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सोमवार, 27 जून 2016

टमाटर वाली दाल फ्राई के लिए रोने वाली कौमें जंग नहीं लड़ा करतीं...!!!

टमाटर वाली दाल फ्राई के लिए रोने वाली कौमें जंग नहीं लड़ा करतीं...!!!

चीन और देश के भीतर वैचारिक चीनी डीएनएधारियों को जीत की बधाई. भारत-चीन युद्ध के समय कलकत्ता की जमीन पर इतिहास के पन्नों से निकले कामरेडों के नारे 'दिल्ली दूर, पैकिंग नजदीक है' की बिना पर गिरोहों के जश्न वाजिब हैं.

"टमाटर वाली दाल फ्राई के लिए रोने वाली कौमें जंग नहीं लड़ा करतीं...!!!"

यह वही चीन है,जिसके भारत पर हमले के वक्त बल्लियों उछलते लाल लंगूर सशस्त्र क्रांति के सपने सजाते उनके स्वागत में रेड कारपेट बिछा रहे थे.बिलकुल वही है जिसने 54 साल पहले, आपको लातों लात मार कर आपसे 37,244 किमी की जमीन छीन ली थी.यह वही चीन है जिसके अरुणाचल पर दावे के डर से, पूरे उत्तरपूर्वी हिस्से के हमारे साथियों को ओलंपिक में भेजने तक की हिम्मत, सरकारों की भी नहीं होती थी.

आज का दिन है कि वही चीन, भारत विरोध के नाम पर, पूरी दुनिया में अलग थलग पड़ गया है.आज भारत का N.S.G. की सदस्यता का दावा बिलकुल वैसा है जैसे महाराणा प्रताप का पांच हजारी मनसबदार की कुर्सी पर लात मारकर, अकबर की बराबरी का दावा.इस हौसले के लिए हमें घास की रोटी भी मंजूर है. हथियारों की खनक मैदान में सुनने से पहले, वैज्ञानिक क्षमता और विश्व बाजार में हमारी धमक जरूरी है.बाकी आप तो घरों में ही बैठो मियां! टमाटर वाली दाल फ्राई के लिए रोने वाली कौमें जंग नहीं लड़ा करतीं.

भारत की हार की बधाइयाँ भी भारत में गाई जा सकती हैं....!!!
एनएसजी पर इस दौर में सदस्यता हार कर भी भारत ने किया चीन को अंतराष्ट्रीय बिरादरी में अकेले और अलग-थलग.इतिहास के पन्नों और तारीखों की याद में… भारत के साल 1974 में परमाणु परिक्षण के बाद और वजह से अस्तित्व में आये इस एलीट ग्रुप में आज महज चीन की छाया में एक-आध को छोड़ बाकियों ने भारत के शामिल होने की मजबूत पैरवी की, बदले सन्दर्भों में इसका अलग महत्त्व है.
सांकेतिक और नैतिक जीत अगर देखनी हो.. तो परमाणु ऊर्जा के सबसे बड़े पीड़ित जापान की भारत के लिए मजबूत पैरवी को देखिये. आज की तारीख में भारत के विरोध के लिए अस्तित्व में आई एनएसजी की सदस्यता में मिली हार…. अगली मजबूत दावेदारी की जमीन है. याद रखिये… हमने एनएसजी की सदस्यता आज ही नहीं चाही, हम इस पुराने अभियान पर आगे बढ़ते हुए अब निर्णायक दौर में हैं. बहुत कुछ बदला सा दिखने का मन बनाना होगा हमे अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य में अगले आने वाले कुछ सालों में. इसे ‘तुम हार गए, हम जीत गए’ जैसा मसला न बनाएं.
इस बीच देश से बाहर चीन और देश के भीतर वैचारिक चीनी डीएनएधारियों को जीत की बधाई. भारत-चीन युद्ध के समय साल 62 में कलकत्ता की जमीन पर इतिहास के पन्नों से निकले कामरेडों के नारे ‘दिल्ली दूर, पैकिंग नजदीक है’ की बिना पर गिरोहों के जश्न वाजिब हैं.जरूरी हर अंतर्राष्ट्रीय फोरमों पर अपनी अगली हर दावेदारी के प्रति सकारात्मक रहते हुए यह देखिये कि अगर आज भारत के किसी पड़ोसी देश से युद्ध जैसे कोई हालात बनें तो आपके किन-किन पड़ोस के बेशर्म घरों से उस विरोधी पड़ोसी के लिए सोहर और बधाइयों के संगीत सुनने को मिल सकते हैं.‘भारत की हार की बधाइयाँ भी भारत में गाई जा सकती हैं’ इस राष्ट्रीय शर्म की खोज और उपलब्धि के रूप में भी देखा जा सकता है एनएसजी की इस तात्कालिक हार को.
एक नई पहल के लिए तैयार हो रहा है, भारत...!!!
NSG में भारत की दावेदारी को झटका मिलना तय है, पर इससे निराश होने जैसी कोई बात नहीं, भारत सरकार भी ये भली भाँति जानती ही थी.उसने ये प्रयास जानबूझकर किया ताकि कुछ देशों को विश्व मंच पर नग्न किया जा सके.वर्तमान में गंभीर वैश्विक बदलाव चल रहे हैं, चीन-अमेरिका-रूस का आपसी टकराव, आतंकी घटनाएं व इस्लामिक गतिविधियों पर शक्तिशाली देशों की तीखी प्रतिक्रिया आदि, ब्रिटेन का EU से अलग होना भी मैं इसी कड़ी के रूप में देखता हूँ.
चीन द्वारा आतंकी देश पाकिस्तान का समर्थन व भारत जैसे गंभीर देश का विरोध उसकी विश्वसनीयता को और कम करेगा, और उसकी यही चूक भारत के सामरिक हित में दूरगामी परिणाम लाएगी.कहीं ना कहीं भारत एक नई पहल के लिए तैयार हो रहा है, कई शक्तिशाली देश उसकी अगुवाई में नए संघ, संगठन व समूह बनाने को बाध्य होंगे…. क्योंकि UNO, NSG या इन जैसे पुराने हो चुके संगठन धीरे धीरे अपनी प्रासंगिकता व विश्वसनीयता खोते जा रहे हैं.अब कई मोर्चों पर रूस, जापान और ब्रिटेन भारत की ओर आस भरी दृष्टी से देखने को बाध्य होंगे और भारत भी अपने हित साधने के लिए इनका सदुपयोग कर सकेगा.ये भविष्यवाणी तो नहीं किन्तु अंतर्राष्ट्रीय विषयों के जानकारों को पढ़कर जगी आस अवश्य है.

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