!!!...हा हा हा हा हा हा...!!!
!!!...जिसे मज़ाक समझा, वही सच साबित हुआ...!!!

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बात लगभग 5 साल पहले, 2011 की है. उन दिनों पेशेवर अनशनबाज़ किशन बाबूराव हज़ारे उर्फ़ अन्ना की हरकतें और बयानबाजी बिलकुल बेलगाम हो चुकी थीं.कांग्रेसी इशारे और प्रेस्टिट्यूट्स के सहारे हज़ारे का सितारा बुलंदियों पर था. तब ही हज़ारे का एक बयान आया कि मेरे गाँव में जो शराब पीता है उसको मैं पेड़ से बाँध कर डंडों से मारता हूँ....!!!
संयोग से जिस समय शाम को न्यूजचैनलों पर हज़ारे यह कहते बताते हुए बार बार दिखाया जा रहा था उस समय मैं अपने एक सिक्ख व्यवसायी मित्र के ऑफिस ही बैठा हुआ था. अत्यन्त हंसमुख और मजाकिया मिज़ाज़ के मेरे वो मित्र महोदय अपने मदिरा प्रेम के लिए कुख्यात हैं.
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अतः जब हज़ारे का बयान टीवी पर आना शुरू हुआ तो वो मित्र महोदय बहुत गम्भीरता से उसको देखने लगे. पूरा बयान देखने समझने के बाद मित्र महोदय लम्बी सांस भरते हुए मेज पर जोर से हाथ मारकर बोले....!!!
सतीश भाई...! ये तो गया साला...! इसका काम तो अब खत्म...!!!
मैंने मुस्कुराते हुए पूछा कि, ऐसा क्यों और किस आधार पर कह रहे हो आप...??? इसपर वो बोले कि, देखो अबतक इसने सरकारी अफसरों से बयाना लिया, नेताओं से बयाना लिया तो ये चल गया. लेकिन अब इसने शराबियों से बयाना ले लिया है. अब इसका ये सारा ड्रामा ज्यादा से ज्यादा 7-8 महीने ही चल पाएगा.
अब इसका खेल खत्म होने से कोई रोक नहीं पाएगा. उस समय मित्र की इसबात को मैं उनका गुस्सा समझकर मुस्कुरा के चुप हो गया था. लेकिन वाकई उसके 6 महीने बाद ही देश के सिर पर सवार हज़ारे का भूत गधे के सिर से सींग की तरह गायब होने लगा था. हज़ारे की अनशनबाजी के मंचों के सामने दिल्ली से मुंबई तक भीड़ जुटने के बजाय कुत्ते लौटते नज़र आने लगे थे.
इसके काफी दिनों बाद अपने उन्हीं मित्र को उनकी वो भविष्यवाणी याद दिलाते हुए मैंने उनसे पूछा कि, उन्होंने किस आधार इतने विश्वास के साथ हज़ारे को लेकर वो बात कही थी.? मेरे सवाल पर वो मुस्कुराते हुए बोले थे कि... यार पूरे देश में एक हम लोगो की शराबी बिरादरी ही तो है जिसका जाति, धर्म, वर्ग, क्षेत्र, व्यवसाय, राजनीति या किसी भी आधार पर कोई बंटवारा नहीं है.
ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है जहां हमलोगो की अच्छी खासी संख्या ना हो और इस बुड्ढे ने तो अपनी नेतागिरी के चक्कर में हमलोगो की मनपसंद चीज पर ही हमला बोल दिया था. इसलिए इसके खिलाफ हमलोगो का "काम" बिना किसी अपील फतवे रैली या मीटिंग के स्वतः ही शुरू हो गया था. इसलिए इसका खेल तो खत्म होना ही था क्योंकि किसी भी पार्टी या संगठन से कई गुना ज्यादा सदस्य हमारे शराबी समुदाय में हैं.
मित्र महोदय की बात पर हंसी तो बहुत आ रही थी साथ ही साथ उनकी बात में दम भी नज़र आया था. आज केरल में ओमान चांडी की सरकार से बहुत बेआबरु विदाई देख कर मुझे अपने सिक्ख मित्र की 5 साल पहले की बात याद आ गयी. क्योंकि चांडी ने भी चर्चों मस्जिदों के फतवों के लोभ में शराबियों से बयाना तो ले ही लिया था....!!! लेकिन यह बयाना चर्चों और मस्जिदों के फतवों पर भी बहुत भारी पड़ा. ऐसा क्यों हुआ.? इसकी वजह तो मेरे मित्र महोदय मुझे बता ही चुके थे कि, धर्म जाति वर्ग आदि के बंधनों से बहुत परे है हमारी बिरादरी....!!!
प्रस्तुति : - " सतीश चन्द्र मिश्र "
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