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शनिवार, 23 अप्रैल 2016

!!!....रायबरेली में गांधी परिवार को लगातार दूसरा झटका.....!!!

!!!....रायबरेली में गांधी परिवार को लगातार दूसरा झटका.....!!!


रायबरेली। कमला नेहरू एजुकेशन सोसाइटी का खेल अभी चल ही चल रहा है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली में गांधी परिवार को एक और तगड़ा झटका लगा है। यहां के फिरोज गांधी डिग्री कालेज की जमीन पर भी अब कब्जा हो गया है। कालेज का प्रबंधतंत्र देखता रह गया और एक ही झटके में कब्जेदारों ने रायबरेली में विकास की नींव रखने वाले इंदिरा-फिरोज के सपनों के पंख को तोड़ दिया। सोनिया गांधी के राजनीतिक घर में कब्जेदारी की दूसरी घटना नेहरू परिवार को किसी बड़े झटके से कम नहीं हैं। महिला शिक्षा को बढ़वा मिले तथा फिरोज गांधी कालेज में दूरदराज से पढने आने वाली छात्राओं को दिक्कत न हो इसके लिए हास्टल निर्माण को लेकर पांडेय कोठी के सामने नजूल की जमीन पर 11 बीघा, तीन बिस्वा 18 बिस्वांसी का जमीन पट्टे पर दी गई थी। 2004 में पट्टा खत्म हो गया लेकिन जमीन पर न तो हास्टल बना और न ही खेल का मैदान, कालेज का प्रबंधतंत्र मामले से दूरी बनाए रखा जिसका नतीजा है जमीन पर अवैध कब्जा हो गया है।

रायबरेली जिला स्वर्गीय इंदिरा गांधी के पति फिरोज गांधी के संसदीय काल के समय से कांग्रेस का राजनीतिक घर माना जाता रहा है। जिले के विकास को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने काफी कुछ किया लेकिन समय के साथ उनके सपनों को धूलधूसरित करने में कोई कोताही नहीं बरती गई। रायबरेली में फिरोज गांधी कालेज की स्थापना शिक्षा को बढ़वा देने के साथ नेहरू परिवार का खैरमकदम बुलंद रहने की खातिर की गई। फिरोज गांधी कालेज में छात्राओं के लिए हास्टल तथा खेल का मैदान बनाने को लेकर इंदिरा गांधी की रजामंदी की मुहर लगने के बाद 20 फरवरी 1979 को नजूल की 11 बीघा तीन बिस्वा 18 बिस्वांसी का पट्टा कराया गया। प्रदेश व केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी तो मामले में कोई दिक्कत नहीं आई। जमीन के जरिए कालेज का विस्तार की भी योजना थी। वहीं कालेज प्रबंध तंत्र इतना उदासीन निकला कि उसने पट्टे की जमीन पर कोई काम नहीं कराया। इसके कारण हास्टल व खेल का मैदान बनने का सपना अधूरा रह गया।

क्या था पट्टे की नियम.....???

- 28 दिसंबर 1974 को 11 बीघा जमीन पर पट्टे को लेकर लिखापढ़ी की गई। सन 1901 के मालगुजारी अधिमियम के तहत पट्टे पर किराया निर्धारित किया गया। यह किराया 1 रुपया सालाना था, यह भी कहा गया कि यदि एक रुपए न दिया जाए तो साल में दो बार में 50-50 पैसे देकर भी उसे पूरा किया जा सकता है।
- जमीन पर कालेज के छात्रावास तथा भवन को कालेज के अध्यापक, छात्र व कर्मचारियों के अतिरिक्त कोई नहीं उपभोग में ला सकेगा।
- कालेज को जब भूमि की आवश्यकता नहीं रह जाएगी तो वह राजस्व विभाग को वापस कर देगा। यदि कालेज जमीन का किसी अन्य प्रयोजन में उपभोग करता है तो बिना का मुआवजा दिए बिना उसे वापस ले लिया जाएगा।
यह है जमीन का संख्या- 641, 642, 643, 644,645, 646, 647, 648, 649, 650, 651, 652, 653, 654, 655, 657, 658, 659, 588 व 672 है।
2004 में खत्म हो गया पट्टा.....!!!
फिरोज गांधी कालेज का प्रबंधतंत्र इतना उदासीन निकाला कि 30 वर्ष के इस पट्टे की अवधि 2004 में समाप्त हो गई। इसी के साथ हास्टल व खेल का मैदान बनने का रास्ता बंद हो गया। प्रबंध समिति ने कभी भी इंदिरा गांधी के सपनों को पूरा करने मेें दिलचस्पी नहीं ली। वहीं स्थानीय कांग्रेसी भी मामने से अनजान बने रहे।
क्यों नहीं कराया गया नवीनीकरण.....???
जिस तरह से 11 बीघा जमीन में इंदिरा-फिरोज के सपनों को फिरोज गांधी कालेज के कर्ताधर्ताओं ने कुचल कर रख दिया है उससे कहीं न कही किसी खेल की आशंका भी जताई जा रही है। जिस तरह कमला नेहरू एजुकेशन सोसाइटी की पांच बीघा किराए की जमीन पर कोई स्कूल नहीं खुला और अंदर ही अंदर उसे फ्रीहोल्ड करा लिया गया। इस मामले में भी क्या ठंडा कर खाने की आदत बनाई गई है। फिलहाल बहुत कुछ साजिश के घेरे में है। जमीन का नवीनीकरण न कराना तरह-तरह के सवाल खड़े कर रहा है। 1995 में जो एक डीड पर हस्ताक्षर हुए थे उनमें प्रबंध मंत्री सुनीता घोष, कार्यालय अधीक्षक राम कुमार वर्मा, रेवा शकंर मिश्र के हस्ताक्षर हैं।
फंड की दिक्कत की दलील....!!!
कालेज प्रंबध कमेटी के उप प्रबंधक अनुभव भार्गव का कहना है कि छात्रावास को बनाने के लिए काफी कोशिश की गई। इसका स्टीमेट भी तैयार है लेकिन फंड की दिक्कत से छात्रावास नहीं बन पा रहा है। कोई भी योजना रोकी नहीं गई है। फंड में पैसा आते ही छात्रावास का निर्माण जरूर कराया जाएगा।
संज्ञान में नहीं था मामला....!!!
जिलाधिकारी सूर्यपाल गंगवार ने बताया कि यह प्रकरण अब तक मेरे संज्ञान में नहीं था। मामला सामने आया है तो इसकी जांच कराई जाएगी। नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी।

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