!!!....भारत के प्रधान न्यायाधीश टी. एस. ठाकुर हुए भावुक....!!!
@@@.....सीजेआई के भावुक होने पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उन्हें आश्वासन दिया कि सरकार न्यायपालिका के साथ मिलकर इसका समाधान जल्द तलाशेगी...!!!
@@@.....सीजेआई के भावुक होने पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उन्हें आश्वासन दिया कि सरकार न्यायपालिका के साथ मिलकर इसका समाधान जल्द तलाशेगी...!!!
भारत के प्रधान न्यायाधीश टी. एस. ठाकुर
नई दिल्ली सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (CJI) टी.एस. ठाकुर आज जजों और मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन में अपने संबोधन के दौरान भावुक होकर रो पड़े। CJI का पूरा भाषण लंबे समय से लंबित पड़े न्यायिक सुधार और क्षमता से कहीं कम जजों की मौजूदगी के इर्द-गिर्द था। इस दौरान कई बार उनका गला रुंध आया। प्रधानमंत्री मोदी के 'मेक इन इंडिया' अभियान का जिक्र करते हुए CJI ने कहा कि भारत में बड़ी तेजी से आबादी बढ़ रही है और बड़े स्तर पर विदेशी निवेश आ रहा है, लेकिन जल्द न्याय देने की इसकी क्षमता पर सवालिया निशान है। उन्होंने कहा कि निवेश करने वाले किसी विवाद की स्थिति में भारतीय न्यायपालिकाओं की जल्द न्याय देने की काबिलियत पर भी गौर करते हैं। उन्होंने कहा कि देश के विकास में न्यायपालिका का योगदान बहुत अहम होता है।
CJI ने कहा कि अदालत की शरण में आने वाले 'गरीब' अपीलकर्ता सालों तक जेल में सड़ते रहते हैं। उन्होंने अपील करते हुए कहा कि भारतीय न्यायव्यवस्था की आलोचना करना काफी नहीं है, बल्कि इसके ऊपर लदे बोझ पर गौर करना और इसके समाधान के तौर पर जजों के खाली पदों पर तत्काल नियुक्ति की कोशिश की जानी चाहिए। अपीलकर्ताओं का जिक्र करने के दौरान CJI की आंखें गीली हो गईं और उनका गला भर आया। अपने पूरे भाषण के दौरान ही वह बेहद भावुक नजर आए। भारतीय अदालतों में लंबित पड़े मामलों के बारे में बोलते हुए CJI ने कहा कि आबादी के अनुपात में जजों की संख्या बहुत कम है। उन्होंने 1987 में दी गई लॉ कमीशन की अनुशंसा का जिक्र करते हुए कहा कि जहां आयोग प्रति 10 लाख की आबादी पर 50 जजों का प्रस्ताव करता है, वहीं भारत में प्रति 10 लाख लोगों पर केवल 1 ही जज है।
ऐसे में अदालतों में कई साल तक मामले अटके रहते हैं और सही समय पर न्याय नहीं मिलता। उन्होंने जजों की कमी की ओर बार-बार इशारा करते हुए कहा कि इस प्रस्ताव को इतना समय बीत जाने पर भी आज तक इसपर अमल नहीं हो सका है। CJI ने कहा कि लोग समय पर न्याय नहीं मिलने के कारण कई सालों तक जेल में बंद रहते हैं। इलाहाबाद में ही 10 लाख से ज्यादा मामले लंबित पड़े हैं, लेकिन फिर भी सरकार ने इस प्रस्ताव को लंबे समय से अटका रखा है। जजों पर बोझ का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, 'गणित में एक सवाल पूछा जाता था कि एक सड़क 5 आदमी 10 दिन में बनाते हैं, तो वही सड़क एक दिन में बनानी हो तो कितने आदमी चाहिए। उत्तर होता था 50...50 आदमी चाहिए। 38 लाख 88 हजार केस को निपटने के लिए कितने जज चाहिए। यह बात हम क्यों नहीं समझते।' उन्होंने सरकार से अपील की कि नई नियुक्तियां कर और सुधार लागू कर दुनिया भर में भारतीय न्यायपालिका की छवि को सुधारे जाने की कोशिश की जानी चाहिए।
देशभर की अदालतों में मुकदमों का पहाड़ जैसा बोझ आज एक दर्द प्रधान न्यायाधीश टी एस ठाकुर बनकर फूट पड़ा। जजों और मुख्यमंत्रियों के एक संयुक्त सम्मेलन में रविवार को जब चीफ जस्टिस आॅफ इंडिया बोलने आए तो उन्होंने मांग की कि जजों की संख्या मौजूदा 21000 से बढ़ाकर 40000 की जाए। इतना कहते ही भारत के प्रधान न्यायाधीश टी एस ठाकुर भावुक हो गए। सीजेआई के इतने भावुक होने पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उन्हें आश्वासन दिया कि सरकार न्यायपालिका के साथ मिलकर इसका समाधान जल्द तलाशेगी। इससे पहले सीजेआई ने रूंधे गले से कहा, यह किसी प्रतिवादी या जेलों में बंद लोगों के लिए नहीं बल्कि देश के विकास के लिए, इसकी तरक्की के लिए मैं आपसे हाथ जोड़कर विनती करता हूं कि इस स्थिति को समझें और महसूस करें कि केवल आलोचना करना काफी नहीं है। आप पूरा बोझ न्यायपालिका पर नहीं डाल सकते।
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