है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल का कहना है कि कुलपति का पद संवैधानिक है। उनको संघ के पास जाकर चर्चा करने की क्या जरूरत है! यह तो पूरी तरह असंवैधानिक है। संघ का इस तरह बैठक लेना घोर आपत्तिजनक है। बैठक में शामिल होने वाले कुलपतियों को उनके पदों से हटाया जाना चाहिए। पार्टी ने राज्यपाल को पत्र लिखकर इस मामले में कार्रवाई करने की भी मांग की। इसके साथ ही कांग्रेस के ही छात्र संगठन एनएसयूआई ने रविशंकर विश्वविद्यालय में विरोध प्रदर्शन भी किया।
इस पूरे विवाद पर संघ और बीजेपी की सफाई से भी न केवल नए सवाल उभरते हैं बल्कि यह लीपापोती अधिक लगती है। प्रांत संघ चालक बिसरा राम यादव का कहना है कि हम विद्या भारती के लोग हैं। हमारा मकसद शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाना है। कुलपतियों की बैठक रविशंकर विश्वविद्यालय के माध्यम से आयोजित थी। हम केवल उपस्थित थे। सवाल यह है कि क्या संघ को अपनी ही सरकार पर यह भरोसा नहीं रहा कि वह शिक्षा की गुणवत्ता स्थापित कर सकेगी? यह भी कि कुलपतियों की बैठक में संघ या किसी अन्य संगठन की उपस्थिति की मौजूदगी का क्या मतलब है? 
मुख्यमंत्री रमन सिंह ने भी यह कहते हुए मामले को टालने की कोशिश की कि ‘मंत्री के बुलाने पर कुलपति आते ही हैं। स्वयं मैं भी संघ की शाखा में जाता हूं।’ अब यह कौन पूछे कि यह बैठक मंत्री ने नहीं बुलाई थी। यह प्रांत संघ चालक के बयान से ही सिद्ध होता है। मतलब साफ है कि दाल में कुछ काला है।अब, जबकि स्मृति इरानी से एचआरडी मिनिस्ट्री छीन ली गई है और इसे उन प्रकाश जावड़ेकर को दे दिया गया है जिनके बारे में बताया जाता है कि प्रधानमंत्री और संघ उनसे बहुत खुश हैं। विपक्षी इसे छत्तीसगढ़ की पांच हजार एकड़ जमीन गौतम अडाणी को देने और अडाणी पर लगा दो सौ करोड़ का दंड माफ कर देने का इनाम बता रहे हैं।
भगवाकरण का खतरा.....

जाहिर है, जो व्यक्ति बिना किसी विवाद के इस तरह के काम कर सकता है, उसे बड़ा ओहदा तो मिलेगा ही। अब शायद जावड़ेकर मानव संसाधन विकास मंत्रालय के माध्यम से संघ, बीजेपी और सरकार का वह काम कर सकें जो स्मृति बहुत कोशिश करने के बावजूद नहीं कर पाईं। आखिर इसी मंत्रालय के माध्यम से संघ, बीजेपी और सरकार को अपना वह काम करना है, जिसे करने के लिए अब करीब ढाई साल का ही समय बचा है। तभी तो जावड़ेकर कहते हैं शिक्षा बदलाव का हथियार है। शिक्षा जीवन को भी बल देती है, इससे मूल्य आते हैं। देखने की बात यह है कि कैसे मूल्य आएंगे और जीवन को किस तरह का बल मिलेगा।
"लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं"

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