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सोमवार, 6 जून 2016

स्विट्ज़रलैंड की गणना दुनिया के सर्वाधिक धनी देशों में की जाती है....!!!

स्विट्ज़रलैंड की गणना दुनिया के सर्वाधिक धनी देशों में की जाती है....!!!
सतीश चन्द्र मिश्र -
स्विट्ज़रलैंड क्योंकि दुनिया के सर्वाधिक धनी देशों में से एक है इसलिए वहाँ हरामखोरी और हरामखोर नहीं है.....? या फिर स्विट्ज़रलैंड में क्योंकि हरामखोरी और हरामखोर नहीं हैं,इसीलिए वो दुनिया के सर्वाधिक धनी देशों में से एक है....?
उपरोक्त दोनों प्रश्नों में से कौन सा प्रश्न सही और सत्य के सर्वाधिक निकट है, इसका निर्णय आप सभी मित्र स्वयं करें. लेकिन यह शर्मनाक सत्य तो हमको आपको सबको स्वीकारना ही पड़ेगा कि, आत्मसम्मान, स्वाभिमान और नैतिकता की कसौटी पर स्विस नागरिकों के सामने हमारी स्थिति एक कंगले भिखारी की सी ही है...!!!
क्योंकि यह खबर बता रही है कि स्विट्ज़रलैंड सरकार ने पिछले दिनों अपने प्रत्येक व्यस्क नागरिक को उनसे बिना कोई काम करवाए प्रतिमाह 1 लाख 80 हज़ार रू तथा प्रत्येक अवयस्क नागरिक(बच्चों) को प्रतिमाह 45 हज़ार रू फ्री पेंशन देने की अपनी योजना के बारे में राय जानी तो तीन चौथाई से अधिक(77℅) नागरिकों ने यह पेंशन लेने से साफ़ मना कर दिया....!!!
मित्रों जबकि हमारा कटु सत्य यह है कि, किसी दूरदराज़ के अत्यन्त पिछड़े गाँव के मुखिया या प्रधान के पद के बजाय अत्यधिक विकसित और अत्याधुनिक दिल्ली के मुख्य्मंत्री की कुर्सी पर वो आदमी "भूतो ना भविष्यति" वाले बहुमत के साथ सिर्फ इसलिए बैठा दिया जाता है क्योंकि वो पानी और बिजली की भारी किल्ल्त से जूझ रही दिल्ली को हराम में ही बिजली, पानी और WiFi जैसी सुविधाएँ फ्री देने का वायदा कर देता है....!!!
जबकि वही आदमी दिल्ली में बम विस्फोट कर दर्ज़नों नागरिकों को मौत के घाट उतारने वाले हत्यारे आतंकवादियों (बाटला हाउस) हत्यारे नक्सलियों का खुलेआम समर्थन करता है.कश्मीर पाकिस्तान को देने की बात करता है. अपनी पार्टी की वेबसाइट पर प्रदर्शित भारत के नक़्शे में कश्मीर को पाकिस्तान का हिस्सा बताता है....!!!
लेकिन उसकी इन सब देशघाती शर्मनाक करतूतों पर हर महीने डेढ़ दो हज़ार रू की बिजली और पानी की हरामखोरी बहुत भारी सिद्ध होती है. और वो कुल 70 में से 67 सीटें जीतकर देश की राजधानी दिल्ली का मुख्य्मंत्री बन जाता है. अतः गाल चाहे जितने बजाए जाएँ लेकिन यह तो सच स्वीकारना ही होगा कि स्विट्ज़रलैंड से बराबरी का सपना देखना तो दूर, उसके सामने हमारी स्थिति एक कंगले भिखारी की सी ही है.यह सच कड़ुआ भले ही है लेकिन कम से कम आत्मसम्मान, स्वाभिमान और नैतिकता की कसौटी पर तो यह सच ही है...!!!

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