ये क्या – सरदार पटेल और बाबा साहब अम्बेडकर तो “सांप्रदायिक” निकले.....!!!
अब हम इस पर कुछ और क्या कहें..? आप खुद समझदार हैं...!
शायद,ये दोनों ही, हम राष्ट्रवादियों की तरह ही, सांप्रदायिक थे...!
आज की तारिक में, हिंदुस्तान में, यदि कोई पत्रकार, नेता अथवा साधारण व्यक्ति कुछ भी इस्लाम के खिलाफ कह दे तो वह सांप्रदायिक हो जाता है...! भाजपा तो देश में घोषित ‘सांप्रदायिक पार्टी’ है...! सिर्फ इसलिए क्योंकि वो हिन्दू-हित की बात करती है....! राष्ट्रवादी देश में घोषित सांप्रदायिक लोग हैं, क्योंकि वो राष्ट्र हित की बात करते हैं, uniform civil code की बात करते हैं....!
लेकिन अब हम लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल और बाबासाहब भीम राव अम्बेडकर जी के विचारों से आपको रूबरू करवाते हैं....! यदि यही विचार आज कोई राष्ट्रवादी अपने फेसबुक वाल या ट्विटर पर, अपने विचार बता कर डाल दे,तो उसे ‘सांप्रदायिक’ जरुर कहा जायेगा...! उसे कहा जायेगा कि वो हिन्दू आतंकी है, वह देश की हालात खराब करना चाहता है...! चलिए देखते हैं क्या कहा था इन दो महापुरुषों ने :-
लेकिन अब हम लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल और बाबासाहब भीम राव अम्बेडकर जी के विचारों से आपको रूबरू करवाते हैं....! यदि यही विचार आज कोई राष्ट्रवादी अपने फेसबुक वाल या ट्विटर पर, अपने विचार बता कर डाल दे,तो उसे ‘सांप्रदायिक’ जरुर कहा जायेगा...! उसे कहा जायेगा कि वो हिन्दू आतंकी है, वह देश की हालात खराब करना चाहता है...! चलिए देखते हैं क्या कहा था इन दो महापुरुषों ने :-
सरदार वल्लभ भाई पटेल (संविधान सभा में दिए गए भाषण का सार)
हिन्दुओं को वहां से बुलाना ही एक हल है।यदि यूनान तुर्की और बुल्गारिया जैसे कम साहिन्दू मुस्लिम एकता एक अंसभव कार्य हैं भारत से समस्त मुसलमानों को पाकिस्तान भेजना औरधनों वाले छोटे छोटे देश यह कर सकते हैं तो हमारे लिए कोई कठिनाई नहीं।साम्प्रदायिक शांति हेतु अदला बदली के इस महत्वपूर्ण कार्य को न अपनाना अत्यंत उपहासास्पद होगा।
विभाजन के बाद भी भारत में साम्प्रदायिक समस्या बनी रहेगी।पाकिस्तान में रुके हुए अल्पसंख्यक हिन्दुओं की सुरक्षा कैसे होगी?मुसलमानों के लिए हिन्दू काफिर सम्मान के योग्य नहीं है।मुसलमान की भातृ भावना केवल मुसमलमानों के लिए है।कुरान गैर मुसलमानों को मित्र बनाने का विरोधी है, इसीलिए हिन्दू सिर्फ घृणा और शत्रुता के योग्य है।मुसलामनों के निष्ठा भी केवल मुस्लिम देश के प्रति होती है।इस्लाम सच्चे मुसलमानो हेतु भारत को अपनी मातृभूमि और हिन्दुओं को अपना निकट संबधी मानने की आज्ञा नहीं देता।
संभवतः यही कारण था कि मौलाना मौहम्मद अली जैसे भारतीय मुसलमान भी अपेन शरीर को भारत की अपेक्षा येरूसलम में दफनाना अधिक पसन्द किया। कांग्रेस में मुसलमानों की स्थिति एक साम्प्रदायिक चौकी जैसी है।गुण्डागर्दी मुस्लिम राजनीति का एक स्थापित तरीका हो गया है। इस्लामी कानून समान सुधार के विरोधी हैं ।धर्म निरपेक्षता को नहीं मानते।मुस्लिम कानूनों के अनुसार भारत हिन्दुओं और मुसलमानों की समान मातृभूमि नहीं हो सकती।वे भारत जैसे गैर मुस्लिम देश को इस्लामिक देश बनाने में जिहाद आतंकवाद का संकोच नहीं करते।अब हम इस पर कुछ और क्या कहें..? आप खुद समझदार हैं...!
शायद,ये दोनों ही, हम राष्ट्रवादियों की तरह ही, सांप्रदायिक थे...!
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